Priyanka Saxena

Inspirational Others

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"पहनावा" #रिप्ड जींस

"पहनावा" #रिप्ड जींस

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एक छोटी सी कहानी साझा करना चाहती हूँ फिर अपनी बात कहूंगी...


पड़ोस में एक परिवार रहने आया। माँ, किशोरवय के एक बेटा और एक बेटी। माँ मार्डन कपड़ों में ही रहती। सोसायटी की औरतों में खलबली मच गई। उससे एकाध ने किटी पार्टी में शामिल होने को कहा, जिसपर उसने मना करते हुए कहा कि रात में लेट आती है। फिर क्या था, बातें बनने लगीं। बहुतों को वह चरित्रहीन लगी, पहनावे पर उंगली उठाने लगीं। अकेली रहती है कोई खराबी होगी इसमें।


मैंने बात की, पता चला पति नहीं हैं, बीपीओ में जाॅब करती है, वहां ड्रेसकोड मार्डन है। मैंने किटी पार्टी में बताया, अपना विश्वास जताया। सबको अपनी सोच पर अफसोस हुआ।


कहानी यहीं पर समाप्त करती हूँ परंतु कहानी यहां पर खत्म होने के साथ बहुत सारे सवाल अनुत्तरित छोड़ जाती है, नारी के पहनावे पर टिप्पणी क्यों? चाहें वह मजबूरी में पहने, खुशी से पहनें , फैशन के तहत पहनें, उसकी मर्जी!

खुशी पाने का या खुश रहने के हजारों कारण हो सकते हैं, छोटी-छोटी बातों से जो खुशी अनायास ही मिल जाती है वो बड़े-बड़े उपहारों से नहीं मिला करती है।


खुशी मिलती है जब आपको आपके कपड़ों से कोई न तोलें। आप अपनी इच्छानुसार जो चाहें वो पहनें। आप जिस भी वेशभूषा में सुविधाजनक महसूस करते हैं, आपको वही पहनना चाहिए। मुझे तो ऐसा ही लगता है जब मैं मेरे शरीर को आरामदायक फील करवाती हूँ तब मुझे अच्छा लगता है। फिर वो चाहे पाजामा-टी-शर्ट हो या लोअर/ शार्ट्स- क्राप टाॅप ...घर हो या बाहर यदि साड़ी अच्छी लगे तो‌ पहनिए, सलवार सूट पसंद है तो वो पहनिए या जींस/ ट्राउजर/ शार्ट्स शर्ट- टी-शर्ट पसंद है तो वो पहनिए।


कोई भी हमें टोकने वाला कौन होता है?

आज के इस आधुनिक युग में जहां भारतीय नारी हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवा रही है वहां किसी का भी नारी के पहनावे या पोशाक पर टीका-टिप्पणी करना उस व्यक्ति की रुग्ण व अवरुद्ध मानसिकता को दर्शाता है।


आज की नारी को पता है क्या करना है, कैसे करना है और इतनी समझदारी व विवेक तो उसमें चिरकाल से है ही कि सही ग़लत का अंतर भली-भांति कर सके।

समझ में नहीं आता कि समाज के इन तथाकथित ठेकेदारों को यह हक किसने दिया है कि नारी के परिधान का निर्णय ले करें कि यह पहनो वो नहीं, ऐसे पहनो, वैसे पहनो....


रिप्ड जींस ( घुटनों पर से फटी जींस) से कोई संस्कारवान है कि नहीं यह कैसे पता चल सकता है? शार्ट्स पहनने से लड़के काॅलेज में पीछे पड़ेंगे , ये सब क्या है? कपड़ों से कोई व्यक्ति किसी नारी के चरित्र का निर्धारण कैसे कर सकता है?


दरअसल ये सभी बातें जो लड़कियों, महिलाओं के लिए लोग करते हैं यह उनकी संकुचित दृष्टिकोण को दिखाता है।


आप भी सोच रहें होंगे कि अपनी खुशी की बात करते-करते मैं ऐसा क्यों कह रही हूँ क्योंकि जरूरत है ऐसा कहने की नहीं तो बरसों बरस से नारी के कपड़ों से उसके संस्कार को जांचने की प्रवृति को कैसे हम रोक पाएंगे? आज एक व्यक्ति कह रहा है, कल‌ कोई और कहेगा... रोक लगाओ ऐसी सोच पर, पुरजोर विरोध दर्ज करो ऐसी बयान व बातों के ख़िलाफ़! आज की नारी सशक्त है, स्वयंसिद्धा है! फिर नारी के चरित्र, संस्कार और परवरिश पर सवाल उठाने वाले लोगों, तुम अपने गिरेबान में तनिक झांककर तो देखो- अपनी नज़रों में ही गिर जाओगे... तुम तो नारी को अंतर्भेदी नज़रों से देखकर कर उसका चीर-हरण किसी भी पोशाक में करते रहते हो फिर वो चाहें साड़ी हों, सलवार-कुर्ता हों या जींस-टॉप...


दोस्तों, दिल की बात साझा की है, कुछ ताज़ा घटनाओं ने भी लिखने को मजबूर किया है। अपने हिसाब से वस्त्र धारण करना हर नारी का जन्म सिद्ध अधिकार है। जब आप अपने कपड़ों में कम्फर्टेबल महसूस करते हैं तो खुशी आपके चेहरे पर स्वत: आ जाती है।


अतः: अपने मन की सुनो व करो, लोगों का काम है कहना....



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