फिरदौस पर हमला
फिरदौस पर हमला
मायके में फिरदौस को दो दिन हुए थे। मोहल्ले परिचितों एवं रिश्तेदारों में यह बात फ़ैल गई थी कि फिरदौस पेट से है।
फिरदौस के अम्मी, अब्बू ‘नई फिरदौस’ के पीहर आने से अत्यंत खुश थे। वे यह अनुभव करके चकित थे कि किसी एक व्यक्ति का प्रभाव, कैसे किसी की काया कल्प कर सकता है।
यूँ तो तलाक दिए जाने कि कटु घटना वाले दिन से ही उन्होंने, फिरदौस को बदलते देखा था। वकील हो जाने के बाद भी, अपनी दब्बू एवं संकोची रही बेटी में तब, साहस का संचार होते देखा था। लेकिन हरिश्चंद्र के साथ के इन लगभग डेढ़ वर्षों में फिरदौस चमत्कारिक रूप से बदल गई थी।
अब वह मांसाहार का सेवन नहीं करती थी। अब वह नए बेबी की उम्मीद से थी। गर्भावस्था के कारण उस पर कुछ चर्बी भी चढ़ गई थी। अब के पहनावे एवं चाल ढाल, फिरदौस के संभ्रांत होने की चुगली कर रहे थे। ये सब तो फिरदौस में भौतिक परिवर्तन थे।
अम्मी, अब्बू को ज्यादा हैरानी, फिरदौस में हुए, “आत्मिक परिवर्तन”, अनुभव कर हो रही थी।
वे, अपनी बेटी को अब अत्यंत आत्मविश्वासी देख रहे थे। साहस, उसमें किसी वीरांगना सा दिखाई दे रहा था। इन सब के होते हुए, अभिमान फिरदौस के व्यक्तित्व में, अंश मात्र नहीं दिखता था। हर बात में फिरदौस द्वारा तुरंत ही, सर्व पक्ष देख लेना फिरदौस के लिए चुटकी जैसी सरल बात हो गई थी।
अम्मी से नहीं रहा गया था। उन्होंने पूछ लिया - फिरदा, हरिश्चंद्र साहब कोई जादूगर हैं, क्या?
फिरदौस ने हँस कर कहा -
जी हाँ मुझे भी यही लगता है, अम्मी! (फिर गंभीरता से) हम लोग जिन्हें काफिर कहते हैं, हरिश्चंद्र जी वैसे काफिर भी नहीं हैं। उन्होंने, शादी के दिन से ही यह कोशिश की है कि उनसे विवाह के बाद भी, मेरी धार्मिक आस्थाएं पूर्ववत बनी रहें।
फिर भी अब मुझे, यह स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं कि उनकी खूबियों को देख मैं ऐसी प्रभावित हुईं हूँ कि स्वप्रेरित ही मुझमें, उनकी आस्थाएं एवं विश्वास ने स्थान बना लिया है।
अब्बू ने कहा - फिरदा, ऐसे तो आप, मुसलमान नहीं रह जाएंगी।
इस बात पर विचार करते हुए फिरदौस ने उत्तर दिया -
अब्बू जब उन्होंने मेरे विकल्प के लिए मुझे खुला छोड़ा। तब मैंने, अपने पर बड़ी जिम्मेदारी महसूस की थी। मैं, कट्टर होकर, उनके समक्ष खुद को खुदगर्ज नहीं दिखाना चाहती थी। इसलिए मैंने, अन्य कौम की लड़की होते भी, उनके घर के रिवाज नहीं बदलने दिए।
मैं नहीं चाहती थी कि मेरी मुस्लिम परवरिश को कोई खुदगर्ज कहता।
अम्मी ने कहा - फिरदा, हरिश्चंद्र साहब ने चालाकी से आपको, अपने रंग में रंग लिया है।
फिरदौस ने वकील जैसा बचाव करते हुए कहा -
अम्मी इसे आप जो भी कहें मगर, मेरे अब पति (हरिश्चंद्र), निःसंदेह मेरे पहले वाले उस शौहर जैसे, “खुदा के बंदे” से, बेहतर इंसान हैं। उसने तो मुझे, यूँ बेघर किया था कि मेरी जान पर ही बन आई थी। अगर मैं, उस दिन जिंदा नहीं बचती तो क्या रह जाता, मेरा मजहब?
