पराई बेटी
पराई बेटी
अरे बहू एक बार देख ले पूजा की सब सामग्री ठीक ठीक है न। अरे हाँ छोटी चाची से आसनी ले ले। उसी आसनी पर बैठ कर तेरे ससुरजी पूजा करते हैं।
"हाँ अम्माजी मैंने आसनी भी रख दी है और सब कुछ इकट्ठा कर लिया है। अब केवल प्रसाद रखना बाकी है।"
अरे तो अब तक रखा क्यों नहीं ?
"अम्माजी बाकी सब कुछ रख दी हूँ वो चूरन भूंज रही थी। वो भी हो गया।"
अरे वो फल मत कटियो। फल नइ काटी जाती।
"फल नहीं काटी हूँ।"
अरे बहू तूने तो बड़ी सुंदर चौका पूरी है। यहाँ बिल्कुल ऐसा ही बनता है। तेरे मायका में भी ऐसा ही बनता है क्या ?
"नहीं अम्माजी मेरे यहाँ बिल्कुल अलग तरह का बनता है। ये तो मैंने यहीं सीखा। "
अरे बहू पूजा में सब कुछ रखा और घी छोड़ दी।
"नहीं अम्माजी घी भी वहीं है। आकर देती हूँ।"
हवन के लिए धूप ..?
"मैं आई अम्माजी सब कुछ वहाँ रख दिया है।"
हाँ हाँ देख लिया। जा अब जल्दी से खाना बना। पूजा के बाद सभी तुरत खाना मांगेंगे और झट पट तैयार हो जा।
बहू ने जल्दी जल्दी खाना बनाया। सबके पसंद के अलग अलग व्यंजन। टेबल लगा कर झट पट अपना बाल संवारने लगी। तैयार होकर वो पुनः बाहर आ ही रही थी कि चाचीजी और अम्माजी की वार्ता कानों से टकराई और उसके पांव ठिठक गए - ' अरे कुछ भी कर लो ये बहुएँ कुछ न कुछ गड़बड़ करेंगी हीं। धनिया और जीरा का चूरन बनाया ही नहीं। आधा खाना बनाई और चली गई संवरने। ये पूजा के समय उसे बनने संवरने की सूझ रही है। मैं एक पैर पर घिसटती सब देख रहीं हूँ। कुछ भी कहो ये हमारी लाली की बराबरी कर ही नहीं सकती। पराए घर की है न पराई ही रहेगी।'
आँखों में आँसू आ गए और वो सोचने लगी वो बहू है, पराए घर से आई है अतः पराई है तो क्या कभी अम्माजी भी।