Arvind Kumar Srivastava

Abstract

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Arvind Kumar Srivastava

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बदनाम भूत बंगले का रहस्य

बदनाम भूत बंगले का रहस्य

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बदनाम भूत बंगले का रहस्य


राकेश अपने बैंक की नई ब्रांच में में ज्वाइन करने के लिए जब माधवपुरा रेलवे स्टेशन पर उतरा तो रात के आठ बज चुके थे, ट्रैन अपने समय से पांच घंटे लेट थी, जिस ब्रांच में उसे ज्वाइन करना था वह माधवपुरा से बीस किलोमीटर दूर थी और जैसा कि उसे बताया गया था उसकी ब्रांच मुख्य मार्ग से लगभग पन्द्रह किलोमीटर अंदर एक कच्ची सड़क पर थी और दस किलोमीटर का पहाड़ी रास्ता था, आने - जाने का कोई साधन नही था इस कारण राकेश ने अपनी मोटरसाइकिल पहले ही रेलवे से बुक कर दी थी माधवपुरा के लिया जो एक दिन पहले ही वहां पहुँच गई थी जिसे वह रेलवे के पार्सल घर से ले सकता था I प्रमोशन के बाद राकेश की पहली बार ब्रांच मैनेजर के पद पर नियुक्ति हुई थी इस कारण वह बहुत उत्साहित था, राकेश को बैंक की ग्रामीण शाखाओं में कार्य करने अनुभव नहीं था किन्तु बैंक की पॉलिसी के अनुसार प्रत्येक अधिकारी के काम से काम तीन वर्ष बैंक की ग्रामीण शाखाओं में कार्य करना अनिवार्य था, जिस कारण राकेश ने प्रमोशन के बाद अपनी पहली पोस्टिंग के रूप में कार्य करने के लिये बैंक के ग्रामीण शाखा को चुन लिया था और उसकी पोस्टिंग यहाँ हो गई थी l


माधवपुरा रेलवे स्टेशन पर उतर कर उसने इधर - उधर देखा कोई कुली नही, उसे लगा कि माधवपुरा काफी छोटी जगह है उसके अनुमान से भी छोटी, यह तो अच्छा था कि उसके पास सामान काम था पहली बार आने के कारण वह बहुत कम और केवल आवश्यक सामान ही वह लाया था, एक ब्रीफकेश और एक बैग, स्टेशन पर लाइट नहीं थी चरों और अँधेरा पसरा हुवा था केवल एक कमरे से प्रकाश की हल्की सी किरण आती हुई दिखाई दे रही थी, वह शायद स्टेशन मास्टर का कमरा होगा उसने सोचा, स्टेशन पर उसके सिवा कोई और नहीं उतरा था और न हे कोई ट्रैन पर बैठा था, उसके उतरने के तुरन्त बाद ट्रैन ने सीटी दी और छूट गई इस स्टेशन पर ट्रैन के रुकने का समाया एक मिनट ही था, उसने अपना सामान उठाया और स्टेशन मास्टर के कमरे की ओर धीरे - धीरे बढ़ चला, वहां एक लैम्प जल रही थी, स्टेशन मास्टर अपनी कुर्सी पर तन कर बैठा हुआ था, अपने सामने एक अजनबी को देख कर वह सीधे हो कर बैठ गया राकेश कुछ पूछता इसके पहले ही उसने कहा " मैं क्या कर सकता हूँ आप के लिये" उसकी आवाज में प्रयाप्त विनम्रता थी l

"श्रीमानजी मैं यहाँ नया आया हूँ मेरी पोस्टिंग इंडियन कमर्सियल बैंक की रायगढ़ ब्रांच में ब्रांच मैनेजर के पद हुई है, मुझे कल सुबह ज्वाइन करना है, रात में रुकने के लिये कोई उचित और सुरछित जगह चहिये, मैंने यहाँ के लिये अपनी मोटरसाईकिल बुक की थी क्या वह यहाँ आ गई है. l"

"कोई मोटरसाईकिल आई तो है किन्तु वह आप को कल सुबह नौ बजे ही मिल सकेंगी जब हमारे पार्सल बाबू आयेंगे ll"

