पुरुष ,पति और पिता भी बन रहा है
पुरुष ,पति और पिता भी बन रहा है
"सेजल क्या कर रही है ? उसने तंग तो नहीं किया ?" एक के बाद एक मैंने कई प्रश्न का डाले थे ?
"अरे मम्मी, थोड़ा सा ब्रेक ले लो। सेजल को हम उसके नानू और डेडू के पास छोड़कर गए थे।" मेरी बेटी मिहिका ने लापरवाही से कहा।
"बेटा, अभी सेजल ६ महीने की ही तो है।" मैंने कहा।
"सेजल ने पॉटी कर दी थी।" मेरे पति राजीव ने कहा ।
"फिर ?" मैंने पूछा।
"फिर क्या ? अरविन्द ने पॉटी क्लीन कर दी ?" मेरे पति ने कहा। हम दामाद को कुँवरजी या अरविन्द जी नहीं कहते थे। जब मिहिका की नयी -नयी शादी हुई थी, तब हम अरविन्द जी कहते थे क्यूँकि 90 के दशक में तो दामाद को जी लगाकर ही बोला जाता था। लेकिन अरविन्द ने 2 -4 बार जी लगाने से यह कहते हुए मना किया कि, "वह बेटा तो नहीं है, लेकिन बेटे जैसा है और बेटे की उम्र का तो है ही। "
"अरविन्द ने ?? आपने हमें कॉल क्यों नहीं किया ?हम यहीं पड़ोस में ही तो गए थे।" मैंने कहा ।
"अरे मम्मी, इसमें आपको क्यों बुलाते ? सेजल मेरी भी तो बेटी है। पॉटी ही तो क्लीन की है।" अरविन्द ने कहा ।
"फिर भी बेटा ?" मैंने कहा।
"फिर भी क्या मम्मी ? बेटी अरविन्द की भी है तो कुछ जिम्मेदारी उनकी भी है। मम्मी आज के पिता हिटलर पिता नहीं होते हैं, वे भी अपने बच्चों के साथ समय व्यतीत करते हैं, उनके दोस्त बनने की कोशिश करते हैं। आप तो बताते हो कि पहले तो पिता सबके सामने अपने बच्चे को गोदी में भी नहीं लेते थे, हिचकते थे, शर्माते थे क्यूँकि घरवाले ताना मार देते थे।" मिहिका ने कहा।
"हां बेटा। आज तो पिता बहुत बदल गए हैं।" मैंने कहा ।
"हां मम्मा, माता को देवी बनाने के चक्कर में, पिता, पिता भी नहीं बन सके थे। मातृत्व के आभा मंडल के सामने पितृत्व कहीं दब सा गया था।" मिहिका ने कहा ।
"हां बेटा । चलो चाय बना लाती हूँ।" ऐसा कहकर मैं किचन में आ गयी थी ।
चाय बनाते हुए, मुझे याद आ गया था कि मिहिका कोई 4 महीने की थी । मैं उसे सुलाकर बाहर बर्तन साफ़ कर रही थी । हम किराए के घर में रहते थे, वहाँ और भी कई परिवार रहते थे। हम ३-४ औरतें अक्सर एक साथ बर्तन माँजा करते थे । बर्तन मांजते हुए बातें करते रहते थे । किसी के बर्तन अगर मँज भी जाते थे तो वह वहीं बैठकर दूसरों के बर्तन मँजवा दिया करता था। बर्तनों की सफाई के साथ -साथ बातों का दौर भी चलता रहता था ।
मैं जैसे ही बर्तन साफ़ करके कमरे में घुसी, मिहिका के पापा राजीव ने मेरे तड़ातड़ एक के बाद एक चाँटे मानने शुरू कर दिए।" तेरी बेटी ने पॉटी कर दी है और तू वहाँ आराम से गप्पे मार रही थी।" मारते हुए राजीव कहे जा रहे थे।
याद आते ही मेरा हाथ अपने गालों को सहलाने लगा था । लेकिन मैं खुश थी कि आज के पिता उस जमाने के पिता जैसे नहीं है। हमारी बेटियों को हमारे जितना तो नहीं सहना पड़ रहा ।
"मम्मी, चाय बन गयी है । आप कहाँ खो गए।" किचन में आकर गैस बंद करती हुई मिहिका ने कहा।
"कुछ नहीं, बस यही कि आज सिर्फ पुरुष, पुरुष ही नहीं रहा पति और पिता भी बन रहा है।" मैंने कहा।
"हां मम्मी।" मिहिका ने हां में हां मिलाते हुए कहा।
