फेयरवेल-2
फेयरवेल-2
मुझे मेरी दोस्त की फिक्र होने लगी थी।वो कभी इतनी जल्दी अपने मन की थाह नहीं दिया करती थी।पहले लगा की समय के साथ-साथ उसमे चेंज आया है। मगर बात की शुरुआत मे जो उलझन उसकी बातों मे महसूस की थी वो नॉर्मल नहीं थी। मुझे वाकई उसकी फिक्र होने लगी थी। उसके अलविदा कहने के बावजूद मैने उसे मेसेज छोड़ा " झल्ली सम्भलना, तुम्हारे जैसा कोई हो ही नहीं सकता।" मगर वो मेसेज उसने काफी समय तक नहीं पढ़ा।
इधर 6-7 महिने बाद मेरा मौका लगा उसके शहर के पास जाने का ।मैने उसे मेसेज किया ।
"तुम्हारे शहर के पास आ रहा हूँ, मिलो।"
"कब आ रहे , क्यूं और कहां आ रहे? लौटोगे कब? "
उसका तुरंत जवाब आया। ये नॉर्मल नहीं था । झल्ली कभी तुरंत जवाब नहीं देती थी ।
"क्या बात फोन पर ही बैठी हो ?"
उसने कुछ जवाब नहीं दिया ।शायद मैने गलत कह दिया ।
"25 को और 26 को वापिस ,ऑफिस का काम है,और नैनीताल आ रहा हूँ"
उसने जो जो पूछा जवाब दिया। पर उसका रिप्लाई नहीं आया ।
चलने से पहले मैने मैसेंजर चेक किया, कोई जवाब नहीं था। मैं नैनीताल पहुंच गया। 25 को पता चला की मेरा ये स्टे लम्बा होगा। 27 को शहर मे कोई जलसा था। सड़कें जाम थीं। गुनगुनी दोपहर मे , जाम मे फंसा, कैब मे पसरा बैठा मैं मेसँजर चेक करने लगा।
" तुम लौटे नहीं ?"
झल्ली का मैसज ,मैं फ़ौरन सीधा होकर बैठ गया।
"हेल्लो, नहीं यहीं हूँ" मैने तुरंत टाइप किया
"हाँ दिख रहा है "
दिख रहा है ?!!!!!! पढ़ कर मैने कैब से अपनी दाई और बायीं ओर नजरें दौडाई। उस पल इस से खूबसूरत लम्हा और कोई नहीं हो सकता था मेरे लिये । सब एक सपना सा लग रहा था । कैब के दाहिनी ओर सड़क के उस ओर वो थी ,मुस्कराती हुई हाथ हिला रही थी। फेसबूक पर थोड़ा स्लिम दिखती थी पर झल्ली थोड़ा भर सी गयी थी, आज भी उस पर गुलाबी रंग वैसे ही खिल रहा था जैसे फेयरवेल वाले दिन। मेरे दिल को ब्रेक सा लग गया। फेयरवेल की याद आते ही दिल को आज भी कुछ हो जाता है।
मैं कैब से उतर कर सीधा उसके पास पहुंचा। वो हँस रही थी ।उसकी लाल ,भीगी सी आँखों मे दुख और खुशी का घालमेल दिख रहा था । "तुम यहां ऐसे मिलोगी यकीं नहीं हो रहा, और इतनी खुशी मिलने की ,कि रो रही हो?! " कह कर मैने मजाक करते हुए उसकी ओर हाथ बढाया। "रो रही ?! ओह! " उसने आँखें पोछी, शायद उसे भी पता नहीं चला की उसकी आँखें नम हैं। मेरे बढे हुए हाथ को देख बोली "भूल गये?!" ,"ओह सॉरी यार " झल्ली किसी से हाथ मिलना पसंद नहीं करती थी। उन दिनो मजाक मे कहता था " ये हाथ उसी से मिलाएगी जिसे दिल मे रखना चाहेगी" और इस बात पर वह मुस्करा देती थी।
उसका वहाँ होना इत्तेफाक ही था। वह किसी काम से सुबह नैनीताल आई थी और अब वह घर लौट रही थी।ये सब जैसे किस्मत मे लिखा हुआ हो रहा था। हम दोनो पास के रेस्तरां मे थे।झल्ली चुपचाप कॉफ़ी पी रही थी ,मैं उसे देख रहा था।
" तो फाइनली ये मुलाकात हो ही गई ।" मैने खामोशी तोड़ते हुए कहा। वो धीमे से मुस्करायी । "क्या अब भी टैक्स लगता है मुस्कराने पर " ये सुन कर वो फास्ट फॉरवर्ड मे खिलती कली सी खिलखिला गयी ।दिल को सुकून सा हुआ।"और कैसा है तुम्हारा ट्विन?! ख्याल रखता है न!"
