Vinod Kumar Mishra

Romance

4.0  

Vinod Kumar Mishra

Romance

परदेशी की प्रीति (भाग-2)

परदेशी की प्रीति (भाग-2)

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सहसा दोनों की नजरें एक दूसरे के चेहरे पर ऐसे टिक गईं जैसे वे जन्म-जन्मांतर से एक दूसरे के जीवन साथी रहे हों।

फिर भी परदेशी अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के आगे दिल की बात जुबां पर ला न सका और प्रीति से पूछा कि आज क्या-क्या खाई हो ? प्रीति ने कहा कुछ नहीं। फिर परदेशी ने कहा कि बिना कुछ खाये ही इतना गुस्सा दिखा रही हैं... तब प्रीति ने कहा कि परदेशी जी आपसे बातें करना अच्छा लगता है और जब एक दिन नहीं आये तो सोचा कि कहीं व्यस्त होंगे। इसी तरह तीन दिन तक अपने दिल को ढांढ़स देती रही। लेकिन जब फोन पर आने का वादा करके भी आप नहीं आये तो मैं समझ गई कि अब आप मुझसे मिलने कभी नहीं आयेंगे। इसीलिए मुझे खाना खाने की इच्छा ही नहीं हुई।

परदेशी ने मुस्कुराते हुए कहा कि अब तो खा लीजिए। तब प्रीति ने कहा कि खाने के लिए कुछ लाये हैं क्या ? परदेशी हँसते हुए बोला कि अभी तो सब्जी लेकर रूम पर जा रहा हूँ और रूम पर पहुंचकर रात के लगभग दस बजे तक खाना तैयार कर पाऊंगा। तब तक प्रीति के पापा घर से टिफिन लेकर आ गये और प्रीति ने परदेशी की जिद पर खाना खाया। रात के आठ बज चुके थे और परदेशी ने फिर आने का वादा कर अपने रूम की ओर प्रस्थान किया। फिर प्रतिदिन दोनों के मिलने का सिलसिला जारी रहा। जो दिन में सायंकाल एक बार के बजाय अब सुबह, दोपहर और शाम को मिलाकर तीन बार हो गया था।

धीरे-धीरे इस सिलसिले की जानकारी उस छोटे से शहर की अधिकांश आबादी को हो चुका था। सबको यह भी पता हो गया था कि परदेशी अपनी प्रीति से मिलने के लिए कब आता है। यह बात वहाँ के सड़क छाप कुछ गुंडों को हजम न हुई और वे आपस में योजना बनाकर आसपास की दुकानों पर बैठकर पहरेदारी करने लगे किंतु परदेशी और प्रीति के आपस में न तो कभी अनैतिक वार्तालाप होते थे और न ही किसी भी प्रकार के अनैतिक संबंध ही थे। संबंध था तो सिर्फ उम्र के पड़ाव पर एक दूसरे के निर्मल सहारे का। कई दिनों की पहरेदारी के बाद वे गुंडे हताश होने लगे कि हम सब परदेशी और प्रीति को अनैतिक आचरण में रंगे हाथ पकड़ नहीं पाये। तब उनके दबंग लीडर ने यह निश्चय किया कि परदेशी को ही डांट डपटकर उस दुकान पर जाने से रोकेंगे।

लीडर की मुलाकात एक दिन मार्केट में परदेशी से हो गई और वह परदेशी को इशारों में ही एकांत की तरफ बुलाकर बोला कि आज के बाद फिर कभी प्रीति से मिलने गया तो तुम्हारे हाथ-पैर तोड़कर रख दूँगा। परदेशी ने उससे पूछा कि बात क्या है। लीडर ने कहा कुछ भी हो। इससे तुम्हारा मतलब नहीं है, सिर्फ आदेश का पालन करो। परदेशी सहमति जताते हुए वहाँ से सीधे अपने रूम पर चला गया। अगले दिन परदेशी ने आफिसियल फोन से प्रीति को फोन किया। फोन उसकी बड़ी दीदी ने उठाया। तब परदेसी ने प्रीति से बात कराने का आग्रह किया। परदेशी ने प्रीति को जब सारी बातें बता दी।

तब प्रीति ने कहा कि अभी मैं आपको दुबारा फोन करती हूँ। ऐसा कहकर फोन काट दिया। कुछ देर बाद परदेशी के टेलीफोन की घंटी बजी और परदेशी ने फोन रिसीव किया तो प्रीति ने कहा कि परदेशी जी आज जरूर आइयेगा। कुछ जरूरी बातें करनी है उसके बाद आप जैसा उचित समझिएगा वैसा कीजिएगा। परदेशी सायंकाल उस दुकान पर पहुंचा तो वहाँ प्रीति के स्थान पर उसका बड़ा भाई मिला। आपस में सामान्य शिष्टाचार के बाद प्रीति के भाई ने उस लीडर और उसके आदेशों के बारे में जाना। तब घर पर फोन लगाकर प्रीति को दुकान पर बुलाया। कुछ देर बाद परदेशी को साथ लेकर उसका भाई लीडर से मिलने चल पड़ा। लीडर ने मुलाकात होते ही उन दोनों का अभिवादन किया। सामान्य बातचीत के बाद उसके भाई ने परदेशी के बारे में पूछा कि क्या आप इन्हें जानते हैं ? उसने कहा कि हाँ.. ये फलां कम्पनी में मैनेजर हैं। तब प्रीति के भाई ने कहा कि मैनेजर के साथ ही हमारे घनिष्ट मित्र भी हैं और... इतना ध्यान रखना कि इस शहर में इनको कोई तकलीफ हुई तो तुम्हारी खैर नहीं... अब मैं चलता हूँ।

फिर परदेशी के.साथ अपनी दुकान पर वापस आकर परदेशी से बोला कि आज के बाद यह आपकी तरफ नजर भी उठाकर नहीं देखेगा। तत्पश्चात दुकान से बाहर जाते समय प्रीति से बोला कि परदेशी जी के लिए मैं नाश्ता लाने जा रहा हूँ। उसके जाने के बाद प्रीति ने परदेशी को बताया कि मेरा भाई सभी से शराफत से पेश आता है। जबकि इस शहर में अपनी गौरवशाली गरिमा रखता है। इसीलिए मैंने सारी बात अपने भाई को बता दी थी। उसने यह भी कहा कि आपके सभ्य आचरण के कारण हमारा पूरा परिवार आपसे प्रभावित है। जिससे आप हमारे परिवार में एक एक्जीक्यूटिव मेम्बर की तरह हैं। फिलहाल परदेशी अब स्वतंत्र रूप से उस शहर में रहने लगा। वक्त के साथ दोनों की नजदीकियां बढ़ती रहीं। जिसे देखते हुए प्रीति के साथ उसके पूरे परिवार ने आपस में यह तय कर लिया था कि परदेशी चाहे तो प्रीति का रिश्ता उससे पक्का कर दिया जाय। जबकि सबको यह पता था कि परदेशी पहले से ही शादीशुदा है। आखिरकार प्रीति ने परदेशी से एक दिन मन की बात कह दी। तब परदेशी ने कहा कि हमारे यहाँ बहुविवाह की परंपरा नहीं है। साथ ही मैं अपनी पत्नी, बच्चों व परिवार से बेहद प्रेम करता हूँ। ऐसी दशा में आप सभी का षड्यंत्र मुझ पर नहीं चल सकेगा। इतना कहकर परदेशी वहाँ से उठा और निष्ठुर होकर चला गया। प्रीति ने रोकने का बहुत प्रयास किया किंतु उसने एक न सुनी।

