Shelley Khatri

Drama

4.0  

Shelley Khatri

Drama

फर्ज

फर्ज

8 mins
422


" तुम कब तक यूँ अकेली रहोगी ?" लोग उससे जब तब यह सवाल कर लेते हैं और वह मुस्कुरा कर कह देती है" आप सबके साथ मैं अकेली कैसे हो सकती हूं।"

उसकी शांत आंखों के पीछे हलचल होनी बन्द हो चुकी है। बहुत बोलने वाली वह लड़की अब सबके बीच चुप रह कर सबको सुनती है जैसे किसी अहम जबाब का इंतजार हो उसे।जानकी ने दुनिया देखी थी उसकी अनुभवी आंखें समझ रहीं थीं कि कुछ तो हुआ है जिसने इस चंचल गुड़िया को संजीदा कर दिया है लेकिन क्या ?

" संदली! क्या मैं तुम्हारे पास बैठ सकती हूं ?" प्यार भरे स्वर में उन्होंने पूछा।

" जरूर आंटी यह भी कोई पूछने की बात है।" मुस्कुराती हुई संदली ने खिसक कर बैंच पर उनके बैठने के लिए जगह बना दी।

" कैसी हो ?क्या चल रहा है आजकल ? " जानकी ने बात शुरू करते हुए पूछा।

" बस आंटी वही रूटीन कॉलिज- पढ़ाई...." संदली ने जबाब दिया।" आप सुनाइये।"" बस बेटा सब बढ़िया है। आजकल कुछ न कुछ नया सीखने की कोशिश कर रही हूं।" चश्मे को नाक पर सही करते हुए जानकी ने कहा।

" अरे वाह! क्या सीख रही है इन दिनों ?" संदली ने कृत्रिम उत्साह दिखाते हुए कहा जिसे जानकी समझ कर भी अनदेखा कर गई।

“आंटी अब आप बता भी दीजिए। आखिर क्या नया सीख रही हैं। शायद मैं भी कुछ प्रेरणा पा सकूं।” उसने मनुहार किया। संदली को पता था अगर उसने बात का रूख नहीं मोड़ा तो वह उसी जगह आ जाएगी जहां वह जाना नहीं चाहती।

“बेटा नया जमाना है न! यहां काफी कुछ नया है सो मैं आजकल के बच्चों के शौक इच्छा विचार प्राथमिकताएं आदतें आदि के बारे में जान रही हूं। तभी तो मैं भी नए जमाने के साथ कदम मिला सकूंगी।” जानकी ने कहा।

“बढ़िया है आंटी। आपके घर में सब खुश हो जाएंगे। ऐसे कोर्स के बारे में मुझे भी पता नहीं था। मुझे भी नई जानकारी मिली। आप यहीं पार्क में ही लोगों से बातचीत किया कीजिए। काफी कुछ प्रैक्टीकल हो जाएगा आपका। मैं अब चलती हूं। काफी देर से पार्क में ही हूं।” कहकर संदली जाने के लिए उठ गई।

जानकी को लगा इस तरह तो बात का सिरा पकड़ में आकर भी छूट जाएगा। उन्हें संदली के बारे में पता कैसे चलेगा ? कैसे पूछूं वह सोच ही रही थी कि संदली तेज – तेज कदम बढ़ाती हुई गेट की तरफ चल दी।

कैसी चिड़ियों सी फुदकती रहती थी यह लड़की। जब तब इसकी कोयल सी आवाज सुनाई दे जाती। किसी की मदद के लिए संदली पूरी कॉलोनी में मशहूर थी। बात- बात पर हंसती। कोई मिलता हाथ जोड़कर अभिवादन जरूर करती। कॉलोनी के दशहरा प्रोग्राम में नृत्य पेश करती। होली के कार्यक्रम में हंसी के फुहारे छोड़ती। पर लगभग डेढ़ साल से जैसे इसके चेहरे का नूर चला गया था। मुस्कुराती भी तो लगता जैसे उधार का मुस्कान लेकर चेहरे पर लगा लिया हो। भरी जवानी में प्रेम के सिवा और क्या हो सकता है जिसने उसे इस तरह चुप और अकेला कर दिया हो ? जानकी ने कई बार सोचा था। पर हर बार उनकी सोच इस बात पर रूक जाती कि वर्मा जी की इकलौती लड़की है संदली। रूपए- पैसे की कोई कमी नहीं। जो कुछ भी है संदली का ही है। संदली देखने सुनने में समान्य से कई गुणा अच्छी है। बल्कि उसे रूपवती ही कहा जाएगा। पढ़ाई- लिखाई में अव्वल है। चाल- चलन के बारे में कभी कुछ सुना नहीं। ऐसी लड़की को भला कौन ठुकराएगा ?

