परोपकार सबसे बड़ा धर्म
परोपकार सबसे बड़ा धर्म
हमारे धर्म और कर्म
यह कथा जबकि है जब अश्वमेध यज्ञ पूरा हुआ। युधिष्ठिर और उनके भाई गर्व से फूले नहीं समा रहे थे, तभी एक नेवले ने जिसके शरीर का आधा भाग सुनहरा था , उन्हें यह कहकर चौंका दिया कि उनका वह यज्ञ ब्राह्मण परिवार के महान दान से तुलना करने योग्य नहीं है। यज्ञ में उपस्थित लोग जिज्ञासु हो उठे, सबने उससे ब्राह्मण परिवार की कहानी सुनाने का आग्रह किया।
उसने बताया कि एक ब्राह्मण परिवार था जो इधर- उधर गिरे हुए अनाज के दानों को एकत्रित करके उनसे बने भोजन को ही ग्रहण करता था। एक बार जब अकाल पड़ा।कई दिन तक उन्हें उपवास करना पड़ा। आखिर एक दिन जब उन्हें भोजन मिला तो उनके यहाँ एक अतिथि आ गया जो बड़ा भूखा था।यह जानकर ब्राह्मण परिवार के सभी सदस्यों ने स्वेच्छा से उसे अपना भोजन दे दिया और स्वयं भूखे रह गये। उनके इस त्याग से धर्मदेव अत्यन्त प्रभावित हुए।यह ब्राह्मण और कोई नहीं, परिवार के धर्म की परीक्षा लेने स्वयं धर्मदेव ही थे।इस पुण्यकर्म के बाद वह ब्राह्मण परिवार उनके वरदान से सीधे स्वर्ग गया। उनके स्वर्ग जाने के बाद उस नेवले ने उस स्थान पर लोट लगायी जहाँ ब्राह्मण परिवार के भोजन के कुछ कण गिरे थे। उन कणों के प्रभाव से उसके शरीर का आधा अङ्ग सुनहरा हो गया। इस घटना के बाद नेवला इस आशा से कई पुण्यस्थलों में गया कि उसके शेष आधे शरीर का भी रङ्ग सुनहरा हो जाय पर ऐसा नहीं हो सका। युधिष्ठिर की यज्ञभूमि में लोटकर भी वह अपने शेष शरीर को सुनहरा नहीं कर सका।
नेवले के यह बात सुनकर युधिष्ठिर और उनके भाइयों का गर्व नष्ट हो गया। उन्हें समझ में आ गया कि परोपकार सबसे बड़ा यज्ञ होता है
