किशोरावस्था
किशोरावस्था
किशोरावस्था की दहलीज पर सफर करते हुए चुनमुन बारहवीं की वार्षिक परीक्षा देने के लिए दूर के केंद्र पर परीक्षा देने हेतु केंद्र के आसपास गंगा नदी के किनारे बसे गांव में दूर के रिश्तेदार के यहाँ शरण ले रखी थी।
ज्यों-ज्यों समय बीतता गया वह उस परिवेश से परिचित होता गया। एक दिन वह दोपहरी की बेला में गंगा स्नान करने के लिए गया। जहाँ नाविकों के बच्चों का झुंड टीले पर दौड़ते हुए गंगा जी में बार-बार कूदता और चिल्लाता इस बार रिंकू जीत गया, इस बार टिंकू जीत गया, ...। मतलब जो करार पर जितनी दूरी और रफ्तार से दौड़कर गंगा किनारे बने दह में कूदता वह उतनी ही गहराई में जाता था और जो जितने गहराई में जाता था उसी अनुपात में गंगा जल से ऊपर उछलता था। देखते-देखते चुनमुन भी उस झुंड के साथ हो लिया और एक के बाद एक अपनी उछाल बढ़ाते हुए उस दिन का विजेता बना। फिर तो उसे जब भी मौका मिलता वह अपने एक सहपाठी के साथ उस दह की गहराई मापने पहुंच जाता। कई दिनों तक अभ्यास के बाद भी वह दह की गहराई मापने में असफल रहा। तभी किसी ने इस बात की जानकारी चुनमुन के बुजुर्ग रिश्तेदार को दी कि आपके यहाँ जो परीक्षार्थी रुके हुए हैं वह दह में कूदकर अपनी जीवन लीला समाप्त करने हेतु नाविकों के बच्चों का खेल खेलने हेतु प्रतिदिन गंगा स्नान करने जाते हैं। बुजुर्ग रिश्तेदार के पैरों तले से मानो धरती ही खिसक गई हो। उनकी आँखों के सामने उस दह में समाहित कितने चेहरे एक-एक कर उनकी नजरों में तैरने लगे। तभी परीक्षा देकर चुनमुन वापस आया और सूक्ष्म जलपान के बाद गंगा स्नान के लिए अवसर तलाश ही रहा था कि बुजुर्ग रिश्तेदार ने अपने सोने का बहाना बनाकर चद्दर ओढ़ लिया। भला चुनमुन यह सुअवसर कैसे खो सकता था।उसने सहपाठी को इशारे से बुलाया और पतली गली से दबे पाँव गंगा दह की ओर चल पड़ा। पीछे से बुजुर्ग रिश्तेदार ने आवाज दी तो चुनमुन चौंक कर लौट आया। बुजुर्ग रिश्तेदार ने उस दह में समाहित अनेकों नौनिहालों के बारे में विस्तार से जब बताया तो चुनमुन स्तब्ध रह गया और यह गलती दोबारा न करने की कसम खाई। धीरे-धीरे चुनमुन जीवन के तमाम झंझावातों को पार कर एक अनुभवी शिक्षक के रूप में स्थापित होकर अपने शिष्यों को सफल जीवन हेतु प्रशिक्षित करने लगा।