अगर प्रेम की बात नहीं है तो दूसरा कोई और कारण दिखता भी नहीं है जिसकी वजह से संदली के स्वभाव में इतना परिवर्तन आ गया हो। जानकी इस बात को समझने के लिए कई बार वर्मा जी के घर भी गई थीं पर कुछ हाथ नहीं लगा।

कुछ सोचकर वे उठीं और घर की ओर चली। आज मंदिर के कीतर्न में शामिल हो जाएंगी। हो सकता है संदली के बारे में कुछ हाथ ही लग जाए।

कीर्तन मंडली में खूब धमाल होने वाला था- मीरा सोनी मिसेज बत्रा सिमरन गीता और माधुरी सभी आयीं थी। पंडित जी पट खोल रहे थे। इसके बाद ही कीर्तन शुरू होता। जानकी ने सिमरन से पूछा “अरे तुमने आजकल संदली को देखा है ?”

“हां कॉलेज से आते- जाते दिख ही जाती है। क्या हुआ ?” जवाब के साथ सिमरन का प्रश्न भी तैयार था।

“ध्यान नहीं दिया क्या तुमने संदली आजकल कैसी चुप- चुप रहने लगी है आखिर माजरा क्या है ?” जानकी मूल प्रश्न पर सीधे ही आ गई।

“शादी की चिंता होगी और क्या उम्र भी तो हो आई है। अब तक उसकी शादी हो ही जानी चाहिए थी। एकलौती बेटी को वर्मा जी क्या घर में बिठाएंगे ? शादी के इंतजार में कई बार युवा बावले हो ही जाते हैं।” सिमरन कहा।

“नहीं नहीं। पैसों के घमंड में हैं ये लोग।” उनकी बात सुन रही सोनी ने पट से जवाब दिया। “भगवान ने अफरात पैसे दिए हैं उपर से रूप-गुण की गठरी और देदी है। मेरे भतीजे का इतना अच्छा रिश्ता ठुकरा दिया। लड़का क्लास वन ऑफिसर है। लेकिन संदली ने कह दिया उसे रिश्ता मंजूर नहीं। अब रहे उदास।”

“उसकी अपनी पसंद होगी। इसी से तुम्हारे भतीजे को ना कह दिया।” जानकी अब भी खोद कर देख रही थी शायद कोई सफलता मिले। “पसंद होती तो तीस की उम्र तक बैठी रहती। शादी करके चली नहीं गई होती। मुझे तो मिसेज वर्मा का लगता है जवान बेटी घर में बैठी है उन्हें कितना बुरा लगता होगा। उनका बुढ़ापा खराब कर देगी लड़की। कन्यादान के बिना कौन सी गति होगी वर्मा दंपत्ति की। लोग बाग हसंगे सो अलग।” गीता ने भी मंडली ज्वाइन कर ली।

इसके बाद चर्चा को वीराम देना पड़ा क्योंकि पंडित जी ने शंख बजा दिया था तो अब कीर्तन ही होना था। दो भजन के बाद जानकी उठ कर घर चली गई। उन्हें अफसोस हुआ। जो प्रश्न जैसा लेकर गई थीं वैसे ही लौट रहीं थी।

बरहाल संदली रोज की तरह सुबह कॉलेज जाती। पूरी ईमानदारी से कक्षाएं लेती और स्टाफ रूम में गप करने की बजाए औरों से पहले घर पहुंच जाती। थोड़ी देर मम्मी- पापा के बैठने के बाद ही वह हाथ मुंह धोती। शाम को पार्क का चक्कर लगा लेती।

होली के दूसरे दिन सौरभ को संदली के घर से निकलते देख कर जानकी की आंखों में चमक आ गई। सौरभ और संदली साथ पढ़े थे। अभी होली की छुटिटयों में सौरभ घर आया था। संदली से भी मिलने गया था आखिर दोनों में काफी अच्छी दोस्ती थी। सौरभ उन्हें जरूरी संदली के बारे में बता सकता था।

जानकी तेज से कदमों से सौरभ के पीछे चलीं। दोनों के बीच के फासले कम हुए तो उन्होंने उसे आवाज दिया।

