Sudershan Khanna

Abstract

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Sudershan Khanna

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पुरानी कलम नई स्याही

पुरानी कलम नई स्याही

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‘मैं समय हूं और आज महाभारत की अमर कथा का एक और अंश सुनाने जा रहा हूं। यह महाभारत केवल भारतलोक की कोई सीधी-सादी युद्ध कथा नहीं है। ये कथा है मानव संस्कृति के उतार-चढ़ाव की, यह कथा है सक्षम और अक्षम की, यह कथा है अंधेरे से जूझने वाले उजाले की और यह कथा मेरे सिवाय कोई दूसरा सुना भी नहीं सकता, क्योंकि मैंने इस कथा को इतिहास की तरह गुजरते देखा है। इसका हर पात्र मेरा देखा हुआ है। इसकी हर घटना मेरे सामने घटी है। मैं ही मनुष्य हूं, मैं ही अमानुष हूं और मैं ही कुरुक्षेत्र क्योंकि इन्सानियत के बनते बिगड़ते रिश्तों और रिश्तों के आधार और जीवन सागर को मथ कर जीवन के तत्व और सत्य का अमृत निकालने की कहानी भी है, और यह लड़ाई हर युग को अपने अपने कुरुक्षेत्र में लड़नी पड़ती है क्योंकि हर युग के सत्य को वर्तमान असत्य से जूझना पड़ता है और जब तक मैं हूं यह महायुद्ध चलता रहेगा और मेरा कोई अन्त नहीं, मैं अनन्त हूं। इसीलिए यह आवश्यक है कि हर वर्तमान इस कहानी को सुने और गुने ताकि वो भविष्य के लिए तैयार हो सके। ये लड़ाई लड़ना हर वर्तमान का कर्तव्य और हर भविष्य की तकदीर है। इसीलिए मैं कभी गुरु, कभी मां और कभी ऋषि बनकर हर नई पीढ़ी को इस कहानी द्वारा उसे अपने इस महायुद्ध के लिए तैयार करता रहता हूं। यह कहानी वास्तव में उस दिन शुरू नहीं हुई जिस दिन आज के श्रीकृष्ण ने देश को उपदेश दिया था। ये कहानी उस दिन शुरू हुई जिस दिन देश में लाकडाउन घोषित हुआ था। महाभारत काल में पांडवों के वनवास का समय और लाकडाउन अर्थात् वर्तमान में घरवास का समय। दोनों ही स्थितियों में अज्ञात रहना अनिवार्य था। पहचान लिये जाने पर दंड के प्रावधान थे। 

 

मैं आपको ले चलता हूं उस घटना को दिखलाने जिसमें पांडवजन अपने तेरह-वर्षीय वनवास के दौरान वनों में विचरण कर रहे थे। थक कर उन्हें प्यास लगी। प्यास बुझाने के लिए पानी की तलाश आरम्भ की। सबसे पहले यह जिम्मा सहदेव को सौंपा गया। उन्हें पास में एक जलाशय दिखा जिससे पानी लेने वे वहां पहुंचे। जलाशय के स्वामी अदृश्य यक्ष ने आकाशवाणी के द्वारा उन्हें रोकते हुए पहले कुछ प्रश्नों का उत्तर देने की शर्त रखी अन्यथा तुम्हें प्राण त्यागने पड़ेंगे। सहदेव उस शर्त और यक्ष को अनदेखा कर जलाशय से पानी लेने लगे। तब यक्ष ने सहदेव को निर्जीव कर दिया। सहदेव के न लौटने पर क्रमशः नकुल, अर्जुन और फिर भीम ने पानी लाने की जिम्मेदारी उठाई। वे उसी जलाशय पर पहुंचे और यक्ष की शर्तों की अवज्ञा करने के कारण निर्जीव हो गए।

 

अंत में चिंतातुर युधिष्ठिर स्वयं उस जलाशय पर पहुंचे। अदृश्य यक्ष ने प्रकट होकर उन्हें आगाह किया और अपने प्रश्नों के उत्तर देने के लिए कहा। युधिष्ठिर ने धैर्य दिखाया। उन्होंने न केवल यक्ष के सभी प्रश्न ध्यानपूर्वक सुने अपितु उनका तर्कपूर्ण उत्तर भी देते रहे जिसे सुनकर यक्ष संतुष्ट होता रहा। यक्ष ने अगला प्रश्न किया कि संसार में सबसे बड़े आश्चर्य की बात क्या है? युधिष्ठिर ने उत्तर दिया हर रोज आंखों के सामने कितने ही प्राणियों की मृत्यु हो जाती है यह देखते हुए भी इंसान अमरता के सपने देखता है। यही महान आश्चर्य है।‘


युधिष्ठिर ने सारे प्रश्नों के उत्तर सही दिए अंत में यक्ष बोला, युधिष्ठिर मैं तुम्हारे एक भाई को जीवित करूंगा। तब युधिष्ठिर ने अपने छोटे भाई नकुल को जिंदा करने के लिए कहा। लेकिन यक्ष हैरान था उसने कहा तुमने भीम और अर्जुन जैसे वीरों को जिंदा करने के बारे में क्यों नहीं सोचा। युधिष्ठिर बोले, मनुष्य की रक्षा धर्म से होती है। मेरे पिता की दो पत्नियां थीं। कुंती का एक पुत्र मैं तो बचा हूं। मैं चाहता हूं कि माता माद्री का भी एक पुत्र जीवित रहे। यक्ष उत्तर सुनकर काफी खुश हुए और महाभारत की जीत का वरदान देकर वह अपने धाम लौट गए।


   मैं समय हूं ... अब मैं वर्तमान में हो रही एक घटना सुनाता हूं। पुरातन काल की महाभारत के यक्ष की भांति इस महाभारत में भी वनवास की तरह घरवास के निर्देश हैं। घरवास का उल्लंघन करने वालों को काल का गाल बनना पड़ सकता है। इसी प्रकार शासकीय आदेशों के अनुसार मुंह ढकना और सामाजिक दूरी बनाए रखना अनिवार्य है। उल्लंघन करते पाया जाना दंडनीय अपराध घोषित कर दिया गया है। मुख्य शासक ने सभी प्रान्तों के शासकों से आदेशों का सख्ती से पालन करने के निर्देश दिये। इस महायुद्ध में देशवासियों की रक्षा करने के लिए सेना को जिम्मेदारी दी गई है। यहां सेना से तात्पर्य चिकित्सकों, उनके सहायकों, पुलिसकर्मियों, सफाईकर्मियों, समाजसेवियों व अन्य कर्मियों से है। 


मैं वर्तमान में इन्द्रप्रस्थ की घटनाएं देख रहा हूं और सुना रहा हूं। प्रदेश के शासक ने देश के शासक के निर्देशों के पालन में अनेक कदम उठाने की घोषणा की। अनुभवों का भी अपना अनुभव होता है। प्रदेश के शासक के आदेश का कर्मियों को भी पालन करना था जिसके अन्तर्गत सैनेटाइजेशन ड्राइव करते हुए प्रदेश के सभी क्षेत्रों का बारी-बारी से सैनेटाइजेशन करना था। ऐसी अनेक प्रक्रियाओं को मैं एक साथ देख सकता था। मैं समय हूं। एक ऐसी ही घटना आपको सुनाने जा रहा हूं। यह घटना पुरातनकाल की महाभारत में एक स्थान पर यक्ष और युधिष्ठिर के बीच प्रश्न-उत्तर की कड़ी से जुड़ी है। अब इसे वर्तमान महाभारत में मुझसे सुनिए। इसी कथा में मैंने आपको बताया कि यक्ष ने अगला प्रश्न किया कि संसार में सबसे बड़े आश्चर्य की बात क्या है? युधिष्ठिर ने उत्तर दिया हर रोज आंखों के सामने कितने ही प्राणियों की मृत्यु हो जाती है यह देखते हुए भी इंसान अमरता के सपने देखता है। यही महान आश्चर्य है।‘ इस घटना की पुनरावृत्ति मैंने उस घटना में होते हुए देखी जिसका मैं वर्णन करने जा रहा हूं।


मैं जिस स्थल पर घटना देख रहा था वहां घोषित समय के लगभग डेढ़ घंटे पश्चात् शासकीय अधिकारी और कर्मियों का एक समूह दो रथों के साथ अपने वाहनों पर सवार होकर पहुंचा था। चूंकि मैं समय हूं अतः देरी से आना मुझे अपना अपमान लगा। पुरातन काल में लोग समय-यंत्र अर्थात् घड़ियां न होने पर भी समय पर अपना कार्य किया करते थे। पर यह कलयुग की महाभारत की घटना है। दो रथों से मेरा तात्पर्य है जो युद्धभूमि में उपयोग किए जाने थे।वे आवश्यक हथियारों अर्थात् रसायन से लैस थे। उनके सारथियों ने विचित्र सुरक्षात्मक वेशभूषा पहन रखी थी। अधिकारियों और कर्मियों का लावलश्कर संख्या में उनसे ज्यादा था। पुरातन काल की महाभारत में रणभूमि में केवल सैनिक जाते थे और सामान्य नागरिक तथा प्रशासन से जुड़े लोग अलग ही रहते थे। 

 

