STORYMIRROR

डॉअमृता शुक्ला

Tragedy

3  

डॉअमृता शुक्ला

Tragedy

हस्ताक्षर (लघुकथा)

हस्ताक्षर (लघुकथा)

2 mins
142


रमा तैयार होकर बैंक के लिए निकलने वाली ही थी ,इस दौरान भाई साहब के दो फोन आ गए। लगता है वो धैर्य नहीं रख पा रहे थे। आटो में बैठ शीघ्रता से पहुँच कर देखा कि भाईसाहब टहल रहे हैं। देखते ही तुरंत कहने लगे -"अरे! कितनी देर से राह देख रहें हैं ?"

क्या करें? भैया ट्रैफिक के मारे लेट हो गए "

चलो ठीक है ,चाबी लाई हो?

"हाँ " कहने के साथ ही बैंक के कागज पर दोनों ने हस्ताक्षर कर मैनेजर को दे दिए। तभी भैया ने उठकर रमा को गले लगा लिया और बोले-"अब मन में कोई दुराव मत रखना । भाभी ने पीछे से कहा-"हाँ दी सौरभ की शादी में जरूर बुलाना"

रमा का इस तरह की बातों से मन भर आया। अभी कल तक तो उनके बोलने का अंदाज दूसरा था और अब दूसरा। अनिल के जाने के बाद मम्मी -पापा के साथ रह रही रमा पर उस समय पहाड़ टूट पड़ा ,जब कुछ दिन के अंदर मम्मी -पापा भी चले गए। इकलौते भाई अब उसे पैतृक घर से निकालने की कोशिश में लग गए। किराए के घर में जाने, उसका किराया देने का प्रस्ताव रखा और बदले में घर की चाबी देने की बात। उन्होंने साथ रहने भी कहा था पर रमा राजी नहीं हुई कि जो मां बाप के नहीं हुए, उनसे क्या उम्मीद। आँखें पोंछती बैंक से निकलकर आटो में बैठ गयी।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy