पत्नी प्रेम
पत्नी प्रेम
रघु मीरा जी के घर सुबह पाँच बजे से ही काम करने आ जाता। रघु दस साल की उम्र से ही मीरा जी के घर में काम करता..रघु रोज अपनी सायकिल से काम पर आ जाता। व दिन भर मीरा जी के घर में झाड़ू-पोछा से लेकर दूध लाना, पेपर लाना, बगीचे में पानी देना सब जिम्मेवारी बहुत ही खुशी खुशी निभाता...मीरा जी के भी चार बच्चे है वह उन्ही लोग के लालन पालन में परेशान रहती है। पर, रघु के आ जाने से उनकी गृहस्थी में थोड़ा सुकून और आराम मिला। रघु को मीरा जी के घर में काम करते करते बारह तेरह साल बीत गया। मीरा जी के बच्चे भी बड़े हो गये। मीरा जी दोनों बेटी की शादी कर दी। दोनों बेटे बाहर रहकर पढ़ाई करते...घर में मीरा जी अपने पति समीर मिश्रा के साथ रहती। कभी-कभार दोनों बेटियाँ मायके आकर मम्मी पापा से भेंट मुलाकात कर चली जाती..।
रघु दो-चार दिन से नहीं आ रहा ....मीरा जी परेशान हो गई सोची फोन करके पूछूं ...क्यों नहीं आ रहा...। चार दिन बाद रघु आया। मीरा जी को मिठाई का डिब्बा देकर शरमाते हुये बोला...दीदी मेरी शादी बगल के गाँव की लड़की से हो गई हैं..शादी जल्दी में हुई है इसलिये हम आपको बुला नहीं सके हैं। मीरा जी हँस कर बोली ...ठीक है तब अपनी दुल्हनिया से भेंट कब कराओगे...। रघु बोला...दीदी जब आपको मन करे तब हमारे घर आइये आपका स्वागत है....। रघु अपने काम पर आ गया...रघु के पास मीरा जी ने नया मोबाइल देखा..शायद शादी में मिला होगा..मीरा जी ने सोचा..फिर अपने काम में लग गई... रघु की शादी को दस दिन बीत गये..अब भी रघु मीरा जी के घर काम करता पर जैसे ही मोबाइल पर फोन आता तो मोबाइल लेकर पीछे बगीचे में चला जाता...। वहीं पर बात करके तब घर के अंदर आता...। मीरा जी रघु के पत्नी प्रेम देख मुसकुरा देती....। आज इतवार के दिन मिश्रा जी घर पर हैं... मीरा जी अपने पति से बोली....चलिये आज रघु की बीबी को देख आया जाय ...नयी दुल्हन को उपहार दे दिया जाय...। मीरा जी रघु को पुत्र जैसा स्नेह देती ...दोनों नये जोड़े के लिये अपने से कपड़े, गहने मिठाई ,पैसे तैयार कर के रखे...।
मिश्रा जी मनमौजी किस्म के व्यक्ति ठहरे...उन्होंने कहा.... चलिये मैं आपको रघु के घर छोड़ दूँगा ..उधर ही मुझे मैनेजर साहब से मिलना है ..आप रघु के घर रहियेगा.. मैं उधर से आऊंगा तो साथ में आ जाईएगा....। मिश्रा जी
बाइक से रघु के घर मीरा जी को छोड़ दिये..मिश्रा जी मैनेजर साहब के पास चले गये। रघु मीरा जी को देख हाथ जोड़कर प्रणाम किया।
मीरा जी को देख रघु बहुत ही खुश हुआ...। मीरा जी को बहुत ही प्रेम से स्वागत किया..। मीरा जी रघु से बोली...अपनी दुल्हनिया को दिखावो। रघु अपनी पत्नी को आवाज देकर बुलाया....जानकी आओ...दीदी तुमको देखने आई हैं। जानकी घुंघट करके मीरा जी के पास आई...मीरा जी उसका घुंघट उठा कर उसे उपहार दिया..और बोली रघु का ख्याल रखना..। जानकी कुछ नहीं बोली। बस मीरा जी के पैरों को छूकर आशिर्वाद लेली। जानकी वहीं खडी़ रही। मीरा जी जानकी से पूछी..तुम्हारे घर में कौन-कौन है? तपाक से रघु ही बोला...दीदी, जानकी भी मेरी जैसी है..इसके भी माँ -बाप नहीं हैं। चाचा -चाची ने पाला। उन्हीं लोगों ने शादी कर दी। मीरा जी हँस कर रघु से बोली...क्यों रे रघु तेरी बीबी मुझसे बात नहीं करेगी जो तू उसके सवाल का जवाब दे रहा। तब रघु बोला...दीदी जानकी बोल नहीं सकती...। मीरा जी ये बात सुन सकते में आ गई... रघु से बोली ..जब तेरी बीबी बात नहीं करती तो तू घंटो बगीचे में मोबाइल पर किस से बात करता..।
रघु बोला...दीदी मै जानकी के हर इशारे को समझता हुँ....जानकी जब चूड़ी बजाती है तो कहती तुमने इतनी देर आने में क्यों की।
जानकी जब पायल छनकाती है तो पूछती है कि तुम खाना खाये हो...। दीदी, मेरी जानकी के हर इशारे में मेरे लिये प्रेम बसा है जो कि मैं समझता हूँ ...मीरा जी रघु एवं जानकी के प्रेम को देख रोमांचित हो जाती।
