Vinod Kumar Mishra

Tragedy

5.0  

Vinod Kumar Mishra

Tragedy

अतिसंवेदनशील सफर

अतिसंवेदनशील सफर

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बात उन दिनों की है जब सरकारी बसें ही सुदूर यात्रा का संसाधन हुआ करती थीं।

भीषण शीतलहरी के साथ सायंकाल का समय था। बस के इंतजार में घंटों ताकझांक करने के बाद रावर्ट्सगंज बसड्डे के बाहर आकर ब्रीफकेस लटकाए हुए अट्ठारह वर्षीय अज्जू अपने गंतव्य स्थल मीरजापुर के लिए प्राइवेट कारों की ओर आशा भरी निगाहों से हाथ लहराते हुए आवाज लगाता कि... क्या आप मीरजापुर की ओर जा रहे हैं? बहुत से ड्राइवर उसे अनदेखा कर अपनी ही धुन में रफ्तार बढ़ाकर निकल गए। तभी एक कार उसके पास आकर रुक गई। उसमें सवार एक व्यक्ति ने आवाज लगाई कि मीरजापुर, मीरजापुर...।

अज्जू दौड़कर ड्राइवर के पास पहुंचा और बोला कि आप कितना किराया लेंगे? ड्राइवर ने कहा कि जो बस का किराया होता है उतना ही आप दे दीजिएगा। तभी पीछे बैठे एक व्यक्ति ने दरवाजा खोला और अज्जू झट से जाकर सीट पर बैठ गया। बैठने के बाद उसका ध्यान अन्य सवारियों पर गया तो देखा कि ड्राइवर सहित उसमें कुल चार लोग पहले से ही बैठे थे। जो आपस में अनभिज्ञ बने हुए थे। लगभग तीन किलोमीटर सफर तय करने के बाद उनका सन्नाटा टूटा और एक ने कहा निकाल यार दो पैग हो जाये... फिर चारों ने पैग चढ़ाना शुरू किया। अज्जू का भ्रम अब टूट गया था कि कार में बैठे अन्य लोग भी उसी की तरह सवारी ही हैं। वह भयभीत हो गया था...। 

उन दिनों रावर्ट्सगंज से मीरजापुर रोड पर मड़िहान थाने से बरकछा तक घने जंगल हुआ करते थे। जहाँ हत्या और लूट की सनसनीखेज घटनाएं आम हुआ करती थीं। अज्जू यह सोचकर डर गया था। उसके मन में अनेकों विचार लहरों की तरह उठते-गिरते रहे। इसी बीच कार मड़िहान थाने के करीब पहुंच गई। अज्जू ने लघुशंका के बहाने कार रुकवाई। सामने उसे एक विद्यालय दिखाई दिया। जिसे देखकर उसके मन में एक नयी युक्ति ने जन्म लिया और वह कार ड्राइवर के पास पहुंचकर उसे मीरजापुर तक का किराया देते हुए बोला कि आप लोग जाइए मैं आज यहीं पर अपने पिताजी के पास रुकूंगा, जो कि इसी विद्यालय में अध्यापक हैं।

यह सुनते ही कार ड्राइवर एवं उसके अन्य साथियों के चेहरे पर पल भर के लिए सन्नाटा सा छा गया था। फिर वे कहने लगे कि आप तो मीरजापुर चलने के लिए बैठे थे। आइए बैठिए, हम आधे घंटे में आपको मीरजापुर पहुंचा देंगे। जो अज्जू अब तक बिल्ली बनकर उन चारों के साथ येनकेन प्रकारेण सफर कर रहा था। वही अब शेर बनकर कार के बगल में खड़े होकर ऊँची आवाज में कहने लगा कि मैंने मीरजापुर तक का आपको किराया दे दिया है और अब मुझे अपने पिताजी के पास ही रुकना है। इसलिए आप लोग अब जा सकते हैं। बगल में स्थित थाने के कुछ सिपाही सड़क पर चहलकदमी कर रहे थे, जो सड़क पर उसकी ऊँची आवाज सुनकर कार की ओर बढ़ने लगे। इतने में कार वहाँ से रफूचक्कर हो गई। सिपाहियों ने अज्जू के पास आकर जब पूछा कि क्या बात थी? तब अज्जू ने सारी दास्तान एक एक कर उनको बताई। यह सुनकर सिपाहियों ने कहा कि आपने बहुत ही सूझबूझ से सही निर्णय लिया है। किंतु, भीषण शीतलहरी में रात के नौ बज चुके हैं और आगे घना जंगल है, इसलिए आप थाने पर ही विश्राम कीजिए तथा सुबह बस से चले जाइएगा। अज्जू ने यह कहकर उनकी हाँ में हाँ मिलाया कि यदि रात दस बजे वाली बस मिल जाएगी तो मैं चला जाऊँगा अन्यथा आपके संरक्षण में थाने पर ही रात गुजारूँगा।

तभी रात के करीब दस बजे बसड्डे के समक्ष जब सरकारी बस आकर रुक गई तब अज्जू ने उन सिपाहियों से, जो घंटे भर से उसकी सुरक्षा हेतु चिंतित थे, का आभार व्यक्त किया और उनसे अनुमति लेकर बस में बैठ गया। बस में बैठकर उस विद्यालय के प्रति भी उसने कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए भविष्य में शिक्षक बनने का संकल्प लिया। समय के साथ ईश्वर ने उसकी मुराद पूरी कर दी। अब वह निष्ठापूर्वक अपने अध्यापन कार्य में सतत संलग्न रहकर छात्र जीवन के सुरक्षित सफर हेतु उनके जीवन कौशल को विकसित करने में आज भी अग्रसर है...।


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