अब्बू-अम्मी तब, फिरदौस से असहमत होते हुए भी यह सोचकर चुप रह गए कि चार दिन को पीहर आई, बेटी के वक़्त को गमगीन क्यों बनाना।
यहाँ फिरदौस अंजान थी कि जिस वक़्त वह, अपने पूर्व शौहर को इस तरह (लानत से) स्मरण कर रही थी, उस समय ही उसका पूर्व शौहर वहाँ, (जैसा वह सोचता था) फिरदौस के ‘काफिर पति’ से प्रेग्नेंट होने की जानकारी से, आगबबूला हो रहा था।
वह तार्किक बुद्धि प्रयोग कर यह नहीं मान पा रहा था कि काफिर न होते हुए भी उसने खुद, फिरदौस की ज़िंदगी जहन्नुम कर देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
वह इस समय, अपने अब्बा की गंभीर अस्वस्थता के कारण पंद्रह दिनों के पैरोल पर रिहा किया गया था।
फिरदौस के इस पूर्व शौहर को, गुस्सा इस बात पर इतना नहीं था कि तीन तलाक के कारण उसे तीन वर्ष की कैद हुई थी, जितना गुस्सा, उसे तलाक के बाद, फिरदौस के किसी काफिर से ब्याह रचा लेने का था।
अब जब, फिरदौस को वह प्रेग्नेंट सुन रहा था। उसे हर समय, फिरदौस का गर्भस्थ शिशु, किसी बिच्छू जैसा काटता अनुभव हो रहा था। इस बिच्छू दंश जैसे एहसास से वह तन्हाई में तिलमिला उठता था।
वह, अपने बीमार अब्बू की तीमारदारी एवं उनके इलाज की फ़िक्र छोड़, इस फ़िक्र में था कि कैसे वह, फिरदौस से बदला ले और उसे सबक सिखाये।
अगले दिन वह 25 किमी दूर फिरदौस के घर जाने निकला था, तब उसके ख्याल, उसकी अम्मी को खौफनाक लगे थे।
उसकी अम्मी यह सोचकर परेशान हुई कि उनका एकलौता बेटा, पहले ही जेल काट रहा है। क्रोध अतिरेक में वह ऐसा कोई काण्ड ना कर दे कि जीवित, जेल के बाहर ही ना आ सके।
इस फ़िक्र से अम्मी ने उसे रोका था। जब अम्मी के रोके जाने पर वह नहीं रुका तब, बेबस उस अम्मी ने, अपनी कौम की, प्रगतिशील महिलाओं का संगठन चलाने वाली, नरगिस को फोन पर इत्तला दी थी। नरगिस से कहा -
बेटी नरगिस, मेरा बेटा खंजर ले कर, खतरनाक इरादे से फिरदौस के अब्बा के घर के लिए निकला है।
फिर उन्होंने (पता देते हुए) नरगिस से गुहार लगाई - कृपया आप फिरदौस को, उसके कहर से बचाओ।
इधर साँकल खटखटाये जाने पर, फिरदौस के अब्बू ने दरवाजे खोले थे। दरवाजे पर फिरदौस के पूर्व शौहर को आया देख उन्होंने, उसके खतरनाक इरादे से अनजान, मोहब्बत से कहा था -
ओह बेटा, आप! आओ बैठो।
यह कहते हुए उसे, सोफे पर बैठने का इशारा किया था। बैठने के बाद अपने को सामान्य दिखाते हुए पूर्व शौहर ने पूछा -
सुना है, फिरदौस आई है?
अब्बू अंदाज नहीं लगा सके थे कि उसके भीतर भयानक नफरत भरी है। उन्होंने हामी में सिर हिलाया, साथ ही फिरदौस को आवाज लगाई -
फिरदा, आओ देखो तो कौन आया है!
इस पर भीतर से फिरदौस आई थी। वह पूर्व शौहर को देख चकित हुई, डरी इसलिए नहीं कि वह अपने घर में थी। अब्बू भी उसके साथ थे ही, फिरदौस ने पूछा -
आपकी, सजा पूरी हो गई क्या?
पूर्व शौहर ने इसका जबाब नहीं देकर कहा - मेरे से तलाक लिया कोई बात ना थी। आपने शादी, काफिर से क्यों की?
