पलाश एक प्रतीक्षा

पलाश एक प्रतीक्षा

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"अरे सुना तुमने इस बार भी राजीव होली पर नहीं आएगा। पूरे तीन साल हो जाएंगे इस बार उसे घर की होली छोड़े हुए। कहता है ऑफिस में होली की छुट्टी नहीं होती, भई वाह, मल्टीनेशनल कंपनियों का भी खेल निराला है अपने त्यौहार क्रिसमस पर सात दिन की छुट्टी और जिन लोगों से काम कराते हैं उनके त्यौहारों पर ये हाल", निर्मल जी अपनी स्वर्गवासी पत्नी की तस्वीर से बातें कर रहे थे।


तभी खाना बनाने कुसुम आ गयी और गुझियां बनवाने के लिए मैदा निकालने को निर्मल जी से पूछ रही थी।


" अरी कुसुम मैं मैदा नहीं लाया बेटी... इस बार भी राजीव नहीं आएगा। ऐसा करना ये पैसे रख कल तू इनसे मैदा और खोया ले आना और यहीं अपने घर के लिये बना लेना, हमारा भी शगुन हो ही जायेगा। ठाकुर जी को भी घर की गुझियाँ खाने मिल जाएंगी"


" ठीक है बाबूजी", कह कर कुसुम खुशी खुशी चली गयी।


शाम की चाय बना कर टेबल पर थोड़ी ठंडी होने को निर्मल जी ने रख दी और बाल्टी भरने नल खोल दिया। आँगन में लगे टेसू के वृक्ष को बड़े प्यार से सहलाते हुए उनकी आँखों से आंसू छलक पड़े। 


पानी डालते डालते कह रहे हैं


" ऐ मेरे प्यारे टेसू...मैंने और निराली ने राजीव के जन्म पर ही तुझे रोपा था...ये सोच कर की तुझे और उसे दोनों को साथ बढ़ते हुए देखेंगे। और देख आज तू भी राजीव के बराबर हो गया है, फूलों से लदा हुआ होली का इंतज़ार कर रहा है। बस फर्क इतना है कि तूने भी मुझे अकेला और बूढ़ा होते देखा है। राजीव तो चला गया पर तू हर पल मेरे साथ रहा। उदास है ना तू भी, राजीव के ना आने पर...हैना।"


चाय की याद आयी तो नमकीन निकाला और चाय की चुस्कियाँ ले ही रहे थे कि अचानक घण्टी बजी...


दरवाज़ा खोला तो राजीव को अपने सामने खड़े देख निर्मल जी के हर्ष का पारावार ना रहा, उसको अपनी बाहों में भर घर में ले आये। 


" पापा मैं आपको बहुत मिस कर रहा था। कल सपने में यही टेसू का पेड़ आया और साथ में माँ खड़ी कह रही थीं कि पापा के पास चले जाओ, वो बहुत अकेले हैं, तुम्हें बहुत याद कर रहे हैं। और मैं अगले ही दिन चल पड़ा पापा, मुझे माफ़ कर दीजिए", राजीव ने आखों की कोरें पोछते हुए कहा।


" माफी मत मांग बेटा... देख तेरे आने से ये टेसू फिर से कैसे खुश हो लहलहा रहा है", निर्मल जी ने राजीव को फिर गले लगा लिया।




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