इस घटना में सारथियों को छोड़कर मूर्खों की सेना थी जो विलम्ब पर विलम्ब किये जा रही थी और शत्रु इसका लाभ उठा रहा था। रथों को रणभूमि में भेजने से पूर्व शासकीय अधिकारियों ने जो आडम्बर किया वह आदेशों का पूर्ण उल्लंघन था। मैं यहां यह भी बता देना चाहता हूं कि इन रथों के आने से एक दिन पूर्व यह घोषणा कर दी गई थी कि फलां-फलां समय पर यह युद्ध आरम्भ होगा। अतः क्षेत्रीय निवासियों को सावधान किया गया था कि जब भी रथ अपना कार्य आरंभ करेंगे अर्थात् रसायन-युक्त सैनेटाइजेशन का कार्य आरंभ करेंगे तब सभी नागरिक उक्त युद्ध को देखने न तो अपने घरों से बाहर निकलें और न ही घर की खिड़कियांे और आलिन्दों मंे खड़े हों। नागरिक तो भय के मारे घरों से बाहर नहीं निकले। परन्तु यह घोषणा नहीं की गई थी कि कितनी देर के बाद निकल सकते हैं। घरों में पहले से ही बंद नागरिकों को और बांध दिया गया। अत्यन्त संशय की स्थिति बन गई। ठीक उस प्रकार से जैसे कि जब रथ रणभूमि की ओर प्रस्थान करेंगे तो पांचजन्य का उद्घोष होगा। 


परन्तु अगले आधे घंटे तक कुछ भी नहीं हुआ। डरते डरते नागरिक खिड़कियों, आलिन्दों और द्वारों से बाहर झांकने लगे तो उनके क्रोध-मिश्रित आश्चर्य की सीमा न रही क्योंकि वह लावलश्कर अभी भी वहीं खड़ा था। नागरिक सोच रहे थे कि क्या ये कोई भीरू हैं जो रणभूमि में जाने से घबरा रहे हैं परन्तु सत्य तो केवल मैं जानता था। 


इस दौरान उक्त समूह ने सबसे पहला उल्लंघन किया जो सामाजिक दूरी बनाये रखने के आदेश का उल्लंघन था और वह यह कि वे सब के सब एक साथ गलबाहें डालकर खड़े हो गये। सामाजिक दूरी के आदेश की धज्जियां उड़ती देखी मैंने। एक कर्मी को आदेश दिया गया कि उनकी आरती उतारे, यहां आरती से अर्थ है कि उनका चित्र उतारे। भिन्न-भिन्न स्थितियों में उनके चित्र उतारे गये। चित्रों में अपने मुख की शोभा न बिगड़े कुछ अधिकारियों ने मास्क भी हटा लिये। युद्ध लड़ने आये इस समूह के चेहरों पर मुस्कान थी। मैं यह देखकर और भी हैरान हुआ कि रथों के सारथियों को छोड़कर अन्य अधिकारियों ने विचित्र सुरक्षात्मक वेशभूषा नहीं पहन रखी थी। वे तो सामान्य वेशभूषा में थे। आसुरी विषाणु को भाग निकलने का अवसर मिल गया था। पर इस लावलश्कर को ऐसी ओछी हरकतों से फुरसत मिले तब न। 


मैं यह देख पा रहा था कि सारथी अपने रथों पर सवार होने के लिए बेचैन थे। पर चूंकि वे शासन के अधिकारियों के अधीन थे अतः असहाय थे। मैं आपसे पूछता हूं कि क्या यह वही दृश्य नहीं है जिसका मैंने ऊपर वर्णन किया है। युधिष्ठिर के भाइयों ने यक्ष के आदेश को अनसुना किया था। फिर युधिष्ठिर ने जिस आश्चर्य की बात की थी वह पुनः दोहराता हूं ‘हर रोज आंखों के सामने कितने ही प्राणियों की मृत्यु हो जाती है यह देखते हुए भी इंसान अमरता के सपने देखता है। यही महान आश्चर्य है।’ 


बिल्कुल वही दृश्य मैं देख रहा था। सारथियों के साथ आए अधिकारियों को यह लग रहा था कि वे शासनिक अधिकारी हैं अतः उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता परन्तु आम नागरिकों को अन्दर ही बन्द रहने के आदेश थे। उन्हें अपनी सत्ता शक्ति पर दंभ था। साधारण वेशभूषा पहने हुए उन अधिकारियों पर रसायन का कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ने वाला था यह उनका दंभ बता रहा था। अब आप समझे होंगे कि एक तो उन्होंने यक्ष की अवहेलना की और दूसरे स्वयं को अमर समझकर युधिष्ठिर के आश्चर्य को साबित किया। मैं यही बताने आया था कि महाभारत हर काल में होती आई है और वर्तमान में हो रही है। आप अपने इर्द-गिर्द देखें और यदि आपको महाभारत का कुछ ज्ञान है तो आप भी अवश्य वही बातें वर्तमान में पायेंगे। 


अब मैं बताना चाहता हूं कि इन ओछी हरकतों के बाद सारथी अपने रथों पर सवार हुए और बिना किसी शंखनाद के युद्ध लड़ने निकल पड़े। रथों पर सवार होते ही उन्होंने घोड़ों को पुचकारा और अपने तरकश के तीर चलाने लगे। पर महाभारत के तीरों की भांति न होकर ये ऐसे प्रतीत हो रहे थे जैसे हाथी अपनी सूंड में पानी भरकर बौछार छोड़ता है। रथ आगे बढ़ गये। मैं जानता था कि आसुरी विषाणु को भागने या छुपने का अवसर मिल गया होगा। मैं इस घटना का साक्षी बन गया और मैंने यह वृत्तान्त आपको सुनाया। 



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