Sandeep Kumar Keshari

Drama Romance

4.0  

Sandeep Kumar Keshari

Drama Romance

प्रिय डायरी

प्रिय डायरी

12 mins
344


फ़ैसला दरवाज़े की घंटी बजी, सूरज ने दरवाज़ा खोला- सामने रोशनी थी। आ जाओ, कहते हुए सूरज अंदर आ गया। रोशनी अंदर बेडरूम में कुर्सी पर बैठ गई, और सूरज किचन में फिर से नाश्ता बनाने में लग गया। वह फ्रीज से अंडे निकलते हुए बोला- “अरे रोशनी, आ जाओ नाश्ता तैयार है, बस आमलेट बनाना है, साथ में नाश्ता करते हैं।" “तुम नाश्ता करो, मुझे भूख नहीं”- रोशनी ने दुख और गुस्से से कहा। सूरज रोशनी की भावनाओं को अनदेखा कर दिया, तभी बोला कि ओह शिट, ये अंडा तो सड़ा हुआ है! उधर से रोशनी ताना मारते हुए बोली – “हां, अंडा तो सड़ ही चुका है!” सूरज को पता चल गया कि रोशनी ने उसे ताना मारा है। वह रोशनी के पास आया और बोला- “क्या हुआ, नाराज हो?” रोशनी ने कोई जवाब नहीं दिया। “…अरे, अरे.. मैं तो भूल ही गया”- बोलते हुए वह दूसरे कमरे से एक लिफाफा लाया और रोशनी के पीछे गले में दोनों हाथ डालते हुए उसके चेहरे के सामने लिफाफा खोला और प्यार से बोला- “देखो, क्या लिखा है? चलो, मैं बताता हूं- इसमें लिखा है कि मिस्टर सूरज को अगले माह से प्रमोशन दिया जाता है!... और इस दूसरे पेज में मेरे लिए ऑस्ट्रेलिया टूर का ऑफर भी है”- कहते हुए रोशनी की गालों पर छोटा सा किस किया। रोशनी ने कोई हरकत नहीं की, तो वह उसके सामने आकर बैठ गया।

रोशनी की आँखों में आँसू आ गए। - हेss, तुम रो रही हो? रोशनी में पहले खुद को संभाला, और फिर लंबी सांस लेते हुए सूरज से पूछा- “क्या तुम सच में मुझे इतना प्यार करते हो?” सूरज- “क्यों, कोई शक है क्या? रोशनी, मैंने जिंदगी भर सिर्फ तुझसे प्यार किया है। सिर्फ तू है मेरी जिंदगी में, और कोई नहीं!” रोशनी- “कब तक, और कितना झूठ बोलोगे सूरज?” रोशनी की आँखों से निकला खारा पानी उसके गालों पर आकर ठिठक गया। - तुम्हें आज क्या हो गया है रोशनी? - मैं तो बस सवाल पूछ रही हूं। - मगर जवाब तुम को तो पता है। - इसीलिए तो… - मतलब? रोशनी अपने पर्स से कागज़ निकालने लगी। रोशनी 3 माह से प्रेग्नेंट थी। उसी सिलसिले में उसने डॉक्टरी सलाह पर रूटीन खून जांच करवाया था। “…हे भगवान! मैं तो भूल ही गया था। मैं कितना मूर्ख और भुलक्कड़ हूं… सॉरी.. सॉरी! मैं तो भूल ही गया था। आज तुम डॉक्टर के पास गई थी। रिपोर्ट आया? अरे, उसको क्या देखना है? वह तो ठीक ही होगा”- सूरज ने हंसते हुए आत्मविश्वास से कहा और फिर खड़ा हो गया। तब तक रोशनी ने रिपोर्ट उसके हाथों में थमा दिया। सूरज बहुत ही अधीरता से रिपोर्ट को खोला। रिपोर्ट देखकर जैसे उसको सांप सूंघ गया! रिपोर्ट उसके लिए किसी सदमे से कम नहीं था। “…ये…ये.. क्या है रोशनी? - सच है सूरज I am HIV positive! - नहीं, यह नहीं हो सकता- कहते- कहते सूरज फर्श पर बैठ गया। - ये सच है! - मगर कैसे? - वही तो मैं पूछ रही हूं। - मतलब क्या है तुम्हारा? मतलब मैंने कुछ किया है? - यह तो तुम बोल रहे हो। - बस करो, जो मन में आया बोली जा रही हो! मैंने तुम्हें इतनी छूट दी, तुम पर भरोसा किया, तेरे लिए सब कुछ किया और तुम? तूने यही सिला दिया मेरे प्यार और विश्वास का (सूरज की आवाज़ गुस्से में तेज़ हो गई थी)? - छूट तो मैंने भी तुम्हें दी थी सूरज, मगर तुमने क्या किया? एक बात बताओ, जब हम दोनों ने पिछले कई सालों से खून नहीं चढ़ाया, कभी अस्पताल में किसी की सुई नहीं चुभी, कोई इंजेक्शन वाला ड्रग नहीं लिया, तो फिर यह हुआ कैसे? सूरज खामोश था।

कोई कुछ नहीं बोल रहा था। तब तक किचन से दूध के जलने का दुर्गंध आने लगा। रोशनी ने तेजी से जाकर चूल्हा बंद किया। दुर्गंध पूरे फ्लैट में फैल गया। रोशनी बहुत दुखी थी। उसने सूरज के पास आकर बोला- “सूरज, मुझे तुम पर पूरा भरोसा है। डॉक्टर ने तुम्हें भी एचआईवी टेस्ट कराने की बात कही है, करवा लो।” “तुम चुप रहो, मैं कोई टेस्ट नहीं करवाने वाला, मैं क्यों करवाऊं? तेरे इस बच्चे के लिए, जिसके बारे में मुझे भी नहीं पता कि ये मेरा है या नहीं?”- सूरज ने चिल्लाते हुए कहा और पैर पटकते हुए अपने कमरे में चला गया। रोशनी से रहा नहीं गया, उसने खुद को कमरे में बंद कर लिया। इधर सूरज भी चुपचाप सोफे में पड़ा रहा। अगले दिन दोनों ऑफ़िस नहीं गए। अब दोनों के बीच एक अजीब सी खामोशी थी, दूरी थी। शाम को सूरज बिना कुछ कहे घर से निकल पड़ा। रोशनी अपने कमरे में पड़ी थी, तभी दूसरे कमरे में सूरज का रखा मोबाइल बजा। उसने उसे नजर अंदाज़ कर दिया, दूसरा रिंग… तीसरा रिंग…! रोशनी झल्लाकर फोन उठाई, वह कुछ बोलती, उधर से आवाज़ आई- “कहां हो? तुम फोन क्यों नहीं उठा रहे थे? तुमने बोला था कि मुंबई में मिलोगे, फिर आए क्यों नहीं? “तुम कौन हो”- रोशनी ने पूछा? - मतलब…, हेलो! तुम कौन बोल रही हो? यह तो सूरज का नंबर है ना? - हां..! - तो तुम उसके मोबाइल में क्या कर रही हो, तेरे पास उसका मोबाइल कहां से आया? - मैं सूरज की बीवी रोशनी बोल रही हूं। - क्या? - जी हां। - सूरज ने मुझसे इतना बड़ा झूठ बोला! आने दो उसको मैं बताती हूं। सेक्सी बातें किया करता था, कहता था, रिया,  मैं तुमसे ही शादी करूँगा! मैं बैचलर हूं। सब धोखा था। उसने धोखा दिया मुझे- कहते हुए रिया ने फोन रख दिया।