फिरदौस ने उत्तर में कहा - इसलिए की कि वह काफिर, गुस्से में तीन तलाक देकर एक मिनट में ही बीवी को बेघर नहीं कर सकता है।
इस बात से कुपित होकर, अब तक सामान्य दिखने की कोशिश रहा पूर्व शौहर, दहाड़ता हुआ खड़ा हो गया था। वह कह रहा था -
बेशर्म औरत, बहुत मुहं चलाती है। तुझे सबक सिखाना होगा। तू अपनी कोख में काफिर का जो बच्चा लिए घूम रही है ना! आ अभी ही मैं, उसके टुकड़े करता हूँ।
यह दृश्य देख अब्बा कांपने लगे थे। पूर्व शौहर ने, छुपा रखा खंजर, हाथ में लिया था।
तभी ईश्वरीय चमत्कार जैसे नरगिस और उसकी चार साथिन महिलाएं, खुले दरवाजे से कमरे में दाखिल हुईं थीं। फिरदौस के तरफ बढ़ते, उसके पूर्व शौहर को, उन सबने पीछे से पकड़ लिया था। तत्काल ही, फिरदौस भीतर के तरफ जाने को बढ़ी थी।
महिलाओं की गिरफ्त में जकड़ा पूर्व शौहर जब छूट नहीं पाया तो उसने, फिरदौस की ओर खंजर फेंक मारा।
उसकी कोशिश खंजर, फिरदौस के पेट पर मारने की थी मगर, भीतर जाने के लिए घूम चुकी फिरदौस को, वह बायें कूल्हे पर लगा था। फिरदौस की चीख निकल गई थी। वह गिर पड़ती अगर, अंदर से आती उसकी अम्मी ने, तभी उसे सहारा ना दे दिया होता।
तब तक इस मचे कोहराम के शोर में, पास पड़ोस के कुछ लोग आ गए थे। जिन्होंने पूर्व शौहर को काबू किया था।
फिर धड़ाधड़ कॉल लगाये जाने लगे थे। पहले एम्बुलेंस पहुँची थी, जो फिरदौस को लेकर तेजी से अस्पताल की ओर चल पड़ी थी। कुछ मिनटों बाद, पुलिस वैन पहुँची थी। पूर्व शौहर, हिरासत में ले लिया गया था।
हरिश्चंद्र फिरदौस के पहुँचने के पहले, अस्पताल पहुंच गए थे। स्ट्रेचर के साथ साथ चलते हुए उन्होंने फिरदौस को हिम्मत दिलाई थी। उनकी उपस्थिति मात्र से फिरदौस को हौसला मिल गया था।
डॉ. ने तुरंत ही उपचार शुरू कर दिया था। फिरदौस ने चिंतित हो डॉ. से पूछा - मेरा शिशु पर कोई खतरा तो नहीं?
डॉ. ने बताया - घाव निचले भाग में होने से शिशु को कोई खतरा नहीं है।
फिरदौस के गर्भवती होने से एनेस्थीसिया देना उचित नहीं था। तब, फिरदौस ने बहादुरी से टांके लगने के दर्द को सहन किया था। घाव गहरा कम था लंबा अधिक था। स्टिचेस अधिक लगाने पड़े थे।
आधे घंटे बाद जब फिरदौस को ऑपरेशन कक्ष से बाहर लाया गया तो वह पस्त थी। हरिश्चंद्र ने बहुत प्यार से कहा -
फिरदौस, आपने बहुत बहादुरी का परिचय दिया है। बड़ी मुसीबत टल चुकी है। अब, जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा।
3 घंटे अस्पताल में रखने के बाद हरिश्चंद्र जी ने, फिरदौस को डिस्चार्ज करवा लिया था।
उन्होंने खुद छुट्टी ले ली थी। फिरदौस की सेवा सुश्रुषा में खुद जुटे थे। पति के इस भाव प्रदर्शन (जेस्चर) ने फिरदौस पर जादुई प्रभाव डाला था। फिरदौस के घाव तेजी से भरने लगा था।
एक दोपहर अपना सिर, हरिश्चंद्र जी की गोदी में रखकर फिरदौस व्यथित हो कह रही थी-
ये लोग कैसे अजीब होते हैं जो, मजहब से मोहब्बत नहीं नफरत करना सीखते हैं। सजा दिए जाने पर भी सही सीख नहीं लेते हैं। अपनी औरतों के सामने शेर होते हैं। पराई औरतों के पीछे भीगी बिल्ली बने घूमते हैं, समझ नहीं आता इन्हें सुधारा किस प्रकार जा सकता है?
हरिश्चंद्र ने कहा -
फिरदौस, आप अपने को, इन नकारात्मक विचारों से मुक्त रखो। आप, उस आदमी को अपने दिमाग से निकाल दो। सोचो कि आपके गर्भ में, हमारा शिशु है। उस पर, उसकी छाया एवं नकारात्मक विचार अच्छा प्रभाव नहीं डालेंगे।
फिरदौस ने कहा -
जी, आप कहते हैं, तो लीजिये मैं अभी इन ख्यालों को निकाल फेंकती हूँ। मगर मेरी गुजारिश है कि आप, ऐसे हैवान को आदमी कह कर, आदमी का अपमान ना करें। उसने मेरे, गर्भस्थ मासूम शिशु को, कुर्बानी वाले जानवर की तरह ट्रीट किया है।