अर्थहीन प्रयोग
अर्थहीन प्रयोग


सत्ता से असहमत और विरोध का इतिहास बहुत पुराना है किन्तु कभी कोई विरोध बिना नेतृत्व कर्ता के कभी सम्भव नही रहा, इस बात का इतिहास स्वयं साक्षी है, भारत के इतिहास में यह तथ्य आश्र्चयजनक रूप से सत्य है कि माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश पर जब न्यायालय द्वारा नामित प्रतिनिधियें को दिल्ली के शाहीन बाग जो कि विरोध प्रदर्शन का स्थल था, पर न्यायालय के प्रतिनिधियों से बात-चीत करने वाला कोेई नेता उपलब्ध नही था प्रतिनिधि भीड़ से अपनी बात कह कर वापस लौटते रहे वह भी लगातार कई दिनों तक, और यह तो स्वाभाविक ही था कि भीड कुछ भी तय नही कर सकती थी और न्यायालय का यह उत्कृष्ट प्रयास एक हास्यास्पद प्रयास बनकर रह गया। यह विरोध और अन्दोलन कितना निरर्थक है यह इस बात से निश्चित हो जाता है कि शाहीन बाग में जुडी हुई हजारों की भीड के लिये बैठने हेतु टेन्ट और खाने हेतु बेहतरीन स्वादिष्ट पकवान पीने के लिये मिनरल वाटर की बोतलों की व्यवस्था करने वाले न्यायालय के प्रतिनिधियों के समक्ष बात-चीत के लिये उपस्थित नहीं हुये, वे प्रतिदिन शाहीन बाग में कई हजार महिलाओं बच्चों और पुरूषों की भीड जुडी रहे इसी व्यवस्था पर लाखो व्यय करते रहे किन्तु सामाने आने का साहस कभी जुटा नहीं सके। भारत के इतिहास में यह पहला आन्दोलन है जिसमें नेतृत्व कर्ता भीड को आगे करके स्वयं हमेशा पीछे ही रहे। मेरी जानकारी के अनुसार सी0सी0ए0 भारत की लोकतांतत्रिक प्रकृया में पूर्ण बहुमत से पारित एक विधयक है, विरोध उचित हो सकता था यदि कोई स्पष्ट कारण होता, शाहीन बाग की भीड कभी कोई करण स्पष्ट नही कर सकी, भीड कर भी नही सकती थी वे तो केवल खान-पान की व्यवस्था को देख कर उपस्थित थे उन्हे पूरी तरह बरगलाया गया था, शाहीन बाग की भीड भारत के मुख्य प्रतिपक्षी दल के एक बडे नेता द्वारा दिल्ली की रामलीला मैदान में दिये गये एक भडकाऊ बयान के बाद जुटनी शुरू हुई थी। मेरा विश्वास है भारत के किसी भी नागरिक को कभी भी बाहर निकाला नहीं जा सकता किन्तु नागरिकों की बेहतर और उचित व्यवस्था के लिये उनकी पहचान बहुत आवश्यक है यह कार्य उन्नीस सौ पचास से साठ के दशक में ही किया जाना चाहिए था, किन्तु भारत को जाति और धर्म के आधार पर बाॅट कर सत्ता के शीर्ष पर टिके रहने के उद्देश्य ने उस समय यह सम्भव नही हो सका था।
भारत के भू-भाग पर रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति समान रूप से महत्वपूर्ण है, किन्तु यदि कोई व्यक्ति हमें धोखा दे कर गलत तरह से हमारे बीच घुस आया है तो उसे बाहर निकालना, उसे नागरिक आधिकारों से वंचित करना हमारा प्रथम उत्तरदायित्व है, और यह कार्य सन्तुलित और विवके पूर्ण तरीके से किया जाना चाहिए जिससे किसी नागरिक को कोई असुविधा न हो और साथ ही कोई विदेशी घुसपैठिये के रूप मे हमारे बीच रह भी न सके, यह हम सब की और सरकार की भी जिम्मेदारी है, इस कार्य को सभी के सहयोग से निश्पक्षता और धर्म जाति के बिना किसी भेद-भाव के सहजता और सरलता से किया जाना चाहिये। शाहीनबाग एक अर्थहीन प्रयोग है, देश में अस्थिता उत्पन्न करने का सत्ता प्राप्त करने का देश को जाति और धर्म मे बांट देने का।
अरविन्द कुमार श्रीवास्तव