रोशनी का गुस्सा सातवें आसमान पर था। थोड़ी देर में सूरज घर आया, तो रोशनी ने सबसे पहले सूरज पर सवाल दागा- “ये रिया कौन है?” “कौन रिया”- सूरज ने हड़बड़ाते हुए पूछा? “वही रिया, जिसे तुमने मुंबई में मिलने को बुलाया था- रोशनी ने जवाब दिया। “मैं किसी रिया को नहीं जानता”- सूरज ने नज़रें झुका कर कहा। “नज़रें झुका कर क्यों, नजर से नजर मिलाकर बात करो सूरज। कौन है रिया”- रोशनी की आवाज़ में कठोरता थी। - तुम्हें क्या फर्क पड़ता है? तुम अपने काम से मतलब रखो। - सुनो, फर्क पड़ता है, बहुत फर्क पड़ता है। ये हमारी जिंदगी का सवाल है, हमारे बच्चे का सवाल है। - मेरे पास तेरे बकवास सवालों का जवाब देने का फालतू वक्त नहीं है (कहते हुए सूरज ने अपना दरवाज़ा बंद कर लिया, सिगरेट जलाई और खिड़की खोल कर कश खींचने लगा)। इधर रोशनी अपने कमरे में चुपचाप लेटी रही। कभी रोती, तो कभी सिसकती और फिर शांत हो जाती। अगले दिन छुट्टी थी। रोशनी सुबह सब्जी लेने बाजार जाने के लिए बेसमेंट से स्कूटी निकाल रही थी, तभी उसके कानों में सूरज के चिल्लाने की आवाज़ आई। इधर-उधर देखने के बाद वह खंभे के पास गई जहां पर सूरज मोबाइल पर किसी से बहस कर रहा था- तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरे परिवार में घुसने की? हां, मेरी बीवी है रोशनी! मेरी तो लाइफ ही चौपट कर दिया ना तुमने? क्या बिगाड़ा था मैंने तेरा? बोलते हुए वो पीछे मुड़ा तो सामने रोशनी खड़ी थी। रोशनी वहां से वापस गुस्से में फ्लैट की ओर जाने लगी। पीछे- पीछे सूरज उसको समझाते हुए आया। मगर रोशनी सुनने को तैयार ना थी। वह सीधा फ्लैट पहुंची और अपने कपड़े सूटकेस में डालने लगी। सूरज उसको समझाने की कोशिश में लगा रहा। रोशनी पर इसका कोई असर ना हुआ। वो रोशनी के पैरों को पकड़ कर कहने लगा – “रुक जाओ रोशनी!” रोशनी रुक गई। वह उठा तो रोशनी ने मुंह फेर लिया! सूरज धीरे से बोलना शुरू किया- “रोशनी… रोशनी, याद है, पिछले साल मैं गोवा गया था? वहीं मिली थी रिया एक बार में! बहुत खूबसूरत थी, और चंचल भी। हमने कुछ ज्यादा ही पी रखी थी उस रात। फिर हम दोनों साथ में होटल में आ गए और एक ही कमरे में सोने चले गए। रात भर हम दोनों ने साथ में समय बिताया। ज्यादा पीने के कारण मुझे बहुत कुछ याद नहीं, पर तब से हम दोनों में बातें होती थी। …उस दिन संयोग से मोबाइल रूम में छूट गया और तुमने उसका कॉल उठा लिया। आई एम सॉरी रोशनी! मेरा रिपोर्ट भी मेरे ई मेल में आ गया है… I am HIV positive too”- कहते- कहते सूरज का गला भर गया। रोशनी सूटकेस निकालकर घर से जाने लगी, तो सूरज बोला- “प्लीज रोशनी, रुक जाओ। कहां जाओगी अकेले, कब तक और कहां तक लड़ोगी अकेले? यह दुनिया बहुत जालिम है। तुम्हें अकेले जीने नहीं देगी, और यहां मुझे मरने भी नहीं देगी। मेरे लिए न सही, हमारे बच्चे के लिए रुक जाओ.. ! सूरज रोशनी के बिना एवं रोशनी सूरज के बिना अधूरे हैं, एक दूसरे के बिना एक दूजे की कल्पना नहीं की जा सकती! प्लीज, एक बार और सोच लो!”

