अमृता शुक्ला

Inspirational

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अमृता शुक्ला

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प्रापर्टी

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दरवाज़े पर कार रुकी। नयी बहू के स्वागत के लिए घर और आस-पास की औरतें जमा थीं। महक ने सपनों में खोए हुए घूंघट से झांक कर एक नज़र घर पर डाली और कार से उतर कर अपने पैर ज़मीन पर रखे ही थे कि कड़वे बोल सुनाई पड़े------"लो मम्मी जी आरती उतारो अपनी काली कलूटी बहू की।" यह सुनते ही महक एकदम सहम गयी। ये कैसा स्वागत है? वो तो इतनी बुरी नहीं दिखती जैसा बोला जा रहा है। बल्कि वो तो बहुत सुंदर है। उसने जानना समझना चाहा कि ये ज़हर किसने उगला है। पर कोई फायदा नहीं। वो कहाँ किसी को जानती थी? जैसे तैसे अपने को सामान्य करके घर में प्रवेश किया। वहाँ कुछ रस्में पूरी करने के लिए महक को बिठाया गया। महक अभी भी ड़र रही थी कि अब फिर कोई बात, कोई ताना न मार दे। चावल के ढेर में से पहले कौन जल्दी बरतन में भरता है, ऐसी रस्म के दौरान ड़र सही साबित हो गया और वही आवाज़ सुनाई दी--"लो मम्मी जी बहूरानी ही जीत रही है, उसी का पलड़ा भारी रहेगा। आपका लाडला बेटा तो गया।" अब तो महक की आंखों में आँसू छलक आए। उसे लगने लगा कि वो कहाँ आ गयी है। सपनों का महल गिरता दिखा। कहते है न विवाह संयोग से होते हैं। शहर के एक परिचित और ज़रा दूर के रिश्तेदार मदन शर्मा जी अपने मौसरे भाई का रिश्ता लेकर आए थे। कुछ समय तक संबंधित जगह पत्र-व्यवहार चलता रहा। लेकिन किसी वजह से बात आगे नहीं बढ़ पायी। यह जानकर मदन जी बोले ----"चाचाजी मेरा एक साला है कहें तो उससे बात चलाएं।" सभी तरह से आश्वस्त होकर पिताजी इस रिश्ते के लिए राजी हो गए।मगर बहुत बार दूसरे घर -परिवार की बहुत बातें तुरंत समझ नहीं आ पातीं, धीरे धीरे पता लगती हैं, जैसे कि महक को यहाँ पर महसूस हो रहा था।

मदन जी बड़े बिजनेस मैन थे, स्वाभाविक है कि रहन -सहन भी ऊंचा होगा। सगाई से पहले दोनों पति-पत्नी घर आने लगे और मधु दी तो महक से खूब लाड़ करने लगीं थी। वैसे सात भाई -बहनों में पवन सबसे छोटे थे और सबसे प्रिय भी। इसलिए उसकी होने वाली संगिनी भी प्रिय है यही मधु दी जताती थीं। कुछ दिनों बाद पवन अपने मम्मी पापा मदन जी और मधु दी के साथ महक को देखने घर आए। सभी को महक पंसद आयी और लगुन सगाई शादी की तारीख निकालने की सहमति बन गयी। पिताजी ने पवन के घर संबंधी जानकारी के लिए स्वयं जाने की सोची क्योंकि होने वाले समधी उनके स्कूली सहपाठी निकल आए थे। पहले वहाँ भाई साहब जाने वाले थे। महक इस बात से थोड़ा घबरा रही थी कि इतनी बड़े परिवार में वो कैसे रहेगी यहाँ मायके में तो कम लोग है । लेकिन मदन जी और मधु दी के स्वभाव से उसका डर थोड़ा कम हो गया और उसे लगा कि वो अच्छे रिश्ते से बंधने जा रही है। लगुन के कार्यक्रम में यहाँ से बहन जीजाजी और भाई वगैरह सभी शामिल होने पवन के घर पहुंचे। उन सब का अच्छी तरह स्वागत हुआ ,यह जानकर महक को तसल्ली मिली और डर भी थोड़ा कम हो गया। पिताजी की हर से संतुष्टि से सगाई और शादी संपन्न हो गयी और वो ससुराल आ गयी। उसके गृह प्रवेश से लेकर बाद तक जो हो रहा था वो उन नंनद के परिवार और यहाँ के लोगों से तालमेल नहीं कर पा रही थी। लेकिन उसने भी सोचा कि ये सब मजाक वगैरह हो रहा होगा जो कि अक्सर शादी ब्याह के अवसर पर होता है। इसलिए मुझे इस बारे में नहीं सोचना चाहिए। आगे सब ठीक रहेगा। फिर तालमेल का दूसरा नाम ही शादी है। मैं सबके साथ खुश रहूँगी ऐसा मेरा विश्वास है।

