Kanchan Jharkhande

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5.0  

Kanchan Jharkhande

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विपदा

विपदा

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कुछ ही दिन हुए थे स्नातक की डिग्री हुए कि उस दिन मैं अचानक निकल पड़ी। कुछ तलाश सी थी, मुझे लगा काश जैसा सोचा वैसा ही कुछ हो जाये। मौसम कुछ गड़बड़ सा लग रहा था उस दिन मानो जैसे कोई भारी तूफान आने को हैं। सभी ने समझाया कि इस भारी तूफान में बिना छाते के निकलना मुनासिब नही हैं। मैं ठहरी जल्द बाजी में वहाँ पहुँचना जो था पहली पंक्ति में जिक्र किया ना~कोई तलाश थी मुझे। कुछ दूर तक पहुँची ही थी कि एक तूफान सा आया बारिश का कारवां शब्दों में बयां करना थोड़ा विपदा दायक होगा। मानो जैसे कोई क़हर बस ढाने को था। मेरी जिद्द थी कि चाहे कुछ भी हो आज पहुँचना ही होगा वहाँ तक। तूफानी बारिश थमने का नाम ही नहीं ले रही थी। मैं एक छोटे से छत के कोने की आड़ में खुद को भीगे मौसम से बचाने की कोशिश कर रही थी। मगर तूफान इतना था कि खुद को बचाना मुनासिब ही नहीं था। काफी देर हो चुकी थी। मुझे लगा शायद में ही गलत थी मुझे घर चले जाना चाहिए था। अरे ये क्या एक बस आ गई, मैं जैसे तैसे उस बस पर सवार हुई। बस स्टॉप आया में नीचे उतरी, अरे ये क्या यहाँ तो ठहरने को कोई बस स्टॉप ही नहीं था। तभी अचानक बहुत जोर से बिजली कड़की में थम सी गई एक दीवार के सहारे खुद को चिपका लिया सामने रास्ता था। गाड़ियों के इलावा कोई भी नज़र न आया। मैं कुछ डर से मेरे मन में उठ गया था। ना जाने वो बारिश ही थी या कोई कहर सा आया था इस रूप में। दूसरी बस का इंतजार करते हुए तो मानो मैं पूरी ही भीग चुकी थी। जैसे तैसे वहाँ पहुँची। दरवाज़े पर नज़र मारी तो देखा ताला लगा था और सामने का इलाका पानी से पूरा भरा हुआ था जैसे कोई बाड़ हो मानो। एक दिन ऐसा भी गुजारा है।



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