एक-एक कर छ: दिन बीत गए किंतु परदेशी वापस नहीं आया। इस बार प्रीति टूट चुकी थी और उसकी हिम्मत भी न हुई कि परदेशी को फोन कर सके लेकिन उसके पापा ने दोनों को फिर से मिलाने की कई असफल कोशिशें अवश्य की थी। उधर परदेशी भी परेशान हो उठा। हर पल उसकी नजरों के सामने गुलाबी लैगी व टी शर्ट पहने मुस्कुराती हुई प्रीति का चेहरा, उसकी बड़ी-बड़ी आँखें, कानों की बालियां, उसका अपनापन फिर उसकी उदासी एक-एक कर चलचित्र की भांति दिखाई देने लगे। प्रीति के सच्चे प्यार ने परदेशी के जीवन में तूफान ला दिया था।

उसने महसूस किया कि अब प्रीति के बिना उसका इस संसार में जीवित रहना संभव नहीं है। साप्ताहिक अवकाश का दिन था, परदेशी को अहसास हुआ कि प्रीति उसके बिना इस संसार में और नहीं जी पायेगी। वह हर हाल में प्रीति को इस संसार में खुश देखना चाहता था। आखिरकार परदेशी प्रीति के पवित्र प्यार से हारकर अपने दृढ़ संकल्प को लचीला बनाते हुए तेज कदमों से प्रीति की दुकान की ओर कदम बढ़ा दिया। एकाएक उसे खयाल आया कि वह प्रीति को परखने के बाद उससे मिलेगा। यह सोचकर वह उसकी दुकान के पास एक अन्य दुकान में चुपके से जाकर ऐसी जगह बैठ गया। जहाँ से वह प्रीति की गतिविधियों पर नजर रख सके। उसने देखा कि वह काउंटर पर सिर झुकाकर बैठी हुई थी। यदाकदा जब ग्राहक आते थे तो सिर उठाकर कुछ कहती थी और वे वापस लौट जाते थे। शायद उसके तन मन में अब इतनी शक्ति नहीं थी कि वह उठकर सामान दे सके। इस बीच परदेशी को उसका स्याह चेहरा दिखाई पड़ गया। वह तेजी से अपनी प्रीति के पास पहुंचा किंतु कुछ बोल नहीं पा रहा था। उधर प्रीति को भी अहसास नहीं हो पाया कि उसकी दुकान पर कोई आया है। सन्नाटा तोड़ते हुए परदेशी ने कहा ... प्रीति... । उधर से कोई हलचल नहीं हुई। शायद परदेशी की आवाज उसके मुँह से बाहर ही न निकल पाई थी या प्रीति की श्रवण क्षमता ही मद्धिम पड़ गई थी। परदेशी ने इस बार जोर लगाकर कहा... प्रीति...।

प्रीति ने सिर उठाया और कहा कि क्या है ? मानो वह अपने प्यार को भूल चुकी थी। परदेशी ने कहा एक पैकेट कैंडल दे दीजिए। तब प्रीति ने कहा कि क्या करेंगे ? परदेशी ने कहा कि घर में बहुत अँधेरा है ... उजाला करना है...। तब उसने समझदारी दिखाते हुए कहा कि उजाले के लिए एक कैंडल ही काफी है। फिलहाल वह उठी और एक ही कैंडल देकर पैसे लेने से मना कर फिर काउंटर पर सिर लटकाकर बैठ गई। परदेशी कुछ देर खड़ा रहा... शायद, अपनी प्रीति से कुछ कहना चाहता था किंतु समर्पित प्रीति का सच्चा प्यार आज नि:शब्द सा हो गया था। प्रीति ने कुछ देर बाद सिर उठाकर देखा तो उसका प्यार उसकी नजरों के सामने अब भी खड़ा था। उसने पूछा कि अभी आप गये नहीं। परदेशी बोला कि कैसे चला जाता प्रीति ? तुम्हारी हालत तो मुझसे भी बुरी है। उसने कहा कि चलिए हम दोनों अब एक दूसरे बिन जीने की कोशिश करते हैं।

( शेष अगले भाग में। )


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