दूसरे दिन सुबह सत्यनारायण की कथा हुई और शाम को मुंह दिखाई का कार्यक्रम था। बहुत सारी महिलाएं आयीं। गाना बजाना नाश्ता पानी बड़ी देर चला। सब अच्छे से संपन्न हो गया। बाद में घर की महिलाओं ने नयी बहू को उपहार देने शुरू किए। उसी समय वो जान पायी कि वो ताना मारने वाली घर की सबसे बड़ी बहू यानी महक की सबसे बड़ी जिठानी थी और वो एक बेटी ,बेटे के साथ फिलहाल बेंगलूर में रहती थीं। जेठ जी आर्मी में मेजर थे , इसलिए उनका तबादला होता रहता था। महक बड़ी जिठानी के ऐसे व्यवहार का अर्थ नहीं जान पायी थी। छोटे जेठ जिठानी पास के कॉपर माइंस में इंजीनियर थे और अपने परिवार के साथ मांइस की टाउन शिप में अपने दो बेटों के साथ रहते थे। तीसरे दिन सभी मेहमान चले गए। घर में सास ससुर मंझली जेठ जिठानी उनके दो बच्चे बेटी बेटा, महक और पवन रह गए। मंझली जेठ अपने परिवार के साथ ऊपर रहते थे। वही उनका छोटा सा किचन भी था, जहाँ पर वो चाय वगैरह बनाती थीं। खाना तो सबका साथ में नीचे महराज जी बनाते थे। ये महराज जी बहुत समय से यही काम कर रहे थे। पवन सबसे छोटे और लाडले बेटे थे तो स्वाभाविक है कि उसकी पत्नी महक से भी सब प्यार से बात करते थे ,पर उसे कुछ दिनों में महसूस हुआ कि यहाँ सब अच्छे तो है पर सबके व्यवहार में बनावटीपन है। मंझली जिठानी का तो और भी अजीब था। पूरे समय ऊपर रहती। खाना खाने पर बुलाने पर नीचे आती थी बस। बच्चे स्कूल से आते तो दादी ही खाना परोसती। जेठ जी तो शाम को नीचे ही रहते थे। बाई नहीं आए तो बड़ी बेटी ही कपड़े धोती। जिठानी बड़े पैसेवाले घर से आयी थीं ,जिसकी तारीफ मम्मी -पिताजी हमेशा करते, वहीं महक एक मध्यम परिवार से आयी थी। लेकिन इस कमी की पूर्ति महक ने अच्छे स्वभाव से की। एक दिन छोटी जिठानी ने बताया कि ये सब दीदी मम्मी जी के व्यवहार के कारण करती हैं। महक यह सब देख सुनकर अपने को विचित्र स्थिति में पाती। ऐसे में उसे मायके याद आने लगती जहाँ पर यहाँ से भिन्न सहज सरल वातावरण था। वैसे हर घर का रहन-सहन एक जैसा नहीं होता। महक भी थी तो घर की छोटी और लाडली बेटी थी। इसलिए ज्यादा सोचती थी। मगर एक बात यह भी थी कि नयी शादी के बाद जो उत्साह ,उल्लास, प्यार रहता है ,वो महक को गायब लगता था। पवन वैसे तो महक का ख्याल तो रखते थे, पर सबके सामने यही साबित करते थे कि वो बीबी के पल्लू से बंधे रहने वालों में से नहीं हैं। कहीं ले जाने के नाम से जरा दूरी बना कर रखते थे। नयी हुई शादी में ही ये सब शौक होते हैं। बाद में व्यस्तताएं बढ़ जाती हैं और इच्छाएं घटने लगती हैं। यह बात महक ने पवन को बतायी लेकिन पवन इन पर ध्यान ही नहीं देते। व्यक्ति अनुभव ,परामर्श और दैनिक घटनाओं के आधार पर ही कोई विचार बनाते हैं। यही बात पवन पर भी लागू होती थी। अब कैसी भी परिस्थिति हो नारी को हर कदम पर समझौता करना ही सिखाया जाता है और ये भी समझाया जाता रहा है कि ये समझौते उसके वर्तमान और भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए जरूरी होते हैं ।