झल्ली से बातों से, कन्फ्यूज बर्ताव से मेरा दिल बहुत भारी सा हो गया। उसकी आँखें और अधूरी उलझी सी बातें मुझे बेचैन कर रही थीं। न कुछ खुल कर बता रही थी न छिपा ही पा रही थी। मैने उसके ट्विन के बारे मे ज्यादा जानना चाहा पर वो उसका नाम वगैरह कुछ खोल ही नही रही थी।" छोड़ो न, वो अपनी जिंदगी मे बहुत खुश है, मेरा क्या जुड़ा है, मन ही न!" वह किसी फिलोसोफर की तरह गम्भीर हो कर बोल रही थी या खुद को ही कह रही थी। शायद आज ही झल्ली को ये अहसास हुआ था की वह जितना समझ रही थी वो रिश्ता उतना भी गहरा नहीं था। बडी देर बाद
" मैं खुद से शर्मिंदा हूँ "
ये कहते हुए उसके आँखों से आँसूं ऐसे गिरने लगे जैसे किसी ने मोतियो का सन्दूक उलट दिया हो। सच मे उस पल भी मेरे बस मे कुछ नहीं था।
मेरे सामने वो गुलाब की पंखुडियों सी बिखरी हुई थी। उसे बाहोँ मे समेट लेने का ज्वार उठा। मगर सालों पहले उसकी 'छुवन' को लेकर पड़ी डाँट अब भी याद थी, "मुझसे दूरी बना कर बात किया करो।" मगर जब वो जाने को हुई तो मैने फिर उसकी बांह पकड़ कर रोका और कहा " बुरा मत मान ना , मैने तुम्हे पहले भी मेसेज किया था , सम्भल्ना , तुम्हारे जैसा दूसरा कोई नहीं है, कोई भी नहीं ।" उसने मुझे सूनी आँखों से देखा । " झल्ली, तुम समझोगी की मैं तुम्हारे दुखी मन का फायदा उठा रहा हूँ पर मैं तुम्हारा दोस्त था ,हूँ और हमेशा रहूँगा।" कह कर मैने उसको गले लगाना चाहा पर वो छिटक कर अलग हो गई । पता नहीं मैने गलत किया या सही। उसने दोनो हाथ जोड़ लिये "सॉरी, वो जैसा भी है , मुझे तुमसे नहीं कहना चाहिये था। वो भी शायद मजबूर है।"
उस वक्त मुझे उस पर बेहद गुस्सा,प्यार और दया आई। कहां उलझ गयी है मेरी झल्ली। कैसे वो इतनी नादान हो गई? हो क्यूँ रहा है उसके साथ ये सब?क्या वो ये दर्द डिजर्व करती है?
"तुम भी वही दर्द पाओगी ,जो तुमने मुझे दिया है।"
फेयरवेल के बाद उसके मुझे लगातार इग्नोर करने पर मेरे कहे शब्द अचानक से मेरे जहन मे कौंधने लगे । " नहींं, नहीं " इस एक याद से मेरा दिल, झल्ली के लिये टनो दुख से भर गया।
,"क्या?" झल्ली ने आँखें पोछते हुए रुंधे गले से कहा । मेरे मुहँ से 'नहीं, नहीं ' शायद जोर से निकल गया था । "क्या नहीं ?" उसने फिर पूछा मैने बात को उसी के ट्विन की ओर करते हुए कहा,
" मजबूर कोई नहीं होता डीयर , तुम गफलत मे हो। अगर तुम उसकी प्रायोरिटी नहीं हो, तो तुम कहीं भी नही हो उसकी लाइफ मे । होश मे आओ यार।"
"पता है मुझे ।"
"फिर !"
"पता नहीं, जी नहीं हटा पाती उससे"
"मुझसे मिलती रहो, मैं हटा दूँगा।"
माहौल को हल्का करने की कोशिश मे मैने धीमे से मन की दबी ख्वाहिश कह दी। वो फिर खिलखिला कर हँस दी ।भीगी आँखों के साथ उसकी वो निश्छल सी हँसी उसे बेहद मासूम और खूबसूरत बना रही थी।
" शिट यार !!तेरा ट्विन मैं क्यूँ ना हुआ!?"
"फिर वही बात ?!"
झल्ली ने आँखें सिकोड़ते हुए कहा ।
"यार मजाक तो कर लेने दो।"
"इस वक्त तो न करो!" बहुत दर्द था उसकी उस गुजारिश मे।
"अच्छा चलो बैठो, कुछ और बात करते हैं।"
मेरी झल्ली, मेरी प्यारी दोस्त मेरे सामने बैठी थी ।वो सच मे अब भी वैसी ही थी। जिससे भी जुड़ी थी, गहराई से जुड़ी थी, हालांकी ये उसके लिये , उसके दिल के लिये काफी खतरनाक था।