Shalinee Pankaj

Drama Romance Others

1.6  

Shalinee Pankaj

Drama Romance Others

पहला प्यार

पहला प्यार

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आज ट्रेन पकड़नी थी। थोड़ा स्टेशन पहुँचते लेट हो गयी। जैसे तैसे ट्रेन पकड़ी बैठी थी, बर्थ खाली था, शायद आगे से लोगों का रिजर्वेशन था। मेरे सामने एक शख्स आँखों में चश्मा लगाए किताब पढ़ने में मशगूल था। अपना सामान व्यस्थित करने लगी कि तभी उस शख्स के नम्बर पर किसी का काल आया।


"हैलो" के साथ जब उसने बोलना शुरू किया तो मैं चोंक गयी। मैंने ध्यान से उस चेहरे को देखा तो वो कोई और नहीं... चलचित्र की भांति हर लम्हा एक-एक कर सामने आ गया।


कॉलेज बीएससी प्रथम वर्ष में थी। मैं श्यामली, सामान्य कद काठी की सांवली सी लड़की।

बहिर्मुखी स्वाभाव की। लड़कियों से कम व लड़कों से ज्यादा दोस्ती थी। 


लड़कों का ज़्यादातर स्वाभाव भी ज्यादा बात करने वाला होता है। दोस्तो के ग्रुप में अक्सर मैं रहने वाली, कभी कम बात करने वालों की तरफ मेरा ध्यान भी नहीं गया। बल्कि ये लगता कि कैसे इंसान इतना चुप्पी साधे, नीरस सा रह सकता है।


नीरज मेरा क्लासमेट था, अक्सर मेरी मदद करता फिर भी मेरे दोस्तों के लिस्ट में उसका नाम नही था, कारण उसका गम्भीर स्वाभाव। हम सोचते ही नहीं कभी की इस गम्भीरता के पीछे भी कोई वजह हो सकती है। नीरज की दो छोटी बहने भी थी, पिता नहीं थे, जिसकी वजह से माँ व बहनों की जिम्मेदारी उसपर आ गयी थी। बच्चा जब परेशानी में पिता का सीना सर छुपाने के लिए तलाश करता है वो रिक्तता कभी कोई भर ही नहीं सकता। हालांकि खेती-बाड़ी की वजह आर्थिक विपन्नता नहीं थी।


कभी नोट्स कम्प्लीट करने में, तो कभी प्रोजेक्ट में, सेमिनार में भी मेरी तैयारी करवाना। कभी-कभी लगता कि मैं उसे यूज़ कर रही हूँ पर ऐसा नही था, वो खुद ही मेरी मदद करने को तत्पर रहता। साथ ही क्लास में अन्य लोगों की भी करता। उसका स्वाभाव ही बहुत सरल था। सब उसे पसन्द करते पर वो कैंटीन में जाकर या गॉसिप कर कभी समय बर्बाद नहीं करता था।


प्रथम वर्ष से फाइनल तक हमने साथ में सफर किया। उसका नम्बर हमेशा अच्छा आता। फाइनल ईयर में उसका एक कम्पनी में केम्पस सलेक्शन भी हो गया। अपनी खुशी उसने सबसे पहले मुझसे साझा की पर मैं समझ ही नहीं पाई इस खुशी का मतलब। कुछ ऐसा स्वाभाव की बहुत जगह प्रतिक्रिया नहीं दे पाती थी इतना ज्यादा खुद में मशगूल रहती थी।


मुझे अच्छे से याद है कि अंतिम वर्ष वो मुझसे कुछ कहना चाहता था पर मैंने कभी उसे समय ही नहीं दिया। दिखने में भी काफी सुंदर व स्मार्ट औऱ मैं बिल्कुल अलग थी। स्वाभाव में भी काफी अंतर था।

मुझे कभी लगा ही नहीं तीखे नाक नख़्स के बाद भी मुझे कोई पसन्द भी कर सकता है। 


हम दोस्तो के साथ पिक्चर जाते, कैंटीन घूमना - फिरना सब पर वो इन जगहों में कभी साथ नहीं रहता था। न जाने क्यों अंतिम वर्ष वो आस-पास रहने लगा। एक बार दोस्तों के साथ शौक ही में हम कुछ लड़कियां भी सिगरेट की कस लगा ही रही थी कि उसने एक चांटा जड़ दिया। हम दोनों का या ये कहूँ इस बात पर मैंने उससे खूब झगड़ा किया। उसके बाद वो कभी आस-पास भी नहीं आया न पेपर के वक्त मैं उसे देख पाई। मुझे बाद में एहसास हुआ कि वो सही था और मैं गलत, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। कॉलेज बंद व बीएससी के बाद आगे की पढ़ाई के लिए सब इधर-उधर हो गए।