सौरभ ने पीछे मुड़कर देखा और जानकी को देखकर रूक गया। पास आने पर हाथ जोड़े।

“खुश रहो बेटा। कैसे हो कब आए ?” उन्होंने पूछा।

“आंटी सब अच्छा है। तीन दिन पहले आया था।” सौरभ ने विनम्रता से कहा।

“अच्छा हुआ तुमने संदली से मुलाकात कर ली। बेचारी कितनी उदास रहती है। आजकल बहुत चिंता होती है कि हंसती- खेलती बच्ची को क्या हो गया। शादी के लिए रिश्ता भी तो नहीं आता है बेचारी क्या करे ?” जानकी बोलती ही गई।

“नहीं आंटी। रिश्ते तो बहुत आते हैं। वह तो इन रिश्तों से ही परेशान हो जाती है। वह शादी नहीं करना चाहती है।” सौरभ ने कहा।

“हाय हाय। इतनी सुंदर लड़की और शादी नहीं करेगी। ऐसा अंधेर भी कहीं होता है। क्यों नहीं करेगी शादी ? उसे किस बात की कमी है। तुमने समझाया नहीं।”

“समझाया था। पर उसने फैसला कर लिया है। पति और पिता में से उसने पिता चुना है आंटी।”

“हें ऐसा कैसा चुनाव ?”

“आंटी मयंक की जगह उसने अपने मम्मी- पापा को चुना है।”

“कौन है ये मयंक ?” जानकी इतना ही बोल पाई।

“हमरा ही दोस्त है। स्कूल से ही हम तीनों साथ पढ़ते थे। संदली और मयंक एक दूसरे को पसंद करते थे। फिर उनमें प्यार हुआ। मै गवाह रहा उनके इस रिश्ते का। संदली काफी निष्ठा से रिश्ता निभा रही थी। मयंक के घरवालों का भी ख्याल रखती। नौकरी लगते ही वर्मा अंकल ने मयंक के घरवालों से मुलाकात की। वे लोग शादी के लिए राजी हो गए। संदली ने शादी की शर्त रखी कि वह अपने माता- पिता को नहीं छोड़ेगी। वह जहां रहेगी उन्हें भी अपने साथ ही रखेगी साथ ही मयंक के माता- पिता को भी। मयंक और उसके घरवाले इसके लिए तैयार नहीं हुए।”

 मयंक ने संदली से अलग से भी मुलाकात की और कहा कि घर तो एक ही शहर में है वो रोज आकर एक बार वर्मा अंकल और आंटी को देख जाया करेगा। पर संदली तैयार नहीं हुई”।

“तो कर लेती शादी। एक ही शहर की तो बात थी।” जानकी बोली।

“बात शहर की नहीं आंटी। प्यार सिद्धांत और फर्ज की है।”

“संदली का कहना है मम्मी- पापा की शादी के चौदह साल के बाद उसका जन्म हुआ है। उन लोगों ने लाड प्यार से उसे पाला। एकलौती संतान है संदली तो वह बुढापे में माता- पिता को अकेले नहीं छोड़ना चाहती है। उसक फर्ज है कि वह उनकी सेवा करे। वह साथ ही साथ मयंक के माता- पिता को भी उसी अपनेपन से अपनाने को तैयार है। मयंक की जिद ने उसे तोड़ दिया। कॉलेज में ही मयंक ने उसे प्रपोज किया था। तब भी संदली ने कह दिया था कि वह अपने माता- पिता से अलग नहीं रहेगी। सब कुछ जानकर मयंक ने शादी की बात की और नई शर्त लेकर आ गया। संदली का मन टूट गया है। मयंक से गहरे जुड़ी थी वह। उसने अब शादी नहीं करने का फैसला कर लिया है। कहती है एक बात समझ गई हूं लड़कियां सबके माता- पिता को दिल से अपनाकर उनके खून के रिश्तों से ज्यादा देखभाल करती हैं। पर लड़के लड़कियों के माता- पिता के साथ ऐसा नहीं कर सकते। उनके लिए यह दोयम दर्जे का ही काम है। बेहतर है मैं ऐसे रिश्तों को दूर से प्रणाम करके माता- पिता के चरणों में रहूं। वर्मा अंकल और आंटी ने बहुत समझाया कि वे लोग तो पके फल हैं कभी भी टपक जाएंगे। इसलिए अपनी जिंदगी न बिगाड़े।

संदली कहती है यह फर्ज है। मयंक तो चार भाई दो बहन है। पर मैं एकलौती हूं। सबकुछ मुझे ही देखना है। लोग नहीं बदल सकते तो क्या उनके लिए संदली अपना फर्ज छोड़ दे। यह वह कभी नहीं करेगी आंटी।” कहकर सौरभ आगे बढ़ गया।

जानकी के मन में अब जिज्ञासा की जगह श्रद्धा थी। 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama