फटे मुँहवाली
फटे मुँहवाली
हंसाबेन की कंजूसी का कोई जवाब नहीं था। देने में सबसे पीछे और लेने में आगे। जैसे ही बेटे अखिलेश की शादी हुई और बहू आशा घर में आई। दूसरे ही दिन सबसे पहले दरवाजे के बाहर से ही उसने घर की नौकरानी की छुट्टी कर दी। जब नौकरानी ने पूछा तो उसने कहा " अब उसकी जरुरत नहीं, बहू है न, सारे काम वो कर लेगी।" उसने उसका हिसाब भी चुक्ता कर दिया। वो चली गई।
आशा इस ग़लतफहमी में थी कि नौकरानी आकर सारे काम कर लेगी। उसके कमरे से बाहर आते ही उसकी सास ने उसे ये खबर दी कि आज से नौकरानी नहीं आयेगी। उसके पैरों तले की ज़मीन खिसक गई। वो अपने मायके में भी वही सब घर के काम करके उब चुकी थी। पहले दिन नौकरानी को घर में काम करते देख वो बहुत खुश हो गई थी कि कम से कम यहां तो थोड़ा आराम मिलेगा। पर, ऐसे उसके नसीब कहां ? यहाँ भी वही !
अपनी किस्मतसे समझौता करके वो नौकरानी के सारे काम करने लगी। कुछ ही दिनों में वो बहू कम और नौकरानी ज्यादा लगने लगी। जैसे जैसे दिन बीतने लगे सास की असलियत उसे पता चल ही गया चाहे बेटे के सामने जितनी अच्छे होने का नाटक करती वैसे वो नहीं थी। बेटा तो मातृ भक्ती में अंधा था। हमेशा उसका झुकाव माँ की तरफ ही कुछ ज्यादा था। माँ की हां में हां मिलाना ही उसे आता था। उसको कुछ भी नजर नहीं आता। चाहे उसकी बीवी सारा दिन काम करके थक जाये, चाहे वो बीमार भी हो उसे नजर नहीं आता। नई शादी हुई थी पर बीवी से ज्यादा उसके लिए माँ की खुशी ज्यादा मायने रखती थी।
एक दिन सुबह उठकर वो कीचन में जा रही थी कि उसे चक्कर आकर गिर पड़ी पर उसके पति को पता ही न चला। जब उसकी माँ ने आकर शोर मचाया तब उसकी नींद टूटी और वो उठ गया और बीवी को फटकार लगाई। वो उठकर जाने ही लगी थी कि उसे उल्टी का आभास हुआ और वो बाथरुम की तरफ दौड़ी।
जब बार–बार ऐसा होने लगा तो उससे घर के काम नहीं हो पा रहे थे। वो उसे दवाखाने ले गया। डॉक्टर साहब ने बताया कि "खुश खबरी" है। दवा लिख कर दी, बहू को अच्छी खुराक देने और उसे हर तरह से खुश रखने को भी कहा। उसने दवा खरीदी। पर घर आने पर माँ ने वो डाँट लगाई कि सबकुछ भूल गया। खुशी न जाने कहां ग़ायब हो गई। माँ को अब यह डर सताने लगा कि बहू पर कितना खर्च होगा। तबसे बेटे की तनख्वाह की बागडोर माँ ने अपने हाथ में ले ली। घर की सारी जरुरतों पर उसका नियंत्रण था। बहू की जरुरतों को नज़रअंदाज़ कर देती। न उसे अच्छा खिलाती –न पिलाती। न फल और दूध देती। हर रोज बासी खाने पर ही उसे गुजारा करना पड़ता था। बहू के लिए खर्च करना उसको फ़िजूल खर्ची लगती थी।
बहू बेचारी न मनपसंद कुछ खा सकती न पी सकती। पति को कहे, तो वो भी नज़रअंदाज़ कर देता। सास से कुछ कह भी नहीं सकती क्योंकि कहने से पहले ही लड़ने झगड़ने लग जाती। इससे बचने के लिए वो खामोश ही रह जाती। ऐसे मन मारकर जी रही थी। दिन महीनों मे बदल गए नौ महीने बाद एक रात उसे प्रसव पीड़ा होने लगी। सास और उसका पति उसे ले कर अस्पताल ले आये। उसे प्रसव कक्ष में ले गये।
उसे लड़की हुई और डॉक्टर टेंशन में थे कि ऐसी बच्ची का इलाज कैसे करे जिसका नीचला होठ कटा था जिसके कारण वो बच्ची दूध भी नहीं पी सकती थी। तुरंत विशेषज्ञों की आकस्मिक मीटींग बुलाकर, समस्या की चर्चा की और बच्ची बहुत छोटी होने के कारण ऑपरेशन न कर पाने मजबूरी थी। पर आशा के घरवालों को बताना ज़रुरी था। डॉक्टर ने अखिलेश को सारी बात बता दी। बच्ची की हालत देखकर उसे बहुत दुख हुआ। जब उसकी माँ को पता चला तो वो हाय-तौबा मचाने लगी। उसे इस बात का भी होश नहीं था कि वह कहां है ? नर्स ने आकर जब डाँट लगाई तब चुप हो गई और बेटे को लेकर घर गई।
यहाँ पड़ोस के सब लोग बड़ी उत्सुकता से अपने घर पर उनका इंतजार कर रहे थे। उनको देखते ही बाहर आकर बधाई देने आये। अखिलेश दरवाज़ा खोलकर अंदर चला गया। बहू भी बच्ची के साथ अंदर गई। पड़ोसियों ने हंसाबेन को घेर लिया और पूछताछ करने लगे। हंसाबेन बोल पड़ी " फटे मुँहवाली बच्ची पैदा की है मेरी कलमुँही बहू ने " कहकर अंदर गई और जोर से दरवाज़ा बंद कर लिया।
