पत्थर का आदमी
पत्थर का आदमी
महाराज विक्रमादित्य ने पुनः वेताल को पेड़ की डाल से उतार कर अपने कंधे पर डाला और ख़ामोशी से श्मशान से चल पड़ा। तभी वेताल की आवाज वायु में गूंज उठी और वो बोला, "महाराज किस प्रकार का श्रम आप कर रहे है मेरी समझ से बाहर है? सदियाँ बीत गई है आपको मुझे उस तांत्रिक के पास ले जाने का प्रयास करते हुए। युग बदले और आपके इन प्रयासों पर चंदामामा नाम की बाल पत्रिका में लगभग ४० वर्षो तक विभिन्न लेखकों के द्वारा बहुत ही अच्छी कहानियाँ लिखी गई, बाद में बहुत ही बेवकूफाना टीवी सीरियल बनाए गए। मैं त्रिकालदर्शी हूँ सब देखता और समझता हूँ लेकिन आप जैसा न्यायप्रिय राजा ऐसे श्रम में लगा है जिसने प्रतिफल क्या मिलेगा कदाचित आप ही जानते है। सदैव की भांति आप मुझे पुनः ले चले है और मेरे पास भी समय व्यतीत करने के लिए एक कहानी है, तो आप अपना श्रम भुलाने के लिए यह कहानी सुनिए। युग बदल चुका अब पृथ्वी पर राजा महाराजा नहीं सामान्य मानव निवास करते है लेकिन उनके कार्य बहुत असामान्य है, ऐसा ही एक व्यक्ति विजय अपनी मासूम बहन दिवा के बलात्कारी और हत्यारे जुगल की हत्या की एवज में मिली उम्रकैद के बीस साल बिता कर जब जेल से रिहा हुआ तो वो ५० साल का हो चुका था और उसके लिए सारी दुनिया बदल चुकी थी। जेल जाने से पूर्व वो एक महाविद्यालय में गणित का सह प्राध्यापक था, लेकिन अब उसका स्थान कोई और ले चुका और उसके लिए महाविद्यालय में कोई काम नहीं था। जेल द्वारा सुझाए गए कई स्थानों पर भी उसे कोई काम न मिला। विल सिटी स्थित उसका पुश्तैनी घर आज बिक्री होकर चौथे मालिक के पास था। उसका घर उसके ही किसी रिश्तेदार ने उसके मृत माता-पिता से हथिया कर बेचा गया था और उसमें अब एक विधवा अपनी तीन लड़कियों के साथ रह रही थी जिनसे घर वापिस लेना या माँगना विजय को उचित नहीं लगा। दस दिन तक सड़कों पर भटकते हुए जेल से कमाया हुआ धन भी अब समाप्त हो चुका था।
चार महीने सड़कों पर धक्के खाने के बाद उसे एक निर्माण स्थल पर मजदूर का काम मिला साथ ही रहने के लिए निर्माण स्थल के पास ही टिन का बना एक कमरा जो गर्मी में भट्टी की तरह दहकता था। आज जब विजय वापिस अपने कमरे पर आया तो एक अधेड़ उम्र की महिला उसका इंतजार कर रही थी।
"विजय जेल से आने के बाद मजदूरी करनी पड़ रही है, तुम जैसा कातिल तो लोगों के कत्ल करके बहुत पैसा कमा सकता है......" वो महिला बोली।
"कौन हो तुम, क्या कर रही हो यहाँ?" विजय आश्चर्य से बोला।
"मेरा नाम वीना है, जुगल की विधवा......अब पहचाना।" वो महिला बोली।
"हाँ पहचाना, क्या चाहती हो?" विजय ने पूछा।
"मेरी बेटी को जिस्मफरोशों ने एक बदमाश और उसके तीन बेटों को बेच दिया है...... मेरी बेटी को बचा लो........." वीना दुखी स्वर में बोली।
"अपनी बहन के हत्यारे की बेटी को.........बर्बाद करने वाले की बेटी को........"
"हाँ क्योंकि अब वो जिन्दा नहीं है, जिन्दा होता तो कोई इस तरह उसकी बेटी का व्यापार करने की हिम्मत न करता।" वीना रोते हुए बोली।
"मेरे पास समय खराब करने की अपेक्षा पुलिस के पास जाओ......." विजय अपने काम में व्यस्त होते हुए बोला।
"तीन महीने से पुलिस के ही चक्कर लगा रही थी......जब कुछ भी हासिल न हुआ तो महंगी उजरत भर के एक प्राइवेट जासूस को इस काम पर लगाया, उसी ने बताया कि मेरी बेटी को पुरुषपुर का एक अपराधी जमींदार अपने चार बेटों और खुद की पत्नी बनाए हुए है। मैंने पुलिस को सारे सबूत दिए लेकिन पुलिस वहां जाकर उससे मोटा पैसा खाकर चुपचाप बैठ गई है......मैं अब थक गई हूँ.....कहीं से पता लगा तुम जेल से छूट आये हो तो बड़ी आस लेकर तुम्हारे पास चली आई......वीना रोते हुए बोली।
"रोओ मत...... मैं अकेला कुछ न कर सकूँगा, मुझे किसी अपराधी का साथ चाहिए......कल तुम विल सिटी की अपराधी रानी के समक्ष अपनी समस्या रखो.....मैं भी कुछ चक्कर चलाता हूँ उससे मिलकर......" विजय विचारपूर्ण मुद्रा में डूबते हुए बोला।
आज वो विल सिटी की अपराध की दुनिया की एक हस्ती रजिया बाजी के समक्ष बैठा था।
"विजय क्या तुम्हे पता है मै क्या करती हूँ?" रजिया बाजी ने विजय से पूछा।
"जी मैं जानता हूँ......." विजय ने संक्षिप्त से जवाब दिया।
"फिर भी मेरे साथ आना चाहते हो......मैं अपराध की दुनिया में पैसा कमाने के लिए हर बुरा या अच्छा काम करती हूँ। तुम बीस साल की सजा काट कर जेल से आये हो, किसी ने तुम्हें मेरे पास ऐसे ही भेज दिया होगा। ........क्या तुम्हें पता है जब किसी बैंक या दुकान को लूटते है तो पुलिस हमें जिन्दा या मुर्दा पाने के लिए इनाम घोषित कर देती है और इनाम के लालच में हमारे लोग हमें धोखा दे देते है और हमें मरना पड़ता है। तुम अपनी बहन के बलात्कारी हत्यारे को मारकर जेल काटते हो और यहाँ तुम्हें न जाने कितनी मासूम लड़कियों की अस्मत का सौदा भ्र्ष्ट अधिकारियों, मक्कार नेताओं और जिस्म के भूखे सामान्य व्यक्तियों से करना होगा। तुम्हें अवैध जुआ घर चलाने होंगे, हत्याएं करनी होगी, मासूम बच्चों को जिस्मफरोशी के धंधे में डालना होगा। एक कड़वा सच और भी है कि इन सब कामों के एवज तुम्हें बेचैनी भरी नींद, विरोधी गैंग या पुलिस की गोली के अतिरिक्त कुछ न मिलेगा। और एक बार तुम इस दुनिया में आ गए तो फिर मौत ही तुम्हें इस दुनिया से छुटकारा दिला सकेगी। तुम पढ़े लिखे आदमी हो, आज बाहर की दुनिया में तुम्हारे लिए कोई काम नहीं है लेकिन इंतजार करोगे तो तुम्हें कोई न कोई काम मिल ही जाएगा। इसलिए इस अपराध की दुनिया में आने से पहले विचार कर लो मै तुम्हे एक हफ्ते का समय देती हूँ, सोच विचार कर लो तब फिर आना।" कहकर रजिया बाजी चुप हो गई।
"बाजी एक हत्या करने के बाद मैं वो आदमी बन चुका हूँ जो यदि शराफत की जिंदगी जीना भी चाहे तो जी नहीं सकता। मुझे आपके पास बहुत सी वजह ले आई है मुझे आप अपने साथ आने दे, मैं आपका आभारी रहूँगा।" विजय ने जवाब दिया।
"तो ठीक है तुम आज से मेरे साथ काम करोगे लेकिन अपनी वफादारी साबित करने के लिए तुम्हें कई लोगों के कत्ल करने होंगे........"
"कई लोगो के कत्ल?"
"हाँ कई लोगो के क़त्ल।" रजिया बाज़ी विचारपूर्ण मुद्रा में बोली।
"कौन है वो लोग?" विजय ने पूछा।
"विशाल वीना को बुलाओ।" रजिया बाज़ी ने अपने एक आदमी से कहा।
तभी एक दुबली सी महिला उन दोनों के सामने आई और बोली, "रजिया बाज़ी मेरी बेटी को बचाओ........."
