परिवार की यादें

परिवार की यादें

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हमारा संयुक्त परिवार था। पिताजी के 6भाई तथा 4बहनें थी और मैं, नयी पीढ़ी में सबसे बड़ा लड़का था।

स्वाभाविक था कि मुझे परिवार में, सभी का बहुत लाड़ प्यार मिला। माता पिता वैसे तो कम शिक्षित थे किन्तु अपने बच्चों को शिक्षित करना, अच्छे संस्कार देना उन्हें, भली भांति आता था। दूसरे जन इस बात की मिसाल दिया करते थे।

माताजी "बेटा इतनी रात हो गयी है, कब तक पढ़ाई करोगे?सो जाओ, सुबह जल्दी उठकर बाकी कि पढ़ाई कर लेना। "

"मां सुबह परीक्षा है मुझे, पूरी तैयारी करनी है। आप सो जाओ। "

"बेटा, 2_3घण्टों की नींद जरूरी है। तभी तुम्हें याद रह पायेगा। नहीं तो पढ़ा हुआ गड़बड़ हो जायेगा। "

मां तो अब रही नहीं। परंतु यह सबक मुझे अभी भी याद है। यह बात परिवार के काम, बहुत आ रही है।

हमारे एक काकाजी, बहुत ही प्यार करने वाले, परिवार में सभी का ध्यान रखने वाले थे। मुझे उनकी एक बात हमेशा याद रहती है।

हमारे काकाजी कहते थे "बेटा परिवार में, कुछ अच्छे कुछ बुरे भी लोग होंगे। बुरे व्यक्ति की बातें, उनका व्यवहार, आचरण तुम्हें पीड़ा दे तो, उनके साथ बुरा तुम कभी मत करना। उनका मूड देखकर, उनकी बातों पर टिप्पणी जरूर करना ताकि उन्हें अपनी गलती का अहसास हो। हो सकता है कि वे तुम्हारे समझाने पर समझ जायें, तुम परिवार में बड़े लड़के हो तुम्हें सभी को, साथ लेकर चलना होगा। "

जब मैं सरकारी बैंक में, सीनियर मैनेजर बन गया तो फक्र से,सभी को यह बात बताते थे और मुझे मैनेजर साहब कहकर बुलाते थे।

एक बार छोटे भाई के शरीर में, कपड़ों के ऊपर बड़ी सी छिपकली गिर गयी। वह छोटा था और जोर जोर से घबरा कर रोने लगा। मैं अपनी पढाई कर रहा था। रोने की आवाज सुनकर मैं बाहर आया। देखा तो बड़ी सी छिपकली गिर कर उसके कपड़ों में चल रही है।

मुझे कुछ सुझा नही, मैंने हडबडी में ही उस छिपकली को हाथों से धक्का देकर नीचे गिरा दिया। मैंने उससे कहा "याद रखो छिपकली कभी काटती नहीं है। तो डरने, घबराने की जरूरत नहीं है। "वह शांत हो गया और मेरे गले लग गया

हमारे एक मामाजी थे। बहुत ही सज्जन और प्रेम करने वाले। हमारे यहां भांजे का नाम नहीं लिया जाता है। वे मुझे, अपनी जान से भी ज्यादा चाहते थे उनकी एक बात हमेशा के लिए मैंने अपने हृदय में लिखकर रखी है "बाबा,एक बात याद रखना बल अपना बल। अगर मानेगे तो भगवान भी तुम्हारी सहायता जरूर करेंगे। "

हमारे पिताजी कुछ जिद्दी स्वभाव के और स्वाभिमानी रहे। वे अपने बच्चों की क्षमता से वाकिफ थे। हमारे छोटे भाई ने आठवीं कक्षा उत्तीर्ण किया था। विद्यालय में प्राचार्य महोदय ने पिताजी से कहा "आप ,इन्हें काॅमर्स विषय में एडमिड करवाइये। "

पिता अड़ गये और कहा "सर हमारे लड़के को आप साइन्स विषय दीजिये। वह आसानी से कर लेगा उसकी साइंस में रूचि भी है। अगर वह ठीक नहीं करेगा तो आप उसे स्कूल से निकाल देना। "

पिता के पास गजब का आत्मविश्वास था मैंने उनसे जीना सीखा है। खैर अब वे नहीं रहे।

मित्रों परिवार की यादें तो बहुत सी हैं। क्योंकि मेरी उम्र 65वर्ष है। जितनी बातें लिखीं जाये कम है। एक उपन्यास आसानी से लिखा जा सकता है।


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