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डॉअमृता शुक्ला

Tragedy

4  

डॉअमृता शुक्ला

Tragedy

लघुकथा

लघुकथा

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रमा ने घड़ी पर नज़र डाली ।दोपहर के डेढ़़ बजे चुके थे और काम वाली बाई का अभी तक कोई पता नहीं था।कल की छुट्टी लेकर गयी थी कि शादी में जाना है।लेकिन आज तो आना था उसे। । तभी गेट खुलने की आवाज आई और बाई प्रकट हुई।समय के साथ गुस्सा बढ़ चुका था तो रमा बोली-"क्या बाई कितनी देर कर देती हो?"उसने कुछ कहा पर उसे सुनने की इच्छा नहीं थी।आखिर में जब बाई  ने भीतर काम खत्म किया और आंगन धोने लगी तभी भरी तेज धूप एकदम बारिश में बदल गयी और देखते-देखते आंधी तूफान के रुप आकर चीजों को उडाने लगी।तब रमा ने बाई से कहा-"जाओ सामने वाले घर में काम कर आओ, ऐसे हवा-पानी में तो आंगन नहीं धुल पाएगा।" लेकिन हवा इतनी तेज़ थी कि बाई नहीं जा पा रही थी। इसलिए अंदर खड़ी हो गयी।रमा ने मुड्डा बैठने के लिए दिया वो बैठ गयी। फिर कहने लगी-"इतनी जल्दी-जल्दी अस्पताल से आयी और आने का कोई मतलब नहीं हुआ"।रमा ने पूछा-"अस्तपाल क्यों गयी थी"तो बोली-"अरे मेरी बड़ी लड़की का हाथ कट गया"। "कैसे?"रमा ने जानना चाहा।"लड़की जहां काम करती है ,वहां कांच का ग्लास धो रही थी तो टूट कर हाथ में लग गया ,गहरा कट भी गया।खूब टांके आए , बहुत पैसा भी लग गया।पर वो बाई कहने लगीं-हमारा 500 रुपए का ग्लास सेट लड़की ने खराब कर दिया। अब देखो हाथ की चोट की चिन्ता नहीं,अपने ग्लास सेट की खराब होने की चिन्ता है।रमा बस इतनी ही बोली -" हॉ ऐसे नहीं कहना चाहिए था" ।तब तक हवा कम हो गयी थी। 



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