अमृता शुक्ला

Children Stories

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अमृता शुक्ला

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बड़ों का कहना मानो(बाल-कहानी)

बड़ों का कहना मानो(बाल-कहानी)

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महाराष्ट्र से लगे इस छोटे शहर में रीति रिवाज, त्योहार ,बोल-चाल में मराठी संस्कृति का बड़ा प्रभाव दिखता था। पुराने बड़े से घर की कुछ दूरी पर में मुन्ना के दादाजी के चार-पांच खेत थे जिनमें अधिया से चावल उगाया जाता था। जब पोला त्योहार आता तो बैल को सजा कर घर में लाते और दादी उसकी पूजा करतीं। इसी तरह जन्माष्टमी पर्व पर सब लोग अपने घरों में मिट्टी के कृष्ण भगवान रखते और दूसरे दिन शाम को सामने के तालाब में सिराने जाते थे। उस दिन घर  के सामने मंदिर और तालाब के आसपास बड़ा मैदान में मेला लग जाता । फुग्गे ,खिलौने बेचने वाले आते। घर के दरवाजे से सब बैठकर इसका आनंद लेते। मुन्ना ये नाम तो घर का था उसका नाम आकाश रखा गया था। इस बड़े से पुराने घर के पीछे तरह एक बड़ा कुआँ भी था। जिसमें खेलते-खेलते बच्चों की गेंद कितनी बार जा चुकी थी। दादा जी को पंसद नहीं था कि घर के भीतर  बच्चे खेलें। इस मामले वे थोड़े रूखे हो जाते थे।

घर के सामने मैदान में बहुत बड़ा पुराना पीपल का पेड़ था, जो स्वयं दादा जी ने लगाया था ,ऐसा दादा जी बताते थे। पेड़ के पीछे बड़ा सा तालाब और पास में एक हनुमानजी का मंदिर था, जहाँ मुन्ना अक्सर पापा के साथ  जाता  रहता था।

मुन्ना का मन  शैतानी में बहुत लगता था। कब घर से बाहर निकल जाता, पता ही नहीं चलता था।। इस काम में घर का पुराना दरवाजा बड़ी मदद करता, जिसमें सांकल अंदर बाहर दोनों तरफ से खुल जाती। बहू होने  के कारण रानी भी बाहर जाकर बार  बार देख भी नहीं पाती थी। खेलने में मगन मुन्ना को न समय का ख्याल रहता न अपनी चीजों का। हर दूसरे दिन अपनी चप्पलें गुमा आता। दादा -दादी इसकी शैतानी पर कहते "-बिल्कुल अपने पिता पर गया है फिर कहते शंकर भी बचपन में ऐसी ही शैतानी करता था। हमें उसनें खूब हैरान किया अब यह सब शंकर झेले। " यह सब देख रानी को चिंता लग जाती कि कहीं मुन्ना बिगड़ न जाए और जब यही बात शंकर से वह  कहती तो वो हंस कर टालते हुए कहते-अरे फिक्र मत करो। हम भी यहीं पढ़कर  बड़े हुए हैं और अच्छे खासे वकील हैं। " मुन्ना का मन पढ़ने लिखने में लगे इसलिये पापा ने मुन्ना को पास के इकलौते स्कूल में नर्सरी में भर्ती  कराया गया था । मां ने थोड़ी राहत की सांस ली। आखिर उसे ही तो देखना पड़ता था। मुन्ना  रिक्शे में स्कूल जाने लगा। वो होशियार था ही जल्दी ही सीख लेता था। । अपनी प्यारी बातों से अपने शिक्षकों का भी प्यारा हो गया था। लेकिन मुन्ना वहाँ भी शैतानी करने से बाज नहीं आता। फिल्मी गाना गाता-"हमदम मेरे जान बचा-खुचा भोली मीठी आवाज़ से गाए गीत को सब पसंद करते और उसके ग्रास्पिंग पावर की प्रशंसा करते। स्कूल के एनवल डे पर भी उसका डांस देखने सब घर के लोग पहुँचे थे। जब फोटो खिंच ही रही थी तो पर्दा बंद हो गया तब मुन्ना परदे से बाहर आकर पोज देने लगा ,यह देख सब मुस्कुराने लगे।

उस बार भी जन्माष्टमी पर मेला लगा। मुन्ना ने पापा से खिलौना खरीदने कहा तो उन्होंने खरीद कर दे दिया और हिदायत दी कि दादा-दादी और मां के पास रहना, अकेले बाहर मत जाना, बड़ी भीड़ है। ऐसा कहकर वे काम से चले गए। अब मुन्ना सीधे बैठने वाले बच्चों में से तो था नहीं। तो आँख बचाकर बाहर चला गया। कुछ समय बाद मां ने देखा कि मुन्ना तो घर में नहीं तो उसने दादा-दादी को बताया । सब घबरा गए। वे लोग दरवाजे पर खड़े होकर सबसे पूछने लगे । तभी कुछ देर में तीन-चार बच्चे मुन्ना को ले गए, जो ऊपर से नीचे तक भीगा हुआ था। यह देखकर ये लोग डर गए और पूरी बात जाननी चाही। तब पता चला कि मुन्ना तालाब में गिर गया था ,वो तो अच्छा हुआ कि नाई के लड़के ने देख लिया और इसे बचाया। मुन्ना को घर लेकर आए तो मां इतना घबरा गई और कमरे में ले जाकर अच्छे से पोंछा ,कपड़े बदले। तभी पापा को भी खबर मिल गई और वे भी घबराते घर आ गए थे। पापा को मुन्ना की इस हरकत पर गुस्सा तो बहुत आ रहा था ,लेकिन उसके भोले मुख को देख कर दया और प्यार के मिलेजुले भाव आ रहे थे। इसलिए खाना खिला हल्दी वाले दूध पिलाने कहकर पापा कमरे से बाहर आकर सोचने लगे कि कल मुन्ना को अच्छी तरह समझाएंगे। आज ईश्वर की कृपा से सब ठीक था ,पर इसकी शैतानी आगे इसे मुसीबत में न डाल दे। दूसरे दिन रविवार होने से मुन्ना देर से सोकर उठा। नाश्ते के बाद पापा ने पास बुलाया। । मुन्ना डरते हुए पास आया। पापा ने गोद में बैठाकर प्यार किया फिर कहा कि-"क्यों मुन्ना तुम्हें  खिलौने खरीद कर मैंने कहा था न कि घर में सबके साथ रहना ,अकेले बाहर मत जाना। लेकिन तुमने कहना नहीं माना और कितनी बड़ी घटना हो गई। अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो? सब लोग तुम्हारी बात मानते हैं तो तुमको बड़ों की बात सुननी चाहिए । नहीं तो तुम्हें हॉस्टल में भेज देंगे। "हास्टल की बात सुनकर मुन्ना रोने लगा और बोलने लगा कि "नहीं पापा मुझे हॉस्टल नहीं जाना है ,आप सबके पास रहना है । अब ऐसा नहीं करूंगा प्रामिस।" "पक्की प्रामिस?" पापा ने पूछा। मुन्ना के हां कहते ही पापा ने कहा-"चलो सबसे सॉरी बोलो और सबके पैर छुओ। बड़ों का आशीर्वाद से ही तुम खूब बड़े बनोगे। "मुन्ना ने सॉरी कही ,पैर छुए। पापा ने मुन्ना की उंगली थामी और घुमाने ले गए।



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