Kanchan Pandey

Inspirational

4.7  

Kanchan Pandey

Inspirational

|| पिता ||

|| पिता ||

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आज भी पिता जी {रामेश्वर प्रसाद} को आने में देर हो गई न जाने कौन- सी परेशानी ने उन्हें झुलसा दिया था पसीने से तर–बतर जैसे मेहनत ने सारा खून चूसकर पसीना बना दिया हो कुछ बुदबुदाते हुए कमरे में गए फिर स्नानघर | जैसे कह रहे हों की इस गर्मी ने तो हालत पस्त कर दिया है जैसे हीं कुर्सी पर बैठे की बच्चों की फरमाईश शुरू हो गई लेकिन वह सभी को हाँ भरते जा रहे थे जिससे उनका थका मन शांति पा सके लेकिन क्रोध की छाया भी नही थी | चेहरा रोज की तरह खिला हुआ माँ{शांति} उधर से आई और बोली अभी तो आए हैं चैन की साँस तो लेने दो | पिताजी बोले शांति आज का दिन कैसा था बाजार का काम कर आई |शांति ने कहा नही जा सकी देखिए कुछ नही आया अब तो रात में खाना भी नही बन पाएगा | ओह!! रामेश्वर प्रसाद जोर से साँस फेरते हुए लाओ थैला दो और वह थैला लेकर निकला पीछे से आवाज आई जल्दी आ जाना लेकिन बाजार पहुंच कर देखा तो वह अपना बटुआ तो घर में हीं भूल गए थे उसी पेंट में जो दफ्तर से आने के बाद खोली थी वह तो सामान लाना था बच्चे भूखे रह जाएँगे सोच कर घर के कपड़े पहनकर निकल गया शांति भी तो दिन भर परेशान रहती है बेचारी, वह मन हीं मन सोच रहे थे जो बुदबुदाने के रूप में बाहर हवा से टकरा कर फिर कहीं गुम हो रही थी तुरंत घर पर देखकर शांति ने कहा ले आए रामेश्वर प्रसाद ने कहा नही बटुवा भूल गया था शांति बोली तुम्हें कुछ भी याद नही रहता है बिना उत्तर दिए फिर वह बाजार की तरफ निकल गए जैसे- तैसे रात निपट गई लेकिन सुबह का समय जब सभी अपने स्कूल दफ्तर के लिए निकलने वाले थे तभी रामेश्वर को याद आया कि रात में ही उसकी दम तोड़ती चप्पल ने साथ छोड़ दिया था बिना किसी को कुछ कहे एक पतली सी डोरी से उसे चलने योग्य बनाया और जमीन पर घसीटते हुए निकलने लगे तभी उनके बड़े लड़के{श्याम} की नजर उस पर पड़ी वह बोल पड़ा क्या माँ मेरे दोस्त देखेंगे तो क्या कहेंगे शांति ने कहा देखो जी आज बच्चों के सामान के साथ आप अपना भी चप्पल खरीद लेना उन्होंने हाँ में सिर हिलाते हुए सोचते हुए दफ्तर के लिए निकले और सोचने लगे अभी तो वेतन मिलने में पांच दिन बांकी है न जाने बच्चों के कितने सामान आ पाएंगे फिर चप्पल, कि अचानक उनकी स्कूटर की घिसी हुई टायर ने भी साथ छोड़ दिया अब तीसरा समस्या को सामने देख उनका साहसी मन बोला पांच दिन अगर मै पैदल हीं दफ्तर आ जाऊँगा तो मर नही जाऊँगा |स्कूटर घसीटते हुए ले जाकर आफिस के एक कोने में लगा दिए |फिर शाम में अपनी टूटी चप्पल के साथ बच्चों की किताबें लिए घर पहुंचे किताब देखकर बच्चों की ख़ुशी ने उनकी सारी दिन की परेशानी को दूर कर दिया |कुछ समय बाद श्याम को बैंक में कलर्क की नौकरी लगी घर में खुशी का माहौल था लेकिन श्याम इस नौकरी से खुश नही था उधर रामेश्वर को तो लग रहा था आज उनकी तप का फल मिल गया वह खुशी से झूम रहे थे | दफ्तर से लेकर गली तक ,गली से लेकर घर तक मिठाई बाँटी श्याम को यह अब काँटे की तरह चुभ रहा था उसने जोर से चिल्ला कर कहा बंद कीजिए अगर आपने अच्छे स्कूल में पढ़ाया होता तो आज मै आपके जैसा कलर्क नही आफिसर रहता इस वाक्य को सुनते हीं पहली बार रामेश्वर की आँखे डबडबा गई जो प्रत्येक विषम परिस्थिती में लड़ता हुआ सिपाही था वह आज हार कर वहीं कुर्सी पर बैठ गया और बहते हुए आंसू जैसे उनके जीवन भर किए गए काम के थकान को धो रहे हों जिस तरह रोज दफ्तर से आने के बाद वे स्नान करके थकान मिटाते थे उनके आँखों की आंसू को देखकर शांति के आँख भी भर आई , लेकिन परिवार पर दुख की छाया आते देखकर रामेश्वर प्रसाद फिर खड़े हो गए और शांति से थैला माँग कर बाजार की ओर अपनी टूटी चप्पल के साथ एक टूटा पिता वीर योद्धा की तरह निकल पड़े |


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