पहेली : भाग 15
पहेली : भाग 15
मातादीन के मरने की खबर थाने में जंगल में आग की तरह चारों ओर फैल गई। सब लोग मातादीन के घर के बाहर एकत्रित हो गए थे। वे लोग घर के अंदर जाने को तैयार हो रहे थे कि सब इंस्पेक्टर राधेश्याम ने उन्हें रोकते हुए कहा
"कोई अंदर नहीं जायेगा ! एस पी साहब ने सख्त आदेश दिये हैं। आपके अंदर जाने से सबूत नष्ट हो सकते हैं। उन्होंने एक आईं पी एस अधिकारी को इस थाने का इंचार्ज बनाकर भेजा है। वे अभी आने वाले हैं। अब आगे इस थाने का सारा कार्य वही देखेंगे। अब सब लोग उनके आदेश पर ही काम करेंगे। सब लोग समझ गए ना" ? राधेश्याम ने मास्टर की तरह सब पुलिस वालों से पूछा।
"जी सर , समझ गये"
उसके बाद फिर से खुसुर पुसुर शुरू हो गई। हर आदमी एक नई कहानी सुना रहा था। कुछ लोग मातादीन की मौत पर खुश हो रहे थे तो कुछ लोग दुखी भी थे। मातादीन ने जिसके साथ जैसा व्यवहार किया वह व्यक्ति मातादीन को उसी आधार पर अच्छा या बुरा बताने में लगा हुआ था। महिला सिपाहियों के चेहरे खिले हुए थे। उन्हें मातादीन की मौत सुखद लग रही थी। उनके चेहरों से ही पता चल रहा था कि वे मातादीन से कितना डरती होंगी। यह देश की विडंबना है कि वर्दी के अंदर अपराधी बैठे हुए हैं। वह वर्दी चाहे खाकी हो, काली हो या सफेद। वर्दी उनके अपराधों को ढकने का काम करती है। यद्यपि सभी लोग एक जैसे नहीं होते लेकिन एक मछली सारे तालाब को गन्दा तो कर ही देती है ना" !
थोड़ी देर में हरेन्द्र भी आ गया। वह 24-25 साल का नवयुवक था। उसके चेहरे पर दृढ निश्चय, आत्म विश्वास और नैतिकता का प्रकाश चमक रहा था। सुगठित शरीर उसकी आभा में चार चांद लगा रहा था। उसके स्वभाव में कठोरता और वाणी में पैनापन था। एक वाक्य में ही उसके बारे में सब कुछ पता चल गया था राधेश्याम को
"हटो यहां से ! ये भीड़ क्यों लगा रखी है ? तुम लोग पुलिस के सिपाही हो या तमाशबीन ? यहां क्या कोई मदारी अपना खेल दिखा रहा है ? चलो , निकलो यहां से ! अपनी अपनी सीट पर जाकर बैठो और काम करो। जिसको बुलाया जाये , वही आये बस ! जिससे जितना पूछा जाये , उतना ही बताया जाये। न कम न ज्यादा ! समझ गये सब लोग" ?
सबने हां में गर्दन हिला दी और अपने अपने काम पर चले गये। तब हरेन्द्र ने राधेश्याम से कहा
"गोली की आवाज कब सुनाई दी थी" ?
"शाम के छः साढ़े छः बजे"।
"छः बजे या साढ़े छः बजे" ? हरेन्द्र ने घूर कर राधेश्याम को देखा "एक सब इंस्पेक्टर से इस प्रकार के जवाब की उम्मीद नहीं थी। जवाब बिल्कुल सही होना चाहिए। समझ गए ना ? चलो अब बताओ की गोली की आवाज कब सुनाई दी" ?
"जी, छः बजकर दस मिनट पर"
"तुम्हें कैसे पता कि तब छः बजकर दस मिनट हुए थे" ?
"जब गोली की आवाज सुनाई दी थी तब एक कॉल आई थी। कॉल टाइम के आधार पर में बता रहा हूं"
"गुड , वैरी गुड ! मुझे इसी तरह के जवाब पसन्द हैं। टू द पॉइंट। फिर तुमने क्या किया" ?
"मैं तुरंत गोली की आवाज की दिशा में दौड़ा। मेरे साथ कुछ सिपाही भी थे। आवाज मृतक के कमरे से आई थी इसलिए हम लोग यहां आ गये। जब दरवाजा खोला तो मातादीन जी मृत मिले। फिर मैंने एस पी साहब को सूचना दे दी"
"कमरे के अंदर कोई गया तो नहीं अभी" ?
"जी नहीं , अभी तक तो कोई नहीं गया है सर लेकिन अब जाना पड़ेगा"
"नहीं , पहले एफ एस एल की टीम को आ जाने दो। उसे फिंगरप्रिंट लेने होंगे तथा कुछ सैंपल भी लेगी वह टीम। इसलिए अपनी कार्यवाही बाद में करेंगे। मैंने चलते वक्त FSL की टीम को फोन कर दिया था , आने वाली ही होगी वह टीम"।
इतने में FSL की टीम भी आ गई। टीम ने जैसे ही कमरे के अंदर कदम रखा वैसे ही उसके मुंह से निकला
"ओह ! माई गॉड" !
कमरे के अंदर शराब की टूटी बोतलें चारों ओर बिखरी पड़ीं थीं और फर्श पर शराब फैली हुई थीं। सस्पेंड होने का समाचार सुनकर शायद मातादीन ने फ्रस्ट्रेशन में आकर शराब की बोतलें फेंक दी थीं। रिवॉल्वर उसके दांयें हाथ के पास ही पड़ा हुआ था। दांयी कनपटी पर गोली का निशान था जिसे देखने से पता चल रहा था कि गोली बहुत नजदीक से मारी गई है। FSL टीम ने रिवाल्वर से हाथों के निशान के नमूने लिये। शराब की टूटी बोतलों से भी हाथों के निशान के नमूने लