पहला और अंतिम
पहला और अंतिम
सावन की रिमझिम बारिश में एक दिन का विशेष महत्व है सोमवार, जी हां सोमवार वह दिन है जिसमें शिव भक्तों की टोली रोड, मुहल्ले रंग रंग के जयकारे गीत से गूंजने लगते हैं। शिव मंदिरों में रात चार बजे से भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है ऐसा लगता है मानो शिव जी सबसे पहले आने वाले की मनोकामना पहले पूरी करते हैं।
ऐसे ही एक सावन सोमवार को मैं भी उड़ीसा बार्डर पर स्थित एक शिव मंदिर में जलाभिषेक करने का निश्चय किया गाँव की एक टोली शाम से शहर के लिए अपने पोशाक पहन, रंगबिरंगे कांवर लिए निकल पड़ा। मैं भी उनके साथ हो लिया। रास्ते भर, बोल बम, साइड बम के नारे लगना शुरु कर जत्था आगे निकल पड़ा। सावन सोमवार का एक विशेष फायदा ये है कि लोग भगवा वेश पहन रेल गाड़ी का किराया बचा लेते हैं।
जो भी हो धर्म के आस्था की बात है लोगों के मन पवित्र गंगा है यदि शिव दर्शनार्थियों के मन में बिना पैसे दिए शिव के शरण में जाना उचित लगता है तो यही अच्छा। गाड़ी शिव भक्तों से भरी हुई थी ऐसा लग रहा था मानो अब कोई साधारण आदमी दुनियां में नहीं बचा है।
हमारा जत्था महानदी के पास एक गांव है पानपोष जहां से रात चार बजे से पानी भर कर मंदिर के लिए पचास किलोमीटर तक लेकर जाना था पर रात्रि विश्राम के लिए रुके जहां मुक्त का लंगर सेवा संस्थानों द्वारा दिया जा रहा था, अनेक दान दाताओं द्वारा खुद रोटी बना कर मुफ्त में बांटने का काम, जो बड़े घराने के महिलायें अक्सर किया करते हैं जिन्हें देख लगता है कि कहीं इन्सानियत जिंदा जरूर है। खाना खाकर हम जल्दी सो गए। सबेरे जल्दी उठने का संकल्प ले।
रात चार बजे से हम नहा कर कांवर उठा मंदिर के लिए निकल पड़े रास्ता कहीं भी सुना नहीं था,। श्रद्धालुओं में महिला, पुरुष झुंड के झुंड चल रहे थे। जिसमें कुछ शरारती किस्म के लड़के भी थे जो सिर्फ मौज मस्ती के लिए चल रहे थे, जिनका जिक्र करना इस लेख को अपवित्र करना होगा, भावी पाठक गण जरूर समझ गए होंगे कि ये कौन लोग है। राह में काफिला आगे बढ़ते जा रहा था भक्त अनेक जयकारे के साथ बढ़ रहे थे। जिस झुंड के पीछे हम चल रहे थे उस झुंड में लड़कियाँ भी थे जिसको पिछे से आते हुए एक झुंड ने साइड बम कहते हुए लड़कियों को छेड़कर आगे बढ़ गया जिसे हम लोग देख रहे थे, लड़कियों के झुंड में दो चार पुरुष ही थे वे सब सह गए लेकिन वे सरफिरे इस सहने की क्षमता का गलत अर्थ निकाल उनके काफिले के साथ चलने लगे और गलत अंदाज में शरारतें करने लगे अब उनमें झगड़ा शुरू हो गया, हम पिछे चल रहे थे, उन सबको हमारे साथियों ने सबक सिखाने का निर्णय लिया
फिर हम लोग आगे बढ़ उनको समझाने लगे कि इस पवित्र समय पर इस तरह कार्य कर समाज को शर्मसार मत करें इससे मानव जाति कलंकित होता है कम से कम पवित्र यात्रा को तो इस काम से दूर रखो।
वे लोकल लड़के थे, मानने को तैयार न हुए भीड़ बढ़ गया, देखते ही देखते किसी लड़के ने एक व्यक्ति को थप्पड़ लगा दिया फिर हर कोई अपना हाथ साफ करने में जुट गया। कुछ पुलिस वाले आए और उनको रोका और फिर सभी यात्रा पर निकले। जय भोले बाबा की जय। नारे लगते जा रहे थे। मेरे जीवन की ये यात्रा पहली और अंतिम यात्रा बन गया।
