फेंका हुआ वरदान
फेंका हुआ वरदान


मुनिया और उसका छोटा भाई तीन दिन से अपनी माई के घर लौटने का इंतज़ार कर रहे हैं, पर आज तक उसका कोई खोज खबर नहीं है। बच्चे तीन दिन से भूखे हैं और उनकी माई न जाने कहाँ रह गई। जब से बापू ने माई को शराब पीने के बाद पीटा था, माई कुछ बदल सी गई थी।
एक माई ही तो थी जो उन दोनों के खाने-पहनने का ख्याल रखती थी। बापू को तो अपने आपसे ही कभी फुरसत नहीं मिलता। माई ही इधर-उधर से उधार सामान माँगकर लाती थी और दोनों बच्चों को किसी तरह रोटी बनाकर देती थी। सुनने में आया है कि पिछले हफ्ते से मुनिया की माई किसी घर पर काम करने लगी थी।
आठ बरस की मुनिया यह सब सोचे जा रही थी और अपने भाई का हाथ कसकर पकड़कर सड़कपर आते-जाते लोगों से पैसे माँग रही थी। वह उनसे दया की भीख माँग रही थी, पर बड़े शहरों में तो किसी के पास दिल नाम की चीज़ रह ही नहीं गई थी! वे सबके सब उन्हें अनदेखा कर आगे बढ़े जा रहे थे।
तभी मुनिया ने एक शीशे लगे घर से कुछ लोगों को निकलते हुए देखा। उनके हाथ में पकड़े हुए पैकेटों में से खाने की सुंदर खुशबू निकल रही थी। आशा का दामन थामे दोनों बच्चे उधर को भागे।
मुनिया ने शीशे में आँखे गड़ाकर देखा कि अंदर शीशे की एक अलमारी में तरह-तरह की खाद्य सामग्रियाँ रखी हुई थीं।
देखकर मुनिया के तो मुँह में पानी आ गया। भाई छोटा था , वह यह सब न देख पाया। वह सोचने लगी कि खाने तक कैसे पहुँचा जाए? वहाँ बैठै लोगों के चेहरों को ध्यान से पढ़ने लगी!
तभी उसने देखा कि एक टेबुल पर दो युवक और युवती बैठे हुए हैं। बीच में ढेर सारा खाना रखा था, पर कोई खा नहीं रहा था। बल्कि उस तरफ तो वे देख भी नहीं रहे थे।
शीशे के इस पार से मुनिया को दोनों की मुखमुद्राएँ थोड़ी परिचित सी लगी! ऐसा लगा कि दोनों माई -बापू के जैसे ही लड़ाई कर रहे हैं! न जाने क्यों बड़े लोग इतना लड़ते हैं? उसके और उसके भाई को तो दोनों टाइम का खाना मिल जाए बस ! और कुछ नहीं चाहिए उनको।
इतने में, वह युवक पैर पटकता हुआ उस शीशेनुमा घर से बाहर निकला और तेजी से उनके सामने से चला गया।
इधर युवती भी गुस्से में क्या करें समझ नहीं पा रही थी! तैश में आकर उसने टेबुल से सारा खाना उठाया और बाहर एकतरफ फेंक कर चल दी।
किस्मत से ,खाने का पुलिंदा मुनिया के सामने हीआकर गिरा।
खाते हुए दोनों भाई-बहन सोचने लगे कि अगर गुस्सा करने से किसी और का भला हो तो गुस्सा उतनी बुरी चीज़ भी नहीं है!!