सही फैसला

सही फैसला

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अरे! देखो तो शोभा और बिनी आ गए हैं बाबूजी ने खुश होते हुए मम्मी और रोहित से कहा। बिनी सात साल की थी उसे एक गायन प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार के रूप में श्रेष्ठ कला एवार्ड मिला था। कार्यक्रम में नगर के महापौर मुख्य अतिथि थे। वे गाने से बहुत प्रभावित हुए और दूसरे दिन शहीद चौक पर होने वाले आज़ादी की पचासवीं वर्षगांठ के अवसर पर गाने के लिए आमंत्रित किया। जब बिनी सबके साथ वहाँ पहुँची तो उसे हजारों की भीड़ नज़र आयी।स्टेज पर उसने बिना डर झिझक के ऐ मेरे वतन के गाना शुरू किया तो सभी मंत्रमुग्ध हो कर तालियां बजाने लगे। एक मंत्री जी ने उसे गोद में उठा लिया।काफी ईनाम के साथ घर पहुँचने पर सबने बिनी को खूब प्यार किया और आशीष दिए। बिनी की इस उपलब्धि की चर्चा सभी अखबारों और लोकल टीवी चैनलों में हो रही थी मम्मी-बाबूजी खुशी से फूले नहीं समा रहे थे। उन्होंने ईश्वर को धन्यवाद दिया और शोभा की बड़ी प्रशंसा की। यह सब देख शोभा की आँखें भर आयीं। उसने धीरे से आँसू पोंछ लिए। इस खुशी के अवसर पर ऐसा करना ठीक भी नहीं था। लेकिन न चाहते हुए भी वो पिछले दिनों की यादों में चली गयी जहाँ उसका सामना जीवन के दूसरे पहलू से हुआ था। उसकी तकलीफ़ उभरने लगी जो उसे दो बेटियों के जन्म के समय मिली थीं।


शादी के दूसरे साल माँ बनने की खुशख़बरी का पता चलते सब बेटे, पोते को लेकर सपने बुनने लगे। इसलिए जांच कर निश्चित होना चाहते थे। लड़की की बात सुनकर एबार्शन के लिए जब डॉ से चर्चा की तो उन्होंने पहले बच्चे के समय ऐसा करने से मना कर दिया क्योंकि उससे आगे तकलीफ़ हो सकती थी।सही समय पर बेटी हुई लेकिन थोड़ी कमजोर थी। सबके चेहरे बुझे से थे क्यों कि उनकी इच्छा पूरी जो नहीं हुई थी। घर आने के बाद भी कहीं खुशी का माहौल नहीं नज़र आ रहा था। उचित देखभाल न होने के कारण शोभा भी एनिमिक हो गयी बच्ची तो कमजोर थी ही। डॉ के कहने दूध फल दवाईयां तो शुरु हो गयी पर असर नहीं हो रहा था। अच्छी सेहत के साथ साथ वातावरण भी तो स्वस्थ होना चाहिए जो नहीं था। रोहित का रवैया इन सालों में बिलकुल नहीं बदला था। ऑफ़िस से शाम को घर आकर थोड़ी देर बाद दोस्तों के साथ चल देते, आने में एक दो तो बजते ही थे। शोभा कितना समझाती कि अब आप पिता बन गए हैं अपना व्यवहार बदल लीजिए मगर रोहित पर कोई फर्क नहीं पड़ता। मम्मी बाबूजी उनको समझाने की बजाय शोभा को ही गलत ठहराते कि तुम ही झगड़ती हो इसलिए वो घर समय पर नहीं आता। एक दिन तो हद ही हो गयी। रोज की तरह शोभा रोहित की राह देख रही थी। हालांकि बेटी को संभलाते थकी रहती थी। नींद आने लगती मगर पति घर नहीं आएं हो तो चाह कर भी नहीं सोया जाता। काफी समय गुज़र गया तो वो नीचे आयी। तो देखो ये तो बाबूजी के कमरे में सो रहे थे। मन गुस्से से भर गया। मैं यहाँ परेशान हो रही हूं और ये जनाब मजे से सोए हैं। इसी बीच बाबूजी जाग गए और शोभा से कहने लगे "बहू मुन्ना एक घंटे पहले आ गया था। मैंने ही कहा यहीं सो जाओ ऊपर शोभा लड़ती है न! "यह सुनकर शोभा बिना कुछ कहे सुने अपने कमरे में आ गयी और खूब देर रोती रही। क्या करे समझ नहीं आ रहा था। कुछ समय बाद कॉलेज में शोभा ने ‌नौकरी करने की इच्छा सबके सामने जा़हिर की। जिससे उसका मन लगा रहे। उस समय तो आसानी से कॉलेज में नौकरी मिल जाती थी और पिताजी की भी काफी पहचान थी। मगर यह बात सुनते ही बाबूजी गुस्सा हो कर कहने लगे "हमारे घर में बहुएं नौकरी नहीं करती फिर जरूरत भी क्या है। अभी तो वैसे ही तेज स्वभाव है नौकरी करने लगेगी तो पता नहीं क्या होगा। रोहित पर और कब्जा जमाने लगेगी।" शोभा पढ़े लिखे परिवार की ऐसी सोच पर हैरान थी। उसकी नंनद कॉलेज में ही पढ़ाती हैं। दो तरह के व्यवहार उसके सामने थे। रोहित से थोड़ी उम्मीद थी कि वो शोभा के लिए कुछ कहेंगे पर कुछ नहीं हुआ। शोभा ने ट्यूशन घर पर लेना शुरू किया पर वहाँ भी समस्याओं का सामना करना पड़ा। कभी मम्मी को काम में हाथ न बंटाने से नाराजी थी वही बाबूजी और रोहित उन पर ध्यान न देने के कारण चिढ़े रहते। आखिरकार थोड़े ही दिनो में ट्यूशन बंद करना पड़ा। 

गुड़िया दो साल की हो गयी थी। इन सब तनावों का परिणाम शोभा के ब्लड प्रेशर और शरीर की सूजन के रूप में दिखाई देने लगा। रोहित ने फैमिली लेडी डॉ को क्लिनिक में दिखाया। डॉ ने कुछ टेस्ट करवाने कहा। रिपोर्ट में थाईराइड होने के साथ दोबारा माँ बनने की बात भी पता चली। बच्चे पर थाईराइड का असर समझने डॉ ने सोनोग्राफी करवाने की सलाह दी। रिपोर्ट तो सही आई और लड़की है ये भी पता चला। घर का माहौल और बिगड़ गया था। वे सब एबार्शन करवाना चाहते थे, और लगातार दबाव भी बना रहे थे किंतु शोभा ने इस बार इनकार कर परिस्थिति का सामना किया। शोभा निश्चय पे अडिग रही। आखिर सही समय पर बेटी ने जन्म लिया। मम्मी -बाबूजी ज़रा देर को अस्पताल आए, रोहित कुछ देर ठहरते, बाकी समय काम वाली बाई ही वहां रहती । घर आने पर भी सबका वैसा व्यवहार था। शोभा का दिल बैठने लगा। वह भविष्य को ले कर सशंकित रहने लगी। साथ ही ईश्वर से प्रार्थना भी करती रहती कि सब ठीक हो। सब बातें भूलकर बच्चियों की परवरिश में जुटी रही। गुड़िया के साथ बिनी भी स्कूल जाने लगी। बिनी स्कूल से सीखे श्लोक और कविताएं बड़े सुंदर ढंग से सुनाती ।

उसके उच्चारण भी स्पष्ट थे। इसलिये शोभा ने बिनी को संगीत की विधिवत शिक्षा दिलाने का निश्चय किया। वो नृत्य भी कर लेती थी। सबसे बड़ी बात वो घबराती नहीं थी। शोभा बिनी को शहर में होने वाली संगीत प्रतियोगिताओं में ले जाने लगी जहाँ वह प्रथम पुरस्कार पाती। इन सब बातों को ले कर सब नाराज़गी दिखाते रहते। लेकिन शोभा उनके विचारों को बदलना चाहती थी कि केवल बेटा ही सम्मान नहीं दिलाता बेटियां भी सर ऊंचा करती हैं। खर्चे पर कोई बात न हो वो फिर से घर पर ट्यूशन पढ़ाने लगी। शोभा की मेहनत रंग लायी जिसके परिणाम स्वरूप बिनी को श्रेष्ठ कला एवार्ड मिला।

मम्मी बाबूजी शोभा और बिनी को आशीष दे कर बाबूजी कहने लगे कि हम और हमारी सोच गलत थी। केवल बेटा ही नहीं बेटियां भी सम्मान दिलाती हैं।" तभी रोहित आवाज़ देने लगे चलो शाम की पार्टी की तैयारी नहीं करनी है। एक खुशनुमा वातावरण बन गया था। बाबूजी ने बिनी के सिर पर हाथ रखते हुए कहा,

ईश्वर के दोनो वरदान

बेटा बेटी एक समान...

                      


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