"ठीक है मुझे कल किसी भी समय ज्वॉइन करना है, और रहने के लिये l"

"यहाँ छोटी सी धर्मशाला है एक पुराने मंदिर के ट्रस्ट की, आप वहां रुक सकते हैं, सामान्यतः धर्मशाला में कोई रुकता नहीं है फिर भी वहां व्यवस्था है l" 

थोड़ा ठहर कर स्टेशन मास्टर ने फिर कहा l

"आप स्टेशन के मुख्य गेट से बहार निकालें सात सौ मीटर जाने के बाद दाहिने ओर एक कच्चा रास्ता जाता है उस पर लगभग चार सौ - पांच सौ मीटर चलने के बाद दाहिनी और ही मंदिर है 'शिव जी' का उसके ठीक पीछे धर्मशाला है, मंदिर का पुजारी ही धर्मशाले की देख - भाल करता है, मंदिर में ही आप को खाने - पीने या चाय भी मिल जाएगी l"

राकेश ने बड़ी कृतज्ञता से "धन्यवाद" कहा और अपना समन उठा कर स्टेशन मास्टर के द्वारा बताये हुये रास्ते से स्टेशन के बाहर आ गया, स्टेशन के बाहर अंधेरा तो था ही पुरी तरह सन्नाटा भी था केवल एक दो कुत्तों के भोकने की आवाजे आ रहीं थे वह भी दूर से, रेलवे स्टेशन नगर से दूर था किसी प्रकार अपना सामान लिये वह धीरे - धीरे आगे बढ़ रहा था, सहसा किसी बिल्ली के रोने की आवाज सुन कर वह चौंक तेजी से आगे बढ़ने के उसने कदम उठाये तो पर सामान के भरी होने के कारण उसे पूरी सफ़लता नहीं मिल सकी अचानक से उसका एक पैर थोड़ी गहरी नाली में पड़ गया, बिल्ली के रोने की आवाज सुनकर ही वह डर तो गया ही था और अब नाली में पैर पड़ने से उसका डर दूना हो गया था परन्तु डर को अपने ऊपर वह भरी होने देना वह नहीं चाहता था किसी प्रकार अपने आप को सभाला अपने पैरों को एक दो बार झटका हनुमानजी का नाम मन ही मन लिया और किसी तरह आगे चलने लगा अभी कुछ ही कदम वह चला था कि सामने लगे हुए नीम के पेड़ पर कोई हलचल हुई सरसराहट की एक धीमे आवाज उसने सूनी चमकती हुई दो आँखों को देखा जो उसी की और घूर रहीं थीं अभी वह अनुमान लगा ही रहा था कि सामने सड़क पर बन्दरों का एक झुण्ड दिखाई दिया जो इधर - उधर उछाल कूद कर रहे थे, नीम के पेड़ से उसकी और घूर रही आँखों की चमक लगातार तेज हो रही थी, थोड़ा सम्हल कर पुनः देखा तो अब चार ऑंखें दिखाई दी दो नीचे और दो उसके ऊपर, नीम के पेड़ की डाल धीरे - धीरे हिलना शुरू हो गई, डाल का हिलना अचानक से तेज हो गया सरसराहट की आवाज के साथ एक और भी आ रही थे जिसे वह समझ नहीं प् रहा था कि यह किसकी है किस प्रकार की, इसके अलावा नीम के पत्ते और डालें आपस में टकरा कर एक अजीब सी आवाज पैदा कर रहीं थी, राकेश ने हनुमान चलीसा पढ़ना शुरू कर दिया उसे कुछ लाइनें ही याद थीं जो कुछ भी याद था उसे वह अब और जोर - जोर से पढ़ने लगा था, उसने महसूस किया कि वह कांप भी रहा है, कुछ भी निश्चय नहीं कर पा रहा था क्या करे आगे बढे या फिर स्टेशन लौट जाय, तभी एक बिल्ली पेड़ से कूदी और उसके रस्ते को काटते हुए भाग गई, उसे लगा उसका डर अनावश्यक था पेड़ पर बिल्ले और बिल्ली का जोड़ा था बस और कुछ नहीं l

सड़क पर बंदरों के झुण्ड भी हैट गये थे, धीरे - धीरे चलते हुये जब वह अपनी मंजिल पर पहुँचा रत के दस बज गए थे, मंदिर का पुजारी सोया नहीं था उसे रहने के लिये एक थोड़ा वयवस्थित कमरा मिल गया, रात का भोजन वह साथ ले कर गया था मंदिर से केवल पानी लिया और खाना खा कर देर तक जागने के बाद किसी प्रकार सो गया, सुबह वह उठा तो काफी देर हो गई थी मंदिर के पुजारी से अपने बैंक के जाने का रास्ता पूछा और स्टेशन के पार्सल घर से अपनी मोटरसाइकिल ली तो उस समय बारह बज गे थे, मंदिर में उसे केवल चाय ही मिली थे खाने के लिया बिस्कुट थे उसके पास, देर हो रही थी वह अब जल्दी से अपने बैंक के ब्रांच पहुँचाना चाहता था, ब्रांच की ओर जाने वाला रास्ता काफी उबड़ - खाबड़ थी , बैंक वालों ने कहाँ ब्रांच खोल दी है उसने मन ही मन कहा और किसी प्रकार धीरे - धीरे आगे बढ़ता रहा, रस्ते पर सन्नाटा था जैसे - जैसे वह आगे बढ़ता जा रहा था सन्नाटा भी बढ़ता जा रहा था, गर्मी बहुत थी सर पर हेलमेट होने के कारण वह पसीने से भीग गया था प्यास भी लग रही थी किन्तु आस - पास कुछ दिखाई नही दे रहा था, किसी प्रकार वह आगे बढ़ता रहा सहसा बांयीं ओर उसे एक हवेली दिखाई दी जो दूर से बहुत पुरानी नहीं लग रही थी, उसे लगा वहां कोई रहता तो होगा ही,

हवेली के बहार मोटरसाइकिल खड़ी की और हवेली के मुख्य दरवाजे पर दस्तक दी उसे लगा किसे ने कहा है कि अंदर आ जाओ उसने धीरे से हवेली का दरवाजा खोला और अंदर दाखिल हो गया अभी वह दो कदम ही आगे बढ़ा था कि हवेली का दरवाज बंद हो गया उसे लग दरवाजे में बंद होने का ऑटोमेटिक सिस्टम लगा होगा, थोड़ा और आगे बढ़ने पर उसे बजता हुआ कोई संगीत सुनाई दिया जो किसी कमरे से आ रहा था, ठिठक कर उसने दाहिनी ओर देखा तो लगा कोई ड्राइंग रूम है बेतरतीब से बिखरा हुआ, वहीं ठहर कर उसने आवाज दी

"कोई है"

कोई उत्तर नहीं आया, उसे लगा सामने के कमरे से आवाज आ रही है, कमरे के पास पहुँच कर हल्के से नॉक किया तो कमरा खुल गया परन्तु वहां कोई नहीं था कमरे में मकड़ी का जला लगा हुआ था, दो - तीन बड़ी - बड़ी राजे महाराजों की तस्वीर कुछ अजीब से बने हुए स्टैंड पर रखी हुई थीं जिसे देख कर वह डर गया संगीत की आवाज बंद हो गई थी और किसी कमरे से एक स्त्री के रोने की आवाज सुनाई दी इस अव्वज से वह वाकई में डर गया था और अचानक से उसके मुँह से निकल गया जय हनुमानजी, रोने की आवाज बंद हो गई, वह पूरी तरह पसीने से भीग गया था, पैर लड़खड़ाने लगे थे और अब हवेली के प्रथम ताल से संगीत के साथ किसी के रोने और हॅसने की आवाज उसे सुनाई देने लगी थी, एक बार तो उसे लगा की यह उसका भ्रम है, परन्तु हॅसने की आवाज अब थोड़ी तेज हो गई थी, नहीं यह भ्रम नहीं हो सकता कोई तो है यहाँ पर, किन्तु एक साथ हॅसने और रोने की आवाजें, मेरा विश्वास तो पक्का है कुछ तो हो रहा है यहाँ, वह पहली मंजिल की ओर जाने के लिया सीढ़ियों की तरफ बढ़ा तभी दूसरे कमरे से कुछ गिरने की आवाज आई जो काफी तेज थी, उसने पलट कर देखा तो सामने का कमरा खुला हुआ था और एक बड़ा सा चूहा कमरे से निकल कर आंगन की और भाग रहा था, इस कमरे में कुछ खाने पीने का सामान होना चाहिए तभी यहाँ चूहा था,