पवन पूजा -पाठ मे नियम के बड़े पक्के थे। कितनी देर, कैसी भी स्थिति हो पूजा करना नहीं भूलते। बड़े हनुमान भक्त थे। वैसे यह अच्छी बात थी। सामने पूर्वजों के द्वारा बनाए हनुमान जी के मंदिर तो रोज ही जाते थे पर हनुमान जंयती के अवसर पर सुबह से ही आयोजन करवाने लगते।

बिट्टू के होने के बाद वो भी सबका लाडला बन गया। सब घर में उसे पवन का प्रतिरूप ही समझते थे क्योंकि शक्ल के साथ साथ शैतानी में भी एक दोनों एक से थे। ससुराल में नवरात्रि के दिनों में पंडित जी के द्वार देवी माँ की तस्वीर की स्थापना की जाती और अष्टमी को हवन -पूजा और आरती होती । पापा जी हवन में महक और पवन को ही बैठाते। पितृपक्ष में मातृनवमीं को भी पूजा बड़ी अच्छे से की जाती और बहुत लोग भोजन करते। इस अवसर पर भी महक आगे होकर काम करती। पापा जी की उम्र ज्यादा थी, मोतियाबिंद होने से कम दिखता था। इसलिए किसी पत्र को पढ़ना हो या उसका उत्तर देना हो वो ये काम महक से ही करवाते थे। कहने को घर में महक नाम सबके ज़ुबान पर रहता था। पवन और महक यह सब खुशी से करते पर बाकी सदस्य इसे संपत्ति पाने के लिए चापलूसी करना समझते। ये बात अलग है कि पवन को छोड़कर सभी पापाजी की संपत्ति से हिस्सा पा चुके थे जिसमें खेत, गहने वगैरह भी शामिल था। पापा जी हमेशा कहते थे "ये वाला घर पवन को मिलेगा और मम्मी के गहने महक को।" बाकी बेटों के स्वभाव को देखकर घर की उन्होंने लिखा -पढ़ी नहीं करवाई थी क्योंकि वे खुद भी वही रहते थे और अपनी बची उम्र यही पर शांति से व्यतीत करना चाहते थे। उनके इस फैसले से पवन को कोई एतराज नहीं था और महक भी पवन के साथ थी। मंझली जिठानी के व्यवहार को देख पापा जी ने जेठ को जमीन दे दी जिस पर घर बनना शुरू हो गया। घर पूरा हो जाने पर भी जब वे शिफ्ट नहीं हुए। फिर भी वो नए घर में तब गए जब पापाजी ने आदेश दिया। यहाँ पर भी यही समझा गया कि ये सब पवन-महक की चाल है,सबको हटाकर अकेले रहना चाहते हैं। हर बार की तरह ऐसी कोई बात नहीं थी । जब सारे लोग एक साथ रहते हैं तो बहुत अच्छा लगता है। पर साथ रहने के लिए सभी को प्रेम से रहना पड़ता है जो यहाँ पर वे नहीं प्रदर्शित नहीं कर पा रहे थे। इसका कारण मम्मीजी थी या जिठानी ,महक समझ नहीं पायी।

दिन गुज़रते जा रहे थे। पवन-महक जिंदगी को ज्यादा से ज्यादा आसान और खुश बनाने के लिए प्रयत्न करते रहते वहीं बाकी जिसमें पापाजी वाला घर ,मम्मी के गहने और चांदी के बरतनों को पाने में पाने के उपायों में लगे रहते।

