अमृता शुक्ला

Children Stories

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अमृता शुक्ला

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बचपन की सीख

बचपन की सीख

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मम्मी बड़ी जोर से भूख लगी है, जल्दी से खाने को दो न। ” रसोई में काम कर रही माँ से मुन्ना ने लिपटते हुए कहा। माँ ने ज्यों ही पलट कर देखा तो सिर पकड़ लिया। गुस्सा होते हुए बोली “ये क्या है मुन्ना? अभी दस मिनट पहले नहला कर साफ कपड़े पहनाए थे और तुम फिर गंदे हो कर आ गए। कितना तंग करते हो। जाओ अब खुद ही साफ सुथरे हो कर आओ, मैं खाने के लिए देती हूं।”


यह सब रोज की दिनचर्या में शामिल था। असल में सात साल का मुन्ना शैतानी से सबको हैरान किए रहता था। छोटा था फिर भी एक जगह टिक कर नहीं रहता था। कब आंखों से ओझल हो जाता पता ही नहीं चलता। बाहर जाते ही खेल में ऐसा मगन होता कि न चीजों का ख्याल रहता न समय का। हर दूसरे दिन चप्पलें खो आता। घर भर में सबका लाडला और आंखों का तारा था। इसलिए दादा दादी के कारण कोई कुछ नहीं कह पाता था।

वैसे मुन्ना ने स्कूल जाना शुरु कर दिया था। पढ़ने लिखने में तेज था। स्कूल में अच्छी तरह रहता और खूब प्यारी बात करता। उसके प्यारेपन के कारण वह सब शिक्षकों का फेवरेट था। यही वजहों से वह निडर हो गया था।

इसी बीच जब घर से पैसे चिल्लर गायब होने लगे तब सबके कान खड़े हो गए और नौकर चाकर से पूछताछ की गयी। एक नौकर ने डरते डरते बताया कि किराना वाला कह रहा था कि मुन्ना अपने दोस्तों के साथ कुछ लेने आने लगा है और फिर मंदिर में बैठ कर खाते हैं। यह सुनकर पापा तुरंत मंदिर गए। चाचा जी को देखकर सब बच्चे भाग गए। मुन्ना डांट खाने के डर से घर आते ही रोने लगा। माँ ने चुप कराया और दादा दादी ने भी सख्ती करने से मना कर दिया। पापा को भी उसके भोले चेहरे पर तरस आ गया। उन्होंने उसे प्यार से समझाना शुरू किया- “बेटा देखो ऐसे बिना पूछे कोई चीज़ लेना चोरी कहलाती है और चोरी करना बुरी बात है। हम सब तुमसे कितना प्यार करते हैं। तुम्हारी हर जरूरत पूरी करते हैं, फिर बताओ ऐसा किया जाता है क्या? तुम्हें जो चाहिए हमें कहो। तुम तो होशियारी हो। अच्छे से पढ़-लिख की बड़ा आफिसर बनना है। अच्छे बच्चों को ही ईश्वर और बड़े आशीर्वाद देते हैं। अब से कोई गलत काम तो नहीं करोगे? मुन्ना को सारी  बात समझ आ गई थीं। उसने सिर हिलाकर पापा के गले लगकर कहा--नहीं पापा मैं अब कभी गलत काम नहीं करूंगा। मुन्ना ने सबको सॉरी कहा, पैर छुए। फिर पापा उसे स्कूटर पर घुमाने निकल गया गए।



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