Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Inspirational

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

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परिचय - सुनील जी सी जैन

परिचय - सुनील जी सी जैन

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परिचय - सुनील जी सी जैन जिनमें विशिष्ट योग्यताएं होतीं हैं, जब उनके बारे में लिखा जाता है तब लेखक को समझना कठिन होता है कि किस बात के उल्लेख से लिखना आरंभ किया जाए। इनमें बहुत से गुण होते हैं जो सभी समान महत्व के होते हैं। तब भी अंततः लेखक को एक निर्णय पर पहुँचना ही होता है। 

आप पर लिखते हुए अभी यही मेरी लेखनी के साथ भी हो रहा है। बड़ी ही कठिनता से मैं तय कर पाया हूँ एवं अब मैं लिखना आरंभ कर रहा हूँ। 

आप हमारे बचपन, लड़कपन एवं नवयुवा होने की अवस्था में वारासिवनी के ऐसे सपूत रहे थे, जिनके गुणों के उल्लेख से हमें हमारे घर में ही नहीं, अपितु वारासिवनी के प्रायः हर घर में उनके (आप) जैसे बनने की प्रेरणा प्रदान की जाती थी। 

मुझे लगता है हमें ही नहीं, अपितु अस्सी नब्बे के दशकों तक भी वारासिवनी में, यह क्रम चलता रहा था। अधिकांश माँ-पिता, तब अपने अपने बच्चों को, आपका उदाहरण देते हुए पढ़ने एवं सर्वगुण संपन्न बनने की प्रेरणा देते रहे थे। 

सात जून 1960 को वारासिवनी की पावन माटी ने हमारे जिले, संभाग एवं प्रदेश को एक उत्कृष्ट सपूत दिया था। वास्तव में 07 जून 1960 का दिन, वारासिवनी के लिए अत्यंत शुभ दिन सिद्ध हुआ था। जी हाँ, इसी दिन आपका जन्म वारासिवनी के सर्वाधिक योग्य एवं प्रतिष्ठित अधिवक्ता (अब) स्व. जी सी जैन के सुपुत्र के रूप में हुआ था। आपके पापा वारासिवनी में अत्यंत लोकप्रिय थे। वे नगरपालिका एवं वारासिवनी के जैन समाज के भी अनेक वर्षों तक अध्यक्ष रहे थे। 

आप वह सपूत थे जिसके पैर पालने में ही पहचान कर आपके पापा-मम्मी प्रसन्न होते थे। 

आप ही नहीं आपके सभी भाई बहन, कुशाग्र बुद्धि के बालक/बालिकाएं होने के साथ ही, अपने अपने कक्षा के मेधावी विद्यार्थी थे। आपके अनुज भ्राता डॉ. निलय जैन ऐसे डॉक्टर हैं, जिन्होंने अपनी शिक्षा उपरान्त, अपने गृह जिला (मुख्यालय) बालाघाट में रहकर, अपनी सेवाएं देने का निर्णय किया था। तब से निलय, एक उत्कृष्ट शिशु विशेषज्ञ चिकित्सक के रूप में आज भी अनवरत इस कार्य में लगे हुए हैं। डॉ. निलय जैन की ख्याति जिले तक नहीं अपितु प्रदेश तक फैली हुई है। 

आप (सुनील) के परिचय में यह भी लिखना उचित है कि आप उन अधिवक्ता (अब) स्व. निर्मलचंद जी जैन के दामाद भी हैं, जिन्होंने पहले मप्र के महाधिवक्ता (Advocate General) के रूप में एवं बाद में राजस्थान के राज्यपाल के पद पर, कई वर्षों तक दायित्व निर्वहन किया था। 

आप (सुनील) से मेरा बचपन का साथ है। 1 जुलाई 1966 को वारासिवनी में ‘ब्रांच प्राथमिक शाला नं. 1’ के विद्यार्थी रहकर मैंने, आपके साथ ही स्कूली शिक्षा प्रारंभ की थी। प्राथमिक शिक्षा की सभी पाँच कक्षाओं में आप अव्वल स्थान पर रहे थे। 

आपकी कुशाग्र बुद्धि का एक छोटा उदाहरण तब यह था कि कक्षा चौथी में, जब हमारे ‘अनाराम कोसकर’ गुरु जी, कक्षा में घूम घूम कर हिंदी के किसी पैरा को शुद्धलेखन (Dictation) में लिखवाते थे एवं इसके बाद गुरूजी सबकी कॉपी जाँचते तब आपको प्रायः 15/15 अंक मिलते थे। आपसे मेरी तुलना ही नहीं यह इस बात से सिद्ध हो जाता था कि मुझे कभी इसमें 3/15 और कभी बहुत अच्छा लिख लिया तो 6/15 अंक मिलते थे। 