"विजय ये वीना है इनकी बेटी इंजिनीरिंग में फ़ाइनल ईयर की छात्रा है लेकिन वो जिस्मफरोशों के चक्कर में पड़कर एक खूंखार इंसान को बेची जा चुकी है......वो इंसान अब उसे अपने चार बेटों की और खुद की पत्नी की तरह प्रयोग कर रहा है, तुम उस आदमी के गाँव पुरुषपुर जाओ और पूरे गाँव के सामने उन पाँचों बाप-बेटों का कत्ल करके उस लड़की को बचा कर लाओ, यही तुम्हारा मेरे प्रति वफादारी साबित करने का मौका है।" रजिया बाज़ी हँसकर बोली।
"तो आप इस तरह के काम भी करती हो?" विजय ने आश्चर्य से पूछा।
"नहीं करती......लेकिन ये औरत है और मैं भी औरत हूँ, इसलिए दिल पसीज गया.......अब जा निहत्थे उन्हें मारकर इसकी बेटी को बचा और अपना इम्तहान पास कर।" रजिया बाजी मीटिंग को खत्म करते हुए बोली।
"ठीक है बाजी मैं जाता हूँ ।" कहकर विजय वीना के साथ बाहर आ गया।
"विजय तुम्हारी योजना तो नाकामयाब रही, तुम्हारे कहने से मैं रजिया बाज़ी से मिली और तुम भी उसके गैंग में शामिल होने को तैयार हो गए ताकि उसके गैंग की मदद से मेरी बेटी को बचा सको लेकिन उसने तो तुम्हें अकेले ही इस मुहीम पर भेज दिया ......"
"सुनिए वीना जी जब मैंने आपके पति को मारा था तब मेरे पास कोई मदद नहीं थी, इसलिए मुझे इस काम को करने में भी कोई दिक्कत नहीं होगी.....आप जाएं.......मैं जाता हूँ, कामयाब हुआ तो तुम्हारी बेटी को मुक्ति मिलेगी मारा गया तो मुझे....."
"तुम निहत्थे कैसे करोगे ये सब? वो पाँच कातिल है वो तुम पर गोलियां चलाएंगे और तुम हाड़-मांस के बने हो पत्थर के नहीं......." वीना चिंता से बोली।
"आप कुछ हद तक सच हो लेकिन तुम्हारे पति को मारकर मैं पत्थर का आदमी बन गया हूँ......" कहकर विजय आगे बढ़ गया।
"तो महाराज इस प्रकार विजय एक ही पल में अपराध की दुनिया में जाने के लिए राजी हो गया। उसे उम्मीद थी रजिया बाजी उसकी मददगार साबित होगी लेकिन उसे मदद न मिली लेकिन फिर भी वो अकेला मरने और मारने को निकल पड़ा। क्या वो मुर्ख है जो अपनी बहन के बलात्कारी और हत्यारे की बेटी को बचाने निकल पड़ा? क्या उसका बीस साल की जेल काटकर मन नहीं भरा जो पुनः अपराध करने निकल पड़ा? मेरे इन सब प्रश्नों के उत्तर दीजिए, अगर तुम बोले तो मैं पुनः उसी पेड़ पर जा लटकूँगा और यदि तुम प्रश्नों के उत्तर जानते हुए भी जवाब न दोगे तो तुम्हारा सिर फटकर टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा।" कहकर वेताल चुप हो गया।
कुछ देर चुप रहने के बाद विक्रम बोला, "इस लोक में कुछ ऐसे व्यक्ति होते है जो अपना भाग्य सोच समझ कर चुनते है। विजय भी ऐसे लोगों में ही है, जब उसने अपनी बहन के हत्यारे को मारा तो उसे पता था कि उसे फाँसी होगी लेकिन फिर भी उसने अपनी बहन के हत्यारे को मारा और उम्र कैद की सजा पाई। लेकिन इस बार अपराध की दुनिया में उसका आना एक सोची-समझी योजना है। जेल में बीस साल बिताकर वह बहुत कठोर हो चुका है, पुरुषपुर के उन पाँच बदमाशों को चुटकी में मसल देगा और फिर वो रजिया बाजी के गिरोह में शामिल होकर अपराध की दुनिया में नई इबारत लिखेगा।"
विक्रम के बोलते ही वेताल पुनः श्मशान के पेड़ पर जा लटका और विक्रम उसे पेड़ से उतारने के लिए फिर से श्मशान की तरफ दौड़ पड़ा।