मुझे न जाने क्यों इतने दोस्तों के बाद भी सिर्फ नीरज की याद आने लगी। उसका मासूम सा चेहरा देखने को मन तड़पने लगी। न नींद आती न भूख लगती। मैं तो जानती भी नहीं थी कि वो कहाँ से था। सब बाहर-बाहर से पढ़ने आये थे और कॉलेज के बाद घर लौट चुके थे।


एक दिन स्टडी टेबल पर बैठी थी कि एक किताब केमेस्ट्री की उठाकर पन्ना पलटने लगी। मैंने देखा किताब पर कुछ msg लिखा है। मैंने लगभग तीनो वर्ष की किताबें निकाली। प्रथम वर्ष की किताब में किताब के दोनों पेज के बीच जहाँ बाइंडिंग होती है, जहाँ नजर पड़ती ही नहीं शायद यही वजह है कि कभी उसका msg देख ही नहीं पाई। ओह्ह!! जल्दी - जल्दी तीनों वर्ष की किताबें, नोटबुक सब छान मारी।

बस उसका प्यार भरा सन्देश व शालीनता से मुहब्बत का इंतजार था। सिवाय उसकी यादों के मेरे पास कुछ भी नहीं था। उस दिन एहसास हुआ कि मैं प्रेम में हुँ उसके, पर बहुत देर हो चुकी थी।


वक्त बीतता गया, स्वाभाव भी बदल गया कम बात करना जरूरत पर ही बोलना आदत सी हो गयी। कई विवाह के रिश्ते आये पर मैं आगे नहीं बढ़ी। इंतजार बस उसका... शायद जिंदगी के किसी मोड़ पर मिल जाये। आज 15 वर्षों बाद...


वो फिर से किताब पढ़ने लगा। मैंने कहा, "नीरज!" उसने किताब से नज़रे हटाते हुए मेरी ओर देखा।

"मैं श्यामली..." उसने भी मुझे देख कहा "ओह्ह! श्यामली... कितनी बाते हुई हमारे बीच।”


अचानक कुछ ख्याल आया मुझे की इन 15 वर्षों में वो अकेले तो नहीं होंगे। मैंने शादी के बारे पूछा, "तूने शादी तो कर ली होगी न बच्चे भी होंगे।" वो हँसा पर कोई जवाब नहीं दिया। मेरी बेचैनी बढ़ने लगी। मैंने फिर से पूछा, "नीरज तेरी वाइफ की फ़ोटो तो दिखा, कुछ तो बता अपनी लाइफ के बारे में।" 


उसने कहा, "है न मेरी जीवनसंगिनी उसकी तस्वीर भी है पर्स में दिखाता हुँ अभी, पर पहले तुने शादी...." मैंने बीच में ही बात काटते हुए कहा, "नहीं मैंने शादी नहीं की।" उसने कहा, "क्यों?" मैंने एक गहरी नजर से उसकी ओर देखा और कहा, "तु मिला ही नही, तो कैसे करती।" नीरज ने मेरी ओर देखते हुए कहा, "सच बता श्यामली अब तक तुने शादी क्यों नहीं की?”


वो शादीशुदा है मैं कोई ऐसी-वैसी बात नहीं कर सकती फिर सोची पता नहीं जीवन में ये मोड़ फिर आएगा या नहीं उसके उन msg का जवाब तो दे दुँ। मैंने कहा, "अब उन बातों का क्या मतलब मुझे जब एहसास हुआ कि मैं प्रेम में हुँ तब तक वो दूर जा चुका था, उसकी यादों के सहारे जीवन बिताने के लिए मैंने शादी नहीं की।"


उसने कहा, “ओह्ह! वैसे कौन था वो?" मैंने कहा, "मेरी छोड़ तु अपनी जीवनसाथी की तस्वीर तो दिखा!” उसने तस्वीर दिखाई! जिसे देख मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। मैंने फिर भी उससे पूछा, "ये तो मेरी तस्वीर है।"


उसने कहा, "हाँ, श्यामली जिसे प्यार किया वहीं तो जीवनसाथी हो सकता है न तुम्हारे सिवा कोई भी नहीं मेरे जीवन में। मुझे तो विश्वास भी नही हो रहा है कि तुम भी मेरा इंतजार करते मिलोगी। ओह्ह श्यामली...” कहकर वो मेरे करीब आया और मैं उससे लिपट गयी हमारा स्टेशन भी आ चुका था। मैंने पूछा, "आगे क्या इरादा है।"


अब इस राह में मिले है तो जीवनभर साथ चलना है इक दूजे का हाथ थामे। इस तरह मुझे मेरा प्यार पहला प्यार मिल गया।


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