वह उस कमरे की ओर बढ़ा तो कुछ उलटने - पलटने की आवाजे आने लगीं, ठिठक कर वह फिर रुक गया, एक तेज गिरने की आवाज फिर हुई, अपने डर को किसी प्रकार उसने काबू किया हुआ था और मन ही मन हनुमानजी का जाप भी वह किये जा रहा था, एक कदम ही आगे बढ़ा कि फिर कुछ गिरने की आवाज हुई और उस कमरे से एक बिल्ली निकल कर भागी, तो यह सब इस बिल्ली के कारण था,

उसने अपने मन में सोचा और हवेली के प्रथम तल पर जाने के लिया जीने पर चढ़ाने लगा, जैसे - जैसे वह जीने पर चढ़ता जा रहा था प्रथम तल के कमरों से हंसने और रोने की आवाजे तेज होती जा रही थीं, राकेश ने सोंचा क्या यह वाकई में कोइ भूत बंगला है, वह डर तो रहा था किन्तु क़िसी भूत - वूत पर उसे विश्वास नहीं भी था, दो - तीन जीने ही चढ़े होंगे कि ऊपर से उसकी तरफ लुढ़कता हुआ एक प्लास्टिक का डिब्बा आया, राकेश को लगा किसे ने उसकी तरफ उस डब्बे को फेंका है, डरते हुए वह ऊपर चढ़ता गया किन्तु यह क्या वहां तो कोई नहीं था, कमरों से आती हुई आवाजें भी बंद हो गई थीं, प्रथम तल के सभी कमरों का उसने गहनता से निरीछड किया, सभी कमरों में बिजली के तार फैले हुए थे, अपने मोबाईल से उसने कमरों की फोटो ली और धीरे से नीचे उतर आया हवेली से बहार निकला और वापस मुड़ गया l

राकेश अपनी ब्रांच पहुँचा तो हवेली में घटी हुइ घटना के बारे में अपने साथियों को बताया, उसकी बात सुन कर पास खड़े बैंक के एक ग्राहक ने बताया

"साहब वह भूत बंगाल है वहां अजीब - अजीब से आवाजें आती हैं, पिछले पच्चीस वर्षो से वह बंगला बंद है उस तरफ कोई जाता नही. हमारे गांव के लोग कहतें हैं कि पच्चीस वर्ष पहले उसमे रहने वाले सभी सात लोग एक ही रात में मर गए थे तब से वहां कोई जाता नही"

"क्या पुलिस ने कोई जाँच - पड़ताल नहीं की थी"

"की थी परन्तु हम सुनते तो यही आ रहे हैं कि पुलिस भी डर की वजह से वहाँ नही जाती"

"पहले डर तो मुझे भी लगा था, किन्तु भुत जैसा कुछ तो होता नहीं, मैंने पुलिस को फोन कर दिया है आशा है उस भूत बंगले का रहस्य शीघ्र ही खुल जाएगा"

राकेश ने अपने पद का चार्ज ले कर काम को समाप्त किया तो शाम के पांच बज गए थे, बैंक परिसर के पीछे ही सभी स्टाफ के रहने लायक कमरे थे, राकेश के सामने अब कोई समस्या नही थीं किन्तु पिछले दो दिन उसके बड़ी कठिनाई से बीते थे.

दो दिन बाद लोगों ने अखबार में पढ़ा की उस बंगलें पर कच्ची शराब बनाने वालों का कब्ज़ा था, वे बंगले के पीछे एक खाई में गुफा बना कर अपना काम करते थे और बंगले को अपनी सुरछा के रूप में प्रयोग करते थे जिससे लोग उधर आ - जा न सकें और वे अपना काम आसानी से करते रहे, इस कारण स्पीकर लगा कर बंगाल से विभिन्न प्रकार की आवाजे किया करते थे।


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