पुरुष एक प्रकाश
पुरुष एक प्रकाश
वाद-विवाद के कटघरे में हमने
पुरुष को अक्सर मुज़रिम पाया
समाज की नजरों में
उसे सदैव कलंकृत ठहराया
कुछ वहशी दरिंदे देश में
अपराध किये छिपे हैं
उनके वजह से बेगुनाह पुरुषों
ने भी तानाबानी सुने हैं।
जिनके चलते हम भूल गये
उन सभी महान पुरुषों को
जो सबके लिये मर मिटे
तैनात रहे बॉर्डर पर रक्षा के लिये
मैंने देखा पुरुष को,
एक उगते सूरज के रूप में
कुछ पुरुषों को देखा
पिता, भाई, व पति के रूप में
आजीवन परिवार के लिये जीते
जिम्मेदारियों से घिरे
हमेशा दूसरों के लिये परवाह करते
कुछ पुरुष लज्जाशील होते हैं,
नेत्रों से नेत्र मिलाने से कतराते,
मन मे आदर भाव शर्मीले से
कुछ पुरुषों को पाया गया मूक व गम्भीर
पुरखों के रीति रिवाजों को ढोते
की पुरुष को मन से कठोर होना चाहिये
कुछ पुरुषों को देखा इन पौरोणिक रिवाज़ों
को बरबस निभाते
मन को कचोटते और खामोश
कुछ पुरुषों को देखा
जो प्रेम भाव रखते हैं
इठलाते थोड़े चंचल करुण हृदय वाले
सबको सम्मान देते
प्रेम- प्रसंग में मगन
समाज ने देखा अक्सर पुरुष को
गुनाहों की नजर से
जिसके चलते खो गया पुरुष का महत्व
पर मैंने व्यक्त किया पुरुष को
एक प्रकाश के रूप में।