नीला बैग
नीला बैग
‘तेरी औकात ही क्या है ?’ नीले बैग ने घमंड दिखाते हुए पैबन्द लगे दूसरे नीले बैग से कहा। ‘क्यों बन्धु ? इतना गुरूर क्यों ?’ पैबन्द लगे बैग ने कहा। ‘तू मुझे बन्धु कहता है, तेरी यह हिमाकत ? जानता नहीं मैं किसके साथ रहता हूं ?’ नीले बैग ने फिर घमंड जताया। ‘बेशक मैं नहीं जानता कि तुम किसके साथ रहते हो, मगर जिनके साथ रहते हो, अगर वो भी ऐसी बातें करते हैं तो मुझे उनके बारे में नहीं जानना’ पैबन्द लगे नीले बैग ने जवाब दिया।
‘तू मुझसे जबान लड़ाता है! जरा अपने कपड़े तो देख, पैबन्द लगे हुए!’ नीला बैग ठठा कर हंसा। ‘अगर तुम्हें मेरे इन पैबन्दों को देखकर हंसी आती है तो यह जानकर मुझे खुशी हो रही है कि मैं किसी को हंसा सकता हूं’ पैबन्द लगे नीले बैग ने कहा। ‘कमबख्त, यह मुंह और मसूर की दाल’ नीले बैग ने शान से अकड़ कर कहा ‘तुझे मालूम नहीं कि मुझे सभी प्यार करते हैं, सब मुझे चाहते हैं।’ ‘मुझे इस बात की भी खुशी है’ पैबन्द लगे नीले बैग ने विनम्रता से कहा।
‘ज़रा पलटना तो, दूसरी तरफ क्या सस्ती सी अखबार चिपका रखी है, क्या लिखा है, देखूं तो’ नीले बैग ने कहा। विनम्रता की मूर्ति पैबन्द लगा नीला बैग घूम गया ‘लो देख लो क्या लिखा है, वैसे तो तुम भी घूम कर देख सकते थे, मगर यह तुम्हारी शान के खिलाफ होता’ पैबन्द लगे बैग ने कहा। ‘चुप रहो, पढ़ने दो – ‘आप की प्रेरणा कई प्रकार की है, आपके उद्देश्य अनेक हैं, आपके मार्ग भिन्न भिन्न हैं, हर किसी की मंजिल अलग है लेकिन सबके भीतर एक ही भाव है और वो है भारतीयता।
प्रवासी भारतीय जहां रहे उस स्थान को उन्होंने कर्मभूमि माना, और जहां से आए उसे मर्मभूमि माना। आज उस कर्मभूमि की सफलताओं को, उसकी गठरी बांध करके उस मर्मभूमि में पधारे हैं जहाँ से आपको, आपके पूर्वजों को निरन्तर प्रेरणा मिलती रही है। प्रवासी भारतीय जहां रहे वहां का विकास किया और जहां के हैं वहां भी अपना अप्रतिम रिश्ता जोड़कर करके रखा … (बीच में अखबार फट गया है) … उतना योगदान किया। प्रवासी भारतीयों में देश के विकास के लिए अदम्य इच्छाशक्ति है। वे देश की प्रगति में सहयात्री हैं … हमारी विकास यात्रा में हमारे एक साथी हैं …’ नीले बैग ने पढ़ने के बाद कहा ‘बातें तो बहुत अच्छी लिखी हैं। कहीं-कहीं से अखबार फट गया है। तुझे मालूम है क्या लिखा है ?’
‘मैं तो अनपढ़ गंवार हूं और मेरे स्वामी की भी लगभग यही स्थिति है। पढ़ सकते तो शायद इसे न चिपकाते। हमें क्या मालूम इसमें क्या लिखा है ? हां, हमें दुनिया की समझ है, अगर कोई पढ़कर सुनाएगा तो समझ लेंगे’ पैबन्द लगे बैग ने कहा। ‘दुनिया की समझ रखने की बात करने वाले पैबन्द लगा बैग तू गंवार का गंवार ही रहेगा। मुझे देख, मैं तो अपने स्वामी के साथ विदेश से आया हूं। देख, देख, इधर देख, मेरे स्वामी का नाम वगैरा लिखा है, कितना सुन्दर छपा है।
आसमान में उड़ कर आया हूं। अपने देश की धरती पर उतरने के बाद बाहर निकलते ही मुझे कितने लोग उठाने को लालायित थे। बच्चे तो मुझे देखते ही मुझसे चिपट गए थे।
अपनी हालत तो देख, तेरे तो पैर ही घिस गए हैं, जमीन पर चलते चलते। तुझे तो कोई पूछे भी नहीं। अब तो मुझे तुझ पर रहम आने लगा है’ नीले बैग ने कहा। पैबन्द लगे नीले बैग के चेहरे पर उदासी छा गई थी। ‘पूछेगा नहीं मुझे इतने सारे लोग उठाने को क्यों लालायित थे ?’ नीले बैग ने अकड़ कर कहा।