रोशनी- “सोच लिया सूरज, अच्छे से सोच लिया! मैंने फैसला कर लिया। अब भलाई इसी में है कि हम एक दूसरे को भूल कर अपनी- अपनी राहों में आगे बढ़े। कोई मतलब नहीं अब हमारे साथ रहने का, और जहां तक बात जमाने की है, तो ये कब किसका हुआ है जो मेरा होगा? मैं चलती हूं, बाय।” सूरज- “प्लीज रोशनी, रुक जाओ। मैं नहीं जी सकता तेरे बिना।“ यह बात तेंें पहले सोचनी चाहिए थी, सूरज”- रोशनी ने आंसू पोंछे और घर से बाहर निकल पड़ी। सूरज उसे जाते हुए देखता रहा। वह उससे दूर जा रही थी, हमेशा के लिए। जैसे मुट्ठी से रेत फिसलता है, वैसे ही उसके हाथों से उसकी जिंदगी फिसल रही थी, और वह कुछ नहीं कर पा रहा था। आगे अंधेरा, साथ में तन्हाई और अन्दर दर्द, ग़म और बेबसी…!                              


2 सप्ताह के बाद दिन के लगभग 12:00 बजे। फ्लैट के दरवाज़े पर आहट थी। दरवाज़ा खुला था! रोशनी ने धीरे से फ्लैट में प्रवेश किया। सारा कमरा अस्त -व्यस्त, सोफे पर तौलिया, बनियान फेंका हुआ, सिगरेट के जले- अधजले अवशेष, पूरे कमरे के फर्श में गंदगी फैली हुई, बिस्तर पूरी तरह से उधेड़ा हुआ, बाथरूम का दरवाज़ा खुला हुआ जिससे पेशाब की बू आ रही थी, और किचन का हाल तो और भी खराब था – सब्जी, आटे में फंगस लगा हुआ, दूध फट के दुर्गंध देने लगा था, रोटी सूखकर कड़क हो गई थी। खिड़कियों- दीवारों पर मकड़ी के जाले लग गए थे – लग रहा था जैसे इस घर में पिछले कई महीनों से कोई रह नहीं रहा हो। रोशनी चुपचाप पूरे घर का मुआयना कर रही थी। हॉल में सूरज अर्ध नग्न अवस्था में ऐसे ही फर्श पर पड़ा था। उसकी दाढ़ी बढ़ी हुई थी, लग रहा था कि कई दिनों से उसने शेविंग नहीं किया है और नहाया भी नहीं था उसने और तो और खाना भी नहीं खाया था! फिर रोशनी की नजर उसके मोबाइल पर पड़ी, चेक किया तो फोन डेड मिला। उसने फोन चार्ज में लगाया, फिर उसने सूरज के माथे पर हाथ फेरा गालों पर किस किया, तभी सूरज की नींद खुल गई। सामने रोशनी को देख हड़बड़ा कर उठ गया। “..तुम”? इससे आगे वह कुछ कह न सका! रोशनी ने भीगे नयनों से भरे चेहरे से हामी भरी, फिर थोड़ा गुस्सा होकर बोली – “नहीं आई ना मेरी याद एक बार भी? वैसे भी क्या फर्क पड़ता है? है ना?” सूरज की आँखें नम हो गई। कहना तो बहुत कुछ चाहता था, पर कुछ कह ना सका। “एक कॉल नहीं कर सकते थे मुझे? मैं अब पराई हो गई न? ऑफ़िस क्यों नहीं जा रहे हो? फोन ऑफ रखे हो? पता है, तेरे ऑफ़िस से मेरे मोबाइल पर कॉल आ रहा है कि सूरज ऑफ़िस नहीं आया।" सूरज सिर झुका कर बस सुन रहा था। रोशनी बोलती रही- “क्या हाल बना रखा है खुद का, पूरे फ्लैट की माँ बहन कर रखी है तुमने। किचन में पूरा खाना सड़कर दुर्गंध दे रहा है, बाथरूम में तुमने फ्लश करना छोड़ दिया है! (थोड़ी देर रुककर) ...सूरज कब से तुम खाए नहीं हो, बताओ”- रोशनी रूआंसी हो गई।

