तू शहीद नहीं वीर पुत्र है
तू शहीद नहीं वीर पुत्र है
कुछ कहानियाँ, कहानी नही होती बल्कि हक़ीक़त से गुजरती हुई सफर करती है। कहानी कुछ यूँ है कि लगभग पचास से साठ करीब लोग थे, अनुमान है, उनमें बहुत से जवान थे लगभग अठारह से पैतीस की उम्र वाले, एक अरसा हुआ था घर को नही गये थे। परिवार से मिलने की तलब थी मगर देश के लिये जीना जैसे उनका मकशद था। छुट्टियाँ खत्म हुई और फिर वे सभी अपनी अपनी ड्यूटी की ओर निकलने के लिए एकत्रित हुए। इतने समय बाद परिवार से मिलने की ख़ुशी उनके चेहरे पर झलक रही थी।
वे सभी उस दिन बहुत खुश थे। यह बात उन आर्मी जवानों की हो रही है, जो बॉर्डर पर हम आम नागरिकों की रक्षा करते हमेशा बॉर्डर पर तैनात रहते हैं। उनके जीवन की दिनचर्या में कब सुबह होती है कब शाम, पता ही नही चल पाता। न कोई धर्म का पक्षपात, न कोई बंदिश, न कोई मनमुटाव, वे सैनिक हर दिशा से वहाँ कुछ यूँ मिलकर रहते जैसे उनके आगे खून के नाते भी फीके पड़ जाते।
यही तो आर्मी का विशेष नियम है, जिएँगे तो देश के लिये मरेंगे तो देश के लिए। उमंग का वो दिन था उन सब के लिए, सभी अपनी ड्यूटी के लिए एक साथ एक बस वाहन में प्रस्थान कर रहें थे। उन्होंने नही सोचा था कि उनके चेहरे की रौनक केवल कुछ पल की मेहमान है, वे अज्ञात थे कुछ पल पश्चात होने वाली दहशत से। बस की रफ्तार में जैसे वे खो गये थे। मध्यम राह पर पहुचते ही, ड्राइवर की बस के दर्पण पर नज़र पड़ी। एक कार तीव्रता से उस बस की ओर गति कर रही थी। ड्राइवर भी अभिज्ञ था उस पल घटने वाली घटना से। वह कार तेज़ी से आती हुई उस बस को टक्कर मारती है, उसके उपरांत का जो क्षण है, वह शब्दों में बयां कर पाना बहुत पीड़ादायक होगा।
यूँ मानो जैसे कोई कश्ती ही उजड़ गई हो। सब राख हो चुका था, उस राख में किसी ने अपना बेटा, किसी ने अपनी मांग का सिंदूर, किसी ने अपना हमसफ़र, किसी ने अपना पति, किसी ने अपना भाई, खो दिया।
वह दहशत आज भी नेत्रों की चरम सीमा को पार कर जाती है, उस दिन की घटना ने अश्क़ नही खून के आँशु बहाये थे। वह घटना जब हम आज भी स्पर्श करते हैं, रोम-रोम छल्ली हो जाता है। आतंक ने देश मे कुछ यूँ पनाह ले रखी थी। सरल नही है, एक फौजी की व्यथा को व्यक्त करना। एक फ़ौजी जो अपने परिवार से दूर भारत माँ की रक्षा में अपना जीवन गुजार देता है। कौन कहता है, देश को पुरुषों से खतरा है, अरे जऱा देखो उन महान पुरुषों को जो तैनात हैं बॉर्डर पर, चन्द पक्तियाँ समर्पित हैं:-
''जिस दिन तू शहीद हुआ
न जाने किस तरह
तेरी माँ सोई होगी
मैं तो केवल इतना जानती हूँ
की वो गोली भी तेरे सीने में
उतरने से पहले रोई होगी
वीर वो माँ का
खून से लथपथ था
सुला दिया सदा के लिए
भारत माँ का पुत्र था
हिज्र की बात मत करो
रूह कांप जाती हैं
दास्तान उनकी जब जब
सामने आती है।
हम तो सफर करते हैं
यह बोलते हुए चल पड़ा
शहीद से लिपटा तो
तिरंगा भी खून के अश्क़ रो पड़ा'।