कुछ दिनों बाद चाचा ससुर के शादी में कानपुर जाना तय हुआ। पापा और मम्मीजी ने महक, पवन को ही साथ ले जाने का निर्णय लिया। बाकी बेटे -बहू को पूछा भी नहीं। ये बात निश्चित रूप से उन्हें बुरी लगी होगी। शादी से लौटते समय कार का इतना बुरा एक्सीडेंट हो गया कि ड्राइवर तो सीट पर ही दम तोड़ चुका था। इस हादसे में मम्मी जी और पवन को भी भगवान ने छीन लिया था। महक तो बेहोश हो गयी, इसलिए उसे कुछ पता नहीं लगा, कि उसकी ख़ुशियाँ छिन गयीं हैं। बिट्टू सीट से नीचे गिर गया था इसलिए उसे भी एक -दो दिन ऑब्जरवेशन के लिए अस्पताल में रखा गया था और बाद में सब सही होने के कारण अस्पताल से छुट्टी मिल गई। लेकिन पापा जी को बहुत चोट लगी थी उनके पैर की हड्डी में घाव हो गया था और अंदरूनी चोट भी लगी थी ।जिसके कारण वो अस्पताल में महीने भर भर्ती रहे। घर आकर भी उन्हें कमजोरी बनी रहती। उम्र का तकाजा़ और इतनी बड़ी दुर्घटना में पत्नी ,लाडले बेटे को खो देने का दुख उन्हें भीतर से खोखला कर रहा था। महीने होते -होते पापा भी छोड़ कर चले गए। लगता था इस घर और इसमें रहने वालों को किसी की बुरी नज़र लग गयी थी। महक तो एकदम अकेली हो गयी और उसे लगा कि कहीं वो पागल न हो जाए। जिठानियां ऊपरी मन से सांत्वना दे रही थीं।ननंदें भी महक के लिए बड़ी दुखी थीं। माँ पिताजी सभी मायके से आए और महक को साथ ले जाने की बात की। तभी एक ननंद ने समझाया कि "यदि तुम चलीं गई तो तुम और तुम्हारे बेटे को कुछ नहीं मिलेगा।" मगर न तो महक रहना चाह रही थी , न हीं मायके वाले। मायके आकर महक ने छोटी -मोटी नौकरी करनी शुरू कर दी। हालाँकि पिताजी कहते रहे "अरे तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं हैं। तुम्हारे पिताजी अभी तुम्हारे साथ हैं।" पर मन लगा रहेगा कहकर महक ने सबको उसने राजी कर लिया। नंनदों ने भी अपने तरफ से मदद करनी चाही पर पिताजी ने साफ मना कर दिया कि महक के माँ -बाप अभी जीवित हैं। पिताजी के ऐसे कहने की वजह भी थी । उन्हें मधु दी पर विश्वास था कि वो महक के लिए जरूर खड़ी होगीं ,लेकिन पिताजी को निराशा हाथ लगी। इतना सब कुछ पास होते हुए भी मध दी ने मम्मी के थोड़े गहने रख लिए थे। महक को लगा था कि उसके साथ अन्याय नहीं होगा ,पर वही हुआ। वह अपने थोड़ा ही सामान्य बना पायी थी कि खबर आई कि छोटे जेठ -जिठानी ने सारे दस्तावेज और वसीयत बदल कर सब कुछ अपने नाम करवा लिया है। इस पर मंझले जेठ जी उनका झगड़ा भी हुआ कि उन्हें क्यों नहीं कुछ दिया। वसीयत में थोड़े पैसे बेटे को देने के लिये लिखा था उसे वो भी नहीं दिए गए। आश्चर्य की बात ये थी महक के नाम कुछ भी नहीं था । महक ने सब स्वीकार कर लिया। समय अपनी रफ्तार से बढ़ा जा रहा था। इस बीच पहले माँ ,फिर चार साल बाद पिताजी चल बसे। एक के बाद एक दुखों के पहाड़ टूटते रहे । लेकिन महक को बहनों ने हिम्मत बंधायी और वक्त आने पर मदद भी की। पिताजी जी के जीवित रहते ही बिट्टू अच्छे से पढ़ने के अलावा स्कूल में होने वाला प्रतियोगिताओं में भाग लेता और जीत कर आता। पढ़ाई पूरी करने के बाद बड़ों के आशीर्वाद से उसे एक बड़ी कंपनी में अच्छी नौकरी भी मिल गयी ,जहाँ सैलरी भी बहुत थी। महक को ससुराल की खबर मिलती रहतीं थीं। मंझले जेठ के बेटे ने वकालत तो पास की, फिर भी लगभग बेकार ही घूमता रहता था। छोटे जेठ के बेटे बुरी संगत में पड़ गए थे और बड़े जेठ के बच्चे भी ठीक - ठाक ही निकले।

 एक दिन छोटी नंंनद को फोन आया। महक और बेटे को कामयाब होने की बहुत बधाई के साथ ढेर सारा आशीष देकर कहने लगीं"तुमने बेटे को बनाने में बड़ी मेहनत की है। तभी तो बिट्टू ने भी अपने दम से इतना हासिल कर लिया ,किसी से भी मदन नहीं ली।। पापा की प्रापर्टी से तुम्हें कुछ नहीं मिला ,इसका बड़ा दुख है।" तब महक बोली "नहीं दी मुझे इस बात का जरा भी अफसोस नहीं है क्योंकि रुपये पैसे मकान तो क्षणिक हैं। मेरा बेटा एक बेहतर और सफल इन्सान बन गया है। उसने मेरा सिर ऊंचा किया और सम्मान बढ़ाया है और वही मेरे लिए बड़ी प्रापर्टी है जो हरदम साथ रहेगी।



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