Arvind Kumar Srivastava

Abstract

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Arvind Kumar Srivastava

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परवाह

परवाह

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दोपहर के एक बज गये थे] नीलिमा की वीडिओ कॉन्फ्रेंसिंग से होने वाली सप्ताहिक मीटिंग समाप्त हो गयी] उसका कार्य इस दौरान सराहनीय रहा था जिसकी तारीफ़ कम्पनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मि0 दास ने स्वयं की थी] कम्पनी के लिये किये गये अपने कार्यों है वह भी प्रसन्न थी। दुनिया भर में भयावह रूप से एक अनजान वायरस से फैल रही बीमारी के कारण उसकी कम्पनी ने कार्यालय परिसर को बन्द कर अपने सभी कर्मचारियों से घर से कार्य करने की अनुमति प्रदान कर दी थी इस कारण नीलिमा पिछले लगभग एक सौ बीस दिन से अपने एक कमरे घर में ही बन्द होकर रह गयी थी।अपने कर्मचारियों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए कम्पनी ने सरकार द्वारा लिये गये बन्द के निर्णय से पहले ही अपनी कम्पनी के सभी कार्यालय परिसरों को बन्द करने का निर्णय ले लिया था। 

नीलिमा एक मन्टीनेशनल साफ्टवेयर कम्पनी में कार्य करती थी जिसका ऑफिस  भारत के गाजियाबाद में सेक्टर 105 में था। नीलिमा वही थोड़ी दूर लगभग पांच किमी0 दूर एक आवासीय कालोनी में एक कमरे का स्वतंत्र मकान ले कर रह रही थी, नीलिमा के मकान मालिक मि0 राघव वर्मा जो एक रिटायर्ड बैंक अधिकारी थे, वे मकान के निचले तल पर रहते थे, नीलिमा प्रथम तल पर और उसके साथ लगे एक कमरे के ही दूसरे भाग में रहने वाली अपर्णा जो एक लॉ  विद्यार्थी थी वह भी रहती थी किन्तु इस महामारी के फैलने के डर से पहले ही अपने गाँव लौट गयी थी और अब नीलिमा मकान के दूसरी मंजिल पर अकेले ही रह गयी थी, दैनिक उपयोग और आवश्यक प्रत्येक वस्तु की आपूर्ति सुगमता से घर पर ही हो जाया करती थी, फोन के माध्यम से।

वीडियो कान्फ्रेंसिग से नीलिमा की मीटिंग लगभग दो घण्टे चली थी, उसका मोबाइल काफी गरम हेा गया था, उसने मोबाइल को मेज पर एक ओर रखा और अपनी कुर्सी पर आंखे बन्द कर टेक लगा कर थोड़ा निढ़ाल होकर बैठ गयी, थोड़ी देर यू ही बैठी रही शान्त और उन्मुक्त तभी उसे याद आया कि मीटिंग के दौरान उसकी मां का फोन आया था शायद - तीन या चार बार, उसने मोबाइल उठा कर देखा तो मां की पांच मिस कॉल थी, वह मां को अच्छी तरह समझती थी एक बेटी के लिये मां की चिन्तांऐ विविध प्रकार की होती है, उसने बिना कोई समय व्यतीत किये मां को फोन लगाया ‘‘कहां थी। मैं कब से तुझे फोन लगा रही थी।’’ मां के शब्दों में उलाहना कम और प्यार अधिक था जिसे वह भी समझ रही थी।

‘‘मां आप तो जानती ही है कि आज के दिन हमारी कम्पनी की साप्ताहिक मीटिंग रहती है।’’

‘‘जानती हूँ किन्तु वह तो शाम को होती है।’’

‘‘मां! मीटिंग है कभी भी हो सकती है, हां अक्सर शाम को ही होती है।’’

‘‘तू ठीक है न, कुछ खाया कि नहीं, कुछ बनाया भी था या यू ही मीटिंग कर रही थी।’’

सवाल तो कई थे किन्तु सब का मतलब एक ही था, बेटी की फिक्र, यह रोज के सवाल थे, और उसने भी अपना रोज वाला ही जवाब दिया ‘‘हां मां, सुबह नाश्ता बनाया था, अभी लंच करूंगी, मेरे खाने - पीने की चिन्ता न किया करो मैं अब बच्ची नहीं रही, अपना पूरा ख्याल रखती हूँ।’’

‘‘ठीक है पहले लंच कर ले फिर बात करती हूँ’’

‘‘मां! मुझे कम्पनी का काम करना है, बात रात में होगी, आप अपना ख्याल रखियेगा, बाहर मत निकलियेगा, किसी भी बाहरी व्यक्ति को पास जाने या पास बुलाने की आवश्यकता नहीं है, सभी से दूर से बात कीजिये।’’

