अतिसंवेदनशील सफर
अतिसंवेदनशील सफर




बात उन दिनों की है जब सरकारी बसें ही सुदूर यात्रा का संसाधन हुआ करती थीं।
सायंकाल का समय था और बस के इंतजार में घंटों ताकझांक करने के बाद रावर्ट्सगंज बसड्डे के बाहर आकर ब्रीफकेस लटकाए हुए अट्ठारह वर्षीय अज्जू अपने गंतव्य स्थल मीरजापुर के लिए प्राइवेट कारों की ओर आशा भरी निगाहों से हाथ लहराते हुए आवाज लगाता कि क्या आप मीरजापुर की ओर जा रहे हैं। बहुतों ने उसे अनदेखा करते हुए अपनी ही धुन में रफ्तार बढ़ा निकल गये। तभी एक कार उसके पास आकर रुक गई। उसमें सवार एक व्यक्ति ने आवाज लगाई कि मीरजापुर, मीरजापुर...।
अज्जू दौड़कर ड्राइवर के पास पहुंचा और बोला कि आप कितना किराया लेंगे? ड्राइवर ने कहा कि जो बस का किराया होता है उतना ही आप दे दीजिएगा फिर पीछे बैठे व्यक्ति ने दरवाजा खोला और अज्जू झट से जाकर सीट पर बैठ गया। तब उसका ध्यान अन्य सवारियों पर गया तो देखा कि ड्राइवर सहित उसमें कुल चार लोग पहले से ही बैठे थे। जो आपस में अनभिज्ञ बने हुए थे। लगभग तीन किलोमीटर सफर तय करने के बाद उनका सन्नाटा टूटा और एक ने कहा निकाल यार दो पैग हो जाये। फिर चारों ने पैग चढ़ाना शुरू किया। अज्जू का भ्रम अब टूट गया कि कार में बैठे अन्य लोग भी उसकी तरह सवारी ही हैं।
उन दिनों रावर्ट्सगंज से मीरजापुर रोड पर मड़िहान थाने से बरकछा तक घने जंगल हुआ करते थे। जहाँ हत्या और लूट की सनसनीखेज घटनाएं आम हुआ करती थीं। अज्जू यह सोचकर डर गया। उसके मन में अनेकों विचार लहरों की तरह उठते-गिरते रहे। इसी बीच कार मड़िहान थाने के करीब पहुंच गई। अज्जू ने लघुशंका के बहाने कार रुकवाई। सामने उसे एक प्राथमिक विद्यालय दिखाई दिया। जिसे देखकर उसके मन में एक नयी युक्ति ने जन्म लिया और वह कार ड्राइवर के पास पहुंचकर उसे मीरजापुर तक का किराया देते हुए बोला कि आप लोग जाइए मैं यहीं अपने पिताजी के पास ही आज रुकूंगा। वे इसी विद्यालय में अध्यापक हैं।
उन लोगों के चेहरे पर पल भर के लिए सन्नाटा छा गया। फिर वे कहने लगे कि आप तो मीरजापुर चलने के लिए बैठे थे। आइए बैठिए हम आधे घंटे में मीरजापुर पहुंचा देंगे। जो अज्जू अब तक बिल्ली बनकर उन चारों के साथ येनकेन प्रकारेण सफर कर रहा था वही अब शेर बनकर कार के बगल में खड़े होकर ऊँची आवाज में कहने लगा कि मैंने मीरजापुर तक आपका किराया दे दिया है और अब मुझे अपने पिताजी के पास ही रुकना है, अतः आप लोग जाइए। बगल में स्थित थाने के कुछ सिपाही चहलकदमी कर रहे थे जो सड़क पर ऊँची आवाज सुनकर कार की ओर बढ़ने लगे। इतने में कार वहाँ से रफूचक्कर हो गई। सिपाहियों ने अज्जू के पास आकर पूछा कि क्या बात थी? अज्जू ने जब सारी दास्तान बताई तो सिपाहियों ने कहा कि आपने बहुत ही सूझबूझ से सही निर्णय लिया है। किंतु, भीषण शीतलहरी में रात के नौ बज चुके हैं और आगे घना जंगल है, इसलिए आप थाने पर विश्राम कीजिए तथा सुबह बस से चले जाइएगा। अज्जू ने यह कहकर उनकी हाँ में हाँ मिलाया कि यदि दस बजे वाली बस मिल जाएगी तो मैं चला जाऊँगा अन्यथा आपके संरक्षण में रात गुजारूँगा।
लगभग रात के दस बजे बसअड्डे के समक्ष बस आकर रुकी तो अज्जू ने सिपाहियों का आभार व्यक्त किया जो घंटे भर से उसकी सुरक्षा हेतु चिंतित थे और बस में बैठकर उस प्राथमिक विद्यालय के प्रति अज्जू ने कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए भविष्य में शिक्षक बनने का संकल्प लिया। ईश्वर ने समय के साथ उसकी मुराद पूरी कर दी और वह निष्ठापूर्वक अपने अध्यापन कार्य में संलग्न होकर छात्रों के सुखद सफर हेतु उनके जीवन कौशल को विकसित करने में संलग्न हुआ।