कदाचित् बचपन से ही मेरे मन ने इस सच्चाई को मान लिया था - ‘मैं आपसे कोई स्पर्धा नहीं कर सकता हूँ’। टिहली बाई शासकीय उच्चत्तर माध्यमिक शाला वारासिवनी में जाने के बाद, आपके अव्वल स्थान को चुनौती देने वाला हमारा एक ही सहपाठी राकेश अग्रवाल था। मुझे यह भी स्मरण है कि आठवीं की परीक्षा में एक बार रवि झा ने आप दोनों को पीछे छोड़ दिया था। 

हमारे उस बैच में वारासिवनी में, आप दो (राकेश एवं आप) में से प्रथम चाहे जो कोई आए, आपस में अंकों का अंतर बहुत कम होता था। कभी कभी यह 1-2 अंकों का ही होता था। यद्यपि प्राथमिक कक्षाओं की तुलना में, मैं अधिक पढ़ने वाला हो गया था तब भी आपसे, मेरी कोई तुलना नहीं थी। इस बात को बार बार पुष्टि ऐसे होती थी कि आप और मेरे बीच में, प्राप्त किए गए अंको का अंतर 10% - 20% अंकों से अधिक का रहता था। 

1971 से 1977 के दिनों में, आप क्रिकेट और बैडमिंटन खेलते थे। क्रिकेट में बेस्ट आलराउंडर एवं बैडमिंटन में आप चैंपियन थे। तब आपने बैडमिंटन में स्टेट भी खेला था। आप तब एन सी सी के भी बेस्ट कैडेट थे। यही नहीं स्कूल की सांस्कृतिक गतिविधियों में हिस्सा लेकर आप भाषण एवं वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भी विजेता/उप विजेता होते थे। 

आप से मित्रता रखने की अभिलाषा हम सभी सहपाठी की होती थी। फिर भी आपकी घनिष्ठता प्रदीप रूसिया एवं राजेश संचेती के साथ अधिक थी। 

यहाँ तक मैंने अपने लिए सबसे बड़ी उपलब्धि, इस बात की मानी थी कि हमारे मैथ्स टीचर, एस के बागड़े सर, ने एकाधिक बार मुझे डाँटते हुए यह कहा था - राजेश, तुम्हारा दिमाग राकेश या सुनील जैन से कम नहीं है मगर तुम पढ़ने से जी चुराया करते हो। 

यह वह बात थी जिसमें अनायास ही, उन्होंने मेरी तुलना आपसे की थी। यह बागड़े सर की, मुझे डाँट होती थी किंतु मैं इसे अपनी प्रशंसा जैसे, अपनी मम्मी एवं बाबूजी को बताया करता था। 

आप हमारे स्कूल के ऐसे शिष्य थे जो सभी गुरुओं के चहेते थे। आप वह शिष्य थे जिसका अपने को गुरु बताना, किसी भी गुरु को गर्वित करता था। 

हम बालपन से ही साथ पढ़-खेल कर बड़े हुए थे। आपसे, मेरे साथ का यह क्रम जुलाई/अगस्त 1977 में टूट गया था। जब राकेश और आप, एमएसीटी भोपाल (रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज) में प्रवेश पाने में सफल हुए थे। जबकि मैं किसी तरह से द्वितीय सूची में, रायपुर इंजीनियरिंग कॉलेज (प्रादेशिक महाविद्यालय) में पहुँच पाया था। 

इसके बाद के समय में, आपसे मेरी भेंट अवकाश में वारासिवनी पहुँचने पर ही हुआ करती थी। उन साथ के पलों में भी साथ घूमते हुए, मुझे हीनता बोध इस बात से होती थी कि आप स्पीकिंग इंग्लिश में भी अच्छे दक्ष हो गए थे। जबकि मैं किसी तरह कोर्स बुक पढ़ और लिख ही पाता था। 

हमारी कॉलेज शिक्षा पूर्ण होने तक, आप इस बात के जीवंत उदाहरण हो चुके थे कि मजबूत जीवन बुनियाद पर ही, एक सफल व्यक्तित्व साकार रूप लेता है। हमने पढ़ाई साथ साथ 1982 में पूर्ण की थी। आप और राकेश कैंपस से चयनित होकर एल एन टी (अत्यंत अच्छी कंपनी) में जॉब करने मुंबई (तब बंबई) चले गए थे। जबकि मैं जॉब के लिए कुछ कंपनियों में, लिखित परीक्षा एवं साक्षात्कार देते हुए, मप्रविमं में किसी प्रकार असिस्टेंट इंजीनियर हो पाया था। 

अब जीवन में वह समय आया था जब आपसे मेरे मिलने के अवसर बिरले हुए थे। हम कभी कभी ही मिल पाते थे। 

वारासिवनी में मुझे मेरे मौहल्ले में ही पहचाना जाता था जबकि आपकी मिलनसारिता एवं हमेशा मुखड़े पर हँसी/मुस्कान होने के कारण पूरा जिला आपको जानता था। 

आप में आत्मविश्वास, मिलनसारिता, व्यवहार कुशलता एवं योग्यताएं के गुण अत्यंत ही प्रशंसनीय थे/हैं। आप किसी को भी प्रभावित करने में समर्थ थे/हैं। आप जहाँ रहते हैं, आपके आसपास आपका एक बड़ा सा सामाजिक सद्भाव क्षेत्र (Social circle) निर्मित हो जाता है। फिर चाहे वह आपका गृहनगर वारासिवनी हो, उच्च शिक्षा का नगर भोपाल हो या आपका कार्यक्षेत्र मुंबई हो। आप एल एन टी में रहते हुए कंपनी कार्यो के लिए अनेक बार एवं कुछ बार अपने निजी व्यावसायिक कार्यों हेतु विदेश भ्रमण करते रहे हैं। आपका दायरा देश-विदेश तक फैला हुआ है।  

आपसे मेरी बाद हुईं कुछेक भेंटों में से, मुझे वारासिवनी में सन 1994 की आपके घर हुई मुलाकात का स्मरण है। तब मैं आपके घर में आप और आपके पापा से मिला था। आपके पापा के द्वारा मुझसे पूछा गया था - राजेश, तुम्हारी सैलरी कितनी है?

तब आपकी आय की कल्पना करते हुए मैंने संकोच में बताया था - मेरा वेतन 5000 रुपये मासिक है। 

आप दोनों ने, तब मेरे संकोच को समझते हुए कहा था - राजेश, यह भी अच्छी सैलरी है।  

2008 में एक बार आप जबलपुर से भोपाल जाते हुए, मुझे ट्रेन में मिले थे। तब हममें अनेक तरह की बातें हुईं थीं। हमने अपना अपना मोबाइल नं. एक दूसरे को दिया था। तब से हममें कुछ अंतराल में बात हो जाया करती थी/है। 

यह भी आपकी हृदय विशालता है कि मैं संकोच में रहता हूँ तब आप ही कॉल करके मेरी और मेरे परिवार की कुशलता पूछते, जानते हैं तथा अपनी भी बताया करते हैं। 

आप वास्तव में एक ऐसे बेटे हो जिसके जैसे, अपने बेटी/बेटों को बनाने का सपना हर माँ-पिता का होता है। आप अच्छे भाई, अच्छे पापा एवं अर्चना जी (भाभी का नाम, शायद यही है) के गर्व करने योग्य पति भी हैं। 

जीवन ज्यों ज्यों आगे बढ़ता है त्यों त्यों हमें अपने बड़ों (दादा दादी आदि) का बिछोह सहन करना पड़ता है। समय के साथ आपने भी, अपने पापा-मम्मी की छत्रछाया खोई है। उनके उत्कृष्ट लालन पालन में आपका ऐसा व्यक्तित्व निर्माण संभव हुआ था। उनकी दृष्टि से अच्छी बात यह रही थी कि उन्होंने अपना अंत समय आपके सानिध्य में भोपाल में ही देखा था।  

उनके बाद आपके कार्यों ने एवं जीवनशैली ने उनका नाम, उनसे भी अधिक बढ़ाया है। आपने विद्यार्थी के रूप में, परिजनों के बीच अपने होने के रूप में, अपनी मातृभूमि के सपूत के रूप में एवं भारत के अच्छे नागरिक के रूप में अपने सभी दायित्व उत्कृष्ट प्रकार से निभाए हैं।   

आप वारासिवनी से जितना प्यार पाते हैं उतना ही वारासिवनी को देते भी हैं। प्रसंग प्रसंग पर आज भी आप अपने इस गृहनगर में पहुँचते हैं। हर बार सबसे मिलकर प्रेम एवं आदर पाते हैं और सबको प्रेम और आदर देते हैं। वारासिवनी के बड़ों से आप जहाँ भी मिलते हैं, उनके चरण छूकर, उनका आशीर्वाद प्राप्त करने में आप क्षणमात्र भी देर नहीं करते हैं।  

आप पर लिखा तो बहुत कुछ जाना चाहिए क्योंकि आप वह आदर्श हैं जिससे प्रेरणा लेकर, कोई भी विद्यार्थी अपना अध्ययन में मन लगाने को प्रेरित हो सकता है। 

हममें से कोई भी, आपके तय किए सफलता के मार्ग पर चलकर अपना जीवन सुखी बनाने के साथ ही, समाज को अपने कर्मों से अच्छा योगदान भी दे सकता है।

मेरी लेखनी की क्षमता सीमित है। आपकी बहुत सी और सच्ची चारित्रिक विशेषताओं को व्यक्त करने हेतु मुझे उपयुक्त शब्द नहीं सूझते हैं। 

आलेख अंत में, मैं वारासिवनी के इस गौरवशाली सपूत की - सुखद, समृद्ध, प्रतिष्ठित एवं स्वस्थ जीवन की कामना करता हूँ। साथ ही आपके परिवार की जुड़ती नित नई उपलब्धियों के लिए भी हार्दिक शुभकामनाएं व्यक्त करता हूँ।  


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