सूरज –“तुमने अपना चेहरा देखा है, तूने भी तो 4 दिन से खाना नहीं खाया। तूने खाया कम, रोया ज्यादा है। सूरज उठ कर खड़ा हो गया, साथ में रोशनी भी खड़ी हो गई। रोशनी से रहा नहीं गया। उसने सिसकते हुए सूरज के हाथों में हाथ डालकर बोलना शुरू किया – “इतनी फ़िक्र है तुम्हें मेरी, तो एक कॉल भी क्यों नहीं किया?” “किसने बोला, रोज़ करता था, पर बात करने की हिम्मत ना होती थी। …कनेक्ट होने से पहले काट देता कॉल को!” “सूरज, मैं तेरे बिन नहीं रह सकती। मैंने देख लिया आजमाकर, जितना दूर जाना चाहा, उतना खुद को तेरे करीब पाई। आई लव यू सूरज”- कहते हुए सूरज की बांहों में समा गई और बोली -“मैं तेरे बगैर नहीं रह सकती सूरज, मैंने अब फैसला कर लिया है कि हम अब मिलकर एचआईवी से लड़ेंगे। खुद के लिए, हम दोनों के लिए और हमारे होने वाले अपने बच्चे के लिए।” सूरज ने भी अपने सीने में खींच लिया, पीठ थपथपाना लगा और माथे को चूम कर सहमति में सर हिलाया। - रुको, मैं चाय बनाती हूं, कहते हुए रोशनी किचन की ओर जाने लगी, तभी सोफे पर पड़े एक लिफाफे ने उसका ध्यान खींचा, जिसमें उसके मायके का पता लिखा था। रोशनी ने लिफाफा खोला तो एक छोटी सी कविता थी-   

क्या फर्क पड़ता है!! क्या फर्क पड़ता है,

जब जमाना बेगाना सा हो जाता है,

जब हर सच फसाना सा हो जाता है!

जमाने की तो आदत है हर बात में हँसने की,

उस जमाने का क्या,

जब कोई किसी का दीवाना सा हो जाता है! 

क्या फर्क पड़ता है…

सच कहूं, बहुत फर्क पड़ता है! बहुत फर्क पड़ता है,

जब वह सब भूलकर आगे बढ़ने को कहते हैं,

कुछ ना कहकर भी बहुत कुछ कह जाते हैं!

डसती हैं उनकी खामोशी हमें पहर दर पहर,

हर वक्त हमसे वो दूर होने की कोशिश जो करते हैं!

सच में, बहुत फर्क पड़ता है!

क्या फर्क पड़ता है? क्या फर्क पड़ता है,

जब प्रेम के मृगतृष्णा में हम भटकते हैं,

चाहत के समंदर में हम प्यासे रह जाते है!

तकते हैं हम आज भी चौदहवीं के चाँद को रात भर,

पर उनकी बेरुखी से दिल के तार टूट जाते हैं!!

क्या फर्क पड़ता है? …है न? क्या फर्क पड़ता है?

रोशनी की आँखें फिर से नम हो गई, और सूरज से बोली –“यह मेरे लिए था?” -हां। -तो पोस्ट क्यों नहीं किया? -पता नहीं। -तुम नहीं सुधरोगे, कहते हुए चाय बनाने किचन में चली गई। रात हुई, रोशनी ने सूरज से गिटार बजाने की फरमाइश की। सूरज ने मना कर दिया। रोशनी फिर से उदास हो गई, मुंह फेर कर बिस्तर में पड़ी रही। उसे नींद नहीं आ रही थी। रात लगभग 12:00 बजे गिटार से एक प्यारी सी धुन ने रोशनी को अपनी ओर खींचा। वो सीधा सूरज के पास गई और होठों पर किस कर बढ़ने लगी। सूरज ने रोकते हुए कहा –“अगर होंठ कटे फटे हों, तो भी इंफेक्शन बढ़ सकता है।” फिर उसने रोशनी को गले से लगा लिया। रोशनी को महसूस हो रहा था कि उसका फैसला सही था। उसने धीरे से सूरज से कहा -“सूरज, सच में सूरज रोशनी के बिना एवं रोशनी सूरज के बिना अधूरे हैं, एक दूसरे के बिना एक दूजे की कल्पना नहीं की जा सकती, आई लव यू!” - आई लव यू टू रोशनी, कहते हुए सूरज ने प्यार से उसके माथे को चूम लिया!!


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