‘‘ठीक है - ठीक है’’ और मां ने फोन कट दिया।

 नीलिमा का मन काफी हल्का हो गया था, वह धीरे से उठी और मुख्य सड़क की ओर खुलने वाली बालकोनी में आ कर खड़ी हो गयी सड़क के दोनों ओर उसने देखा दूर - दूर कोई नहीं था, सन्नाटा पसरा हुआ था, चैबीस घण्टे व्यस्त रहने वाली सड़क एक दम से सूनी हो गयी थी, तभी तो कहते है मनुष्य सक्षम है समर्थ है किन्तु प्रकृति के आमन्त्रण के सामने असहाय भी है, सारे वैज्ञानिक प्रयासों के बाद भी कुछ तो ऐसा है जिसके सामने मनुष्य के प्रयास विवश है, अंततः प्रकृति की ही विजय होती है, अभी न जाने कितने दिनों या महिनो तक मनुष्य को स्वयं में सिमटे हुए एकाकी जीवन व्यतीत करना पडे़गा कुछ निश्चित नहीं है, नीलिमा विचारों से संघर्ष करती हुई अपनी बलकोनी से सामने देखा तो सड़क के उस पर लगे हुए नीम के पेड़ के नीचे एक कुत्ता अचेत सा पड़ा हुआ था और पेड़ के पीछे वाले घरों में रहने वाले दो बच्चे उस कुत्ते को भगाने का प्रयास कर रह थे किन्तु वह उठ कर खड़े होने की कोशिश करता और फिर गिर जाता, उसके शरीर में इतनी शक्ति नहीं थी कि वह चल भी सके, नीलिमा ने देखा यह वही कुत्ता था जो रोज सुबह उसकी स्कूटी के पीछे भागता था जब वह अपने ऑफिस जाने के लिये बाहर निकलती थी, रोज रात को हर आने - जाने वाले पर वह भोंकता था, एक तरह से वह आस - पास के सभी घरों की रखवाली करता रहता था, उस मुहल्ले में रहने वाले सभी लोगो को पहचानता था किन्तु किसी बाहरी को वह सरलता से किसी भी दरवाजे पर ठहरने नहीं देता।

हमेशा चैकन्ना और उछलते - कूदते रहने वाले कुत्ते को अचानक इस प्रकार निढ़ाल देखकर वह स्वयं को रोक नहीं पायी, उसने सोचा शायद लाकडाउन के कारण उसे पर्याप्त भोजन नहीं मिला है वह भूखा है और इसी कारण ठीक से उठ - बैठ नहीं पा रहा था, अपने लंच के लिये रखे हुए भोजन को एक पुराने अखबार में लपेटा और उसे लेकर वह कुत्ते के पास पहुंच गयी, अपने हाथों से उसे खिलने की कोशिश की थोड़े प्रयास के बाद वह धीरे - धीरे खाने लगा, पास खड़े दोना बच्चे से निलिमा ने अपने घर से पानी लाने को कहा एक बच्चा मिट्टी के एक प्याले में पानी ले आया, पानी पीने के बाद वह कुत्ता थोड़ा सीधा होकर बैठ गया था और नीलिमा की ओर इस प्रकार से देख रहा था जैसे उसके प्रति वह कृतज्ञ हो गया हो, नीलिमा द्वारा दिया गया भोजन यद्यपि उसके लिये पर्याप्त नहीं था, फिर भी उसके अन्दर थोड़ी चेतना लौट आयी थी दोनो बच्चे ने इस घटना को अपने - अपने घरों में बता दिया था और और फिर सभी ने अपने आस - पास एक दूसरे को, कुछ ही समय में हर एक के घर से कुछ न कुछ उसके खाने के लिये आ गया था, मुहल्ले के बच्चे और युवा नीलिमा की ओर स्नेह और कौतूहल से देख रहे थे। अच्छी तरह खा चुकने के बाद उसमें स्फुर्ति जाग गयी थी, वह तेजी से उठा और पूरे मोहल्ले का एक चक्कर लगा कर फिर वही वापस आ कर बैठ गया, सभी मोहल्लेवासी एक दूसरे से पर्याप्त दूरी रख कर खड़े थे और आपस में मिलकर यह तय कर चुके थे कि अगले दिन से पूरे मोहल्ले में रहने वाले या निकलने वाले सभी पशु पक्षियों के लिये भी कुछ न कुछ खाने और पीने के लिये पानी की व्यवस्था नियमित रूप से की जाये, जिससे मोहल्ले के आस - पास रहने और घूमने वाले किसी भी पशु या पक्षी को खाने - पीने की कोई कमी न रहे। नीलिमा पूरी तरह अपने कार्य एवं मोहल्ले वालों के स्नेह, सहयोग तथा उनके सामूहिक निर्णय से तृप्त और संतुष्ट हो कर अपनी कम्पनी का कार्य करने के लिये कुर्सी पर उत्साह से भर कर बैठ गयी थी।


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