‘बता दो भैया, हमें क्या मालूम, हम थोड़े ही आसमान से उड़ कर आये हैं जो अपने अन्दर चांद सितारे भर कर लाये हों’ पैबन्द लगे नीले बैग ने उदासी से संभलते हुए कहा। ‘तो सुन, मेरे स्वामी प्रवासी भारतीय हैं, वो देश से बाहर जाकर काम करते हैं, खूब मेहनत करते हैं, खूब पैसे कमाते हैं, कमा-कमा कर अपने भारत देश भेजते हैं। मेरे स्वामी के बहुत से ऐसे मित्र प्रवासी भारतीय हैं जो उन्हीं की तरह बाहर काम करते हैं।
हमारे अपने मुल्क भारत में उनकी बहुत इज्जत होती है। उनकी तारीफ में कहा जाता है कि भारत उन्हें इतना दूर लगना चाहिए – जितना दीया जले उतना दूर, उन्हें नजदीकी महसूस होनी चाहिए, वे अपने मुल्क से बाहर कहीं भी रहें उन्हें ये अपनापन महसूस होना चाहिए। जो लोग छोटे-छोटे काम करने के लिए जा रहे हैं, उनको ज्यादा लाभ होगा … ऐसी व्यवस्थाएं जिसके कारण भारत का व्यक्ति, विश्व में पैर रखते ही उसको कुछ भी पराया ना लगे, औरों को भी वो अपना लगे, और उसका आत्म-विश्वास उन ऊंचाइयों को पार करने वाला हो जैसे वो सालों से उस भूमि को जानता हो, उसकी चिंता-व्यवस्था हमारा देश करेगा … सबसे महत्पूर्ण है कि प्रवासी भारतीय देश की प्रगति का एक अहम् हिस्सा बन सकता है। प्रवासी भारतीय कई पीढ़ियांे से विदेशों में हैं। उनके अनुभव ने भारत को और सक्षम बनाया है। एक नए पौधे पर एक अलग-सा स्नेह उभर आता है, उसी तरह विदेश में रह रहे प्रवासी भारतीय भी हमारे लिए अनमोल हैं, विशेष हैं। हम प्रवासी भारतीयों से करीबी और मजबूत और संपर्क और गहरा बनाना चाहते हैं। और सुन, जब भी हम अपने देश भारत आते हैं तो मेरे स्वामी मुझमें बहुत-सी विदेशी वस्तुएं भर कर लाते हैं। उन्हीं को पाने के लिए यहां उनके जानने वाले मेरे आगे-पीछे घूमते हैं। सोचते रहते हैं कि मेरे अन्दर उनके
लिए क्या-क्या छुपा है ?’ नीले बैग ने कहा।
‘हम भी तो प्रवासी हैं। प्रवासी भारतीय!’ पैबन्द लगे नीले बैग ने कहा। ‘तुम कैसे प्रवासी भारतीय हुए, तुम तो प्रवासी मजदूर हो! प्रवासी मजदूर!!’ नीले बैग ने फिर अकड़ दिखाई। ‘मगर हम भारतीय हैं। तो हम भी प्रवासी भारतीय हुए’ पैबन्द लगे नीले बैग की रगों में बह रहे रक्त में उबाल आ गया था। ‘तुम प्रवासी भारतीय नहीं हो सकते’ नीले बैग ने भी पलट कर जवाब दिया। ‘तुम तो पढ़े-लिखे हो, प्रवासी भारतीय के संग रहते हो, पर तुम यह क्यों नहीं समझ पा रहे कि हम भी प्रवासी हैं, प्रवासी भारतीय!’ पैबन्द लगे नीले बैग ने कहा। ‘तुम जमीन पर चलते हो और हम आसमान में उड़ते हैं’ नीले बैग ने तर्क दिया। ‘आसमान में उड़ने के बाद आते तो तुम जमीन पर ही हो’ पैबन्द लगे नीले बैग ने तर्क का जवाब दिया। ‘हम गाड़ियों में सफर करते हैं, एयरपोर्ट पर भी हमारे लिए विशेष गाड़ियां बनी होती हैं’ नीला बैग बोला।
‘वो गाड़ियां नहीं, बैसाखियां हैं तुम्हारी, नहीं तो तुम भी हमारी तरह जमीन पर चल सकने की बात करते नाकि आसमान में उड़ने की शेखियां बघारते’ पैबन्द लगे नीले बैग ने कहा। यह सुनकर नीले बैग को झटका लगा। ‘तुम्हारी ये मजाल’ नीला बैग गुस्से से कांपने लगा ‘तुम ऐसा क्या कर लेते हो जमीन पर, तुम में ऐसी क्या खास बात है जिस पर तुम्हें अभिमान है ?’ यह चुनौती थी पैबन्द लगे नीले बैग के लिए।
‘जानना चाहते हो तो सुनो। मैं जिस परिवार की सम्पत्ति हूं वह भी प्रवासी परिवार है मगर दुर्भाग्य से उसे प्रवासी मजदूर कहा जाता है यह जानते हुए भी सभी मजदूरी करते हैं। प्रवासी मजदूर हों या प्रवासी श्रमिक, हैं तो ये भी भारतीय। तो इन्हें प्रवासी भारतीय कहने में संकोच क्यों ? खैर छोड़ो, मैं जिस परिवार में रहता हूं वे मुझसे बहुत स्नेह करते हैं बिल्कुल ऐसे जैसे कोई अपनी इकलौती सन्तान से करता हो। ये जो तुम पैबन्द देख रहे हो ये उनके स्नेह के चिह्न हैं। तुम तो जब आते हो उसमें महंगे विदेशी सामान भरके आते हो। वो सामान बंट जाने के बाद तुम खाली हो जाते हो, बिल्कुल खाली।
तुम्हारे खाली अस्तित्व को तभी पूछा जाता हो जब तुम्हें भरना हो। कितने समय तक तुम्हारे जीवन में रिक्तिता रहती है। मगर मेरे जीवन में कभी रिक्तिता नहीं आती। मेरा जीवन हमेशा ही भरा-पूरा रहता है। पूरे परिवार का स्नेह समाया रहता है मुझमें। उनका पूरा जीवन समाया रहता है मुझमें। तुम मुझसे ज्यादा भाग्यशाली कैसे हो सकते हो, तुममें तो सिर्फ सामान भरा होता है, भावनाएं नहीं। तुम्हारे खाली हो जाने के बाद बच्चे भी तुम्हें नहीं पूछते। तुम्हें किसी कोठरी में बंद कर दिया जाता है ?’ पैबन्द लगे नीले बैग ने बात को अल्पविराम देते हुए बात जारी रखी ‘अभी तुम देखना एक ऐसा मंजर जो तुमने कभी देखा ही नहीं होगा…’ इतना कहा ही था कि पानी पीने गया हुआ बालक लौट आया और वह पैबन्द लगे नीले बैग से गले लिपट गया और उस पर झुक कर सोने की मुद्रा में चला गया। ‘देखा, कितना प्यार करते हैं मुझे’ चलते चलते पैबन्द लगे नीले बैग ने कहा जिसे उस बच्चे की मां खींचते हुए फिर से अपने प्रवासी परिवार के साथ निकल पड़ी थी अपने देश।
‘तुम भी तो अपने परिवार की बैसाखी बने हो’ नीले बैग ने कहा ‘तुम में भी तो सामान भर कर ले जाया जा रहा है’ नीले बैग ने कहा।
‘मैं अपने परिवार की बैसाखी नहीं, एक ‘सहारा’ हूं। ये जो तुम बालक को मेरे सीने से चिपटे हुए देख रहे हो न, मैं उस बालक के लिए अपने अन्दर बहुत-से सपने भर कर ले जा रहा हूं। बहुत-सी आशाएं भर कर ले जा रहा हूं। तुम लाए हो कभी सपने भर कर, आशाएं भर कर ? ये जो मां मुझे पकड़ कर ले जा रही है न बिल्कुल वैसे है जैसे यशोदा कृष्ण-कन्हैया को बाहों से पकड़ कर ले जाया करती थी। अब बताओ, कहां मैं, कहां तुम ? है तुम्हारे भाग्य में ये सब ? नहीं। हो भी नहीं सकता। हां, यदि तुम अपना भाग्य बदलना चाहो तो मेरे स्वामी के परिवार जैसे परिवारों का सहारा बनो, अपने अन्दर उनके बच्चों के सपनों को भरो, आशाओं को भरो, जमीन पर रहकर चलो। और फिर जब मैं तुम्हें बन्धु या भैया कहूं तो तुम भी मुझे प्रेम से बन्धु या भैया कहो’ चलते चलते पैबन्द लगे नीले बैग ने नीले बैग से मुस्कुराते हुए कहा।
‘प्रिय बन्धु, भैया, मैं तुमसे शीघ्र ही मिलूंगा’ नीले बैग की आंखों में यह सारा मंजर देखकर आंसू थे और वह डबडबाई आंखों से उन सैंकड़ों, लाखों ‘प्रवासी भारतीयों’ को भूखे, प्यासे जाते हुए देख रहा था। वह छटपटा रहा था कि उसका ‘प्रवासी भारतीय’ मालिक उसे मुक्त कर दे तो वह जी भर कर उन ‘प्रवासी भारतीयों’ की सेवा करे जो वापिस जा रहे हैं। वह चाह रहा था कि कोई बालक उसके सीने से लिपट जाए और वह उसे भर-भर कर सपने दे सके। वह चाह रहा था कि उसे भी कोई यशोदा मैया कृष्ण-कन्हैया की भांति बाहों से पकड़ कर चले। वह चाह रहा था कि श्रीकृष्ण की उंगली पर उठा वह गोवर्धन पर्वत बन जाये जिसके नीचे सभी को आश्रय मिल जाये। इसी चाह में वह चल पड़ा था अपने ‘प्रवासी भारतीय’ मालिक से सदा के लिए छुट्टी मांगने। ‘जल्दी मिलते हैं ‘प्रवासी भारतीयो’ जल्दी मिलते हैं मेरे बन्धु’ कहता हुआ नीला बैग पैबन्द लगे हुए नीले बैग को जाते हुए देखता रहा।