होशियार राजू
होशियार राजू
राजू एक बड़े शहर के इग्लिश स्कूल में पाँचवीं में पढ़ रहा था। इससे पहले वो एक छोटे शहर में मम्मी -पापा, दादा दादी के साथ रहता था। वो बचपन से ही बहुत समझदार तो था और चंचल खूब था, जिससे शैतानी में ज्यादा मन लगता था, पढ़ने में कम। नाना नानी अकेले रहते थे और पढ़ाई की सुविधा वहां ज्यादा अच्छी थी। इसके अलावा शैतानी कम करे इसलिए राजू को उसके नाना के पास यहाँ पढ़ाई करने भेजा। जिस स्कूल में राजू का दाखिला करवाया गया था वो घर के एकदम पास था और एक -दो टीचर तो सामने ही रहतीं थीं और प्रिंसिपल भी नानाजी की परिचित थीं। इस स्कूल की खास बात यह ये थी कि यहाँ पर पढ़ने के साथ -साथ दूसरी एक्टिविटी में भी बच्चों को भाग लेने के प्रेरित किया जाता। प्रिंसिपल मैडम स्वयं इन सब में रुचि लेती थीं। कविता, वाद-विवाद, नाटक, गाना, फैंसी- ड्रेस, खेलकूद प्रतियोगिताएं, यहां आयोजित होती रहती। इसके साथ साथ इंटरर्स्कूल प्रतियोगिताओं के लिए भी बच्चों को शहर के स्कूल और शहर से बाहर भी भेजा जाता। ये साल भर होती और इनाम भी दिए जाते। इन सारे में राजू जरूर भाग लेता और जीतता भी जरूर। सवेरे कराटे सिखाया जाता उसमें राजू ने यलो बैल्ट हासिल कर लिया था। हर शनिवार को टेराकोटा, पैंटिग की क्लास लगती तब राजू उसमें बड़ी रुचि लेता। मैडम स्पोकन इंग्लिश के लिए बहुत ज्यादा ज़ोर देती थी। इसलिए घर से बच्चों से न्यूज पेपर पढ़ के आने कहती। इन सब में भी राजू इस में बढ़ -चढ़ कर हिस्सा लेता। जहां तक पढ़ाई का सवाल था, उसमें शैतानी के कारण कम ध्यान रहता लेकिन नानाजी के डर से मन लगाना पड़ता था। इसलिए शाम को ट्यूशन भेजा करते। इसका भी एक किस्सा है। स्कूल की छुट्टी के बाद जब सब टीचर के घर पढ़ने जा रहे तब राजू ने कहा कि-आज मेंम ने कहा है कि वो बाहर जा रही हैं। सबने मान लिया। दूसरे दिन जब टीचर ने स्कूल में बच्चों को बुलाकर पूछा कि तुम लोग पढ़ने क्यों नहीं आये? तो सब ने सारी बात बताई। तब राजू को बड़ी डांट पड़ी और उन्होंने समझाया भी कि ऐसा नहीं करना, तुम्हें पढ़ाई अच्छी तरह करके आगे निकलना है। दशहरे की छुट्टियों में मैडम बच्चों को ऐतिहासिक और दर्शनीय स्थलों में टूर पर ले जाया जाता। इसी क्रम में इस बार दिल्ली, आगर, लखनऊ, मांउट आबू जगहों पर जाना तय हुआ। राजू भी जाने की जिद करने लगा। पर नाना नानी राजी नहीं हो रहे थे क्योंकि उन्हें चिंता थी एक तो बड़ा चंचल और वो अकेला सब कर पाएगा कि नहीं। लेकिन राजू की जिद से वो मान गया गए और तैयारी के साथ अच्छे से समझा बुझा कर भेजने का मन बना लिया। इसी क्रम में प्रिंसिपल मेडम टीचर और बच्चों के साथ दिल्ली, आगरा, लखनऊ, माउंट आबू वगैरह शहरों के लिए रवाना हुए। सबसे पहले दिल्ली पहुंच कर स्टेशन पर कुछ देर रुक फिर आगे बढ़ना था। सारे बच्चों को लाइन लगा कर चलने का निर्देश दिया गया। हर दस बच्चे के साथ एक टीचर थी जो उनको नाश्ता करने के लिए ले जा रही थीं। मैडम सबको बता कर वहां पर रुकने के लिए रिटायरिंग रूम देखने चली गईं क्योंकि आगे की ट्रेन सुबह थी। अचानक मैडम की नज़र राजू की ओर पड़ी तो वो एकदम चौंक गयीं। राजू रेलवे के एक ऑफिस में खड़ा था जहां खोए हुए लोगों का एनाउंसमेंट किया जाता है। मैडम तुरंत राजू के पास पहुंची और डांटने लगी कि तुम बच्चों के साथ लाइन में जाने के बजाय यहां क्या कर रहे हो? राजू ने बड़ी मासूमियत से मगर आत्मविश्वास के साथ जवाब दिया --मैम मैं लाइन में ही जा रहा था कि मैंने इधर -उधर देखा तो आसपास कोई नहीं दिखाई दिया तब मैं यहां आ गया। ये सारा कन्वर्सेशन इंग्लिश में हो रहा था। मैडम यह सब सुन कर उसे अपने साथ ले आयीं और टीचरों को डांट पड़ी कि आपको बच्चों को संभालने की जिम्मेदारी थी और आप सभी इतनी लापरवाही कैसे कर सकती हैं, यदि ये गुम हो जाता तो? इस घटना के दूसरे दिन सुबह अगली यात्रा के लिए सब रवाना हो गए। सारे रास्ते राजू पर नज़र रखने की हिदायत दी गई। बाकी पूरा सफर बड़े मजे से कट गया। सबने खूब एन्जॉय किया। वापसी पर लोग अपने घर पहुंचे। राजू सबके लिए कुछ न कुछ छोटे -मोटे उपहार लाया था। स्कूल खुलने पर मैडम ने नानाजी को बुलवाया और पूरा किस्सा सुनाया तो नानाजी डर गये। उन्होंने बताया कि इस मामले में वो भी परेशान हो गयी थी पर राजू की समझदारी की और सेंस ऑफ ह्यूमर की तारीफ करने लगी। कोई और बच्चा होता तो घबरा कर रोने लगता। राजू ने होशियारी से बिना डरे परिस्थिति को हैंडल किया वो बहुत अच्छी बात है। घर आकर जब नानाजी ने नानीजी को यह बात बताई तो वो भी पल भर के लिए घबरा गई। बाद में उन लोगों ने खूब समझाया कि जब भी ग्रुप में जाओ तो ध्यान से सबके साथ रहो। राजू ने सुन कर हामी भरी और खेल ने चला गया। बहुत दिनों तक मैडम की बातों में इस घटना का जिक्र होता रहा। अगली बार फिर टूर में राजू खूब अच्छी तरह से घूम कर आया और जब तक इस स्कूल में रहा तब तक वो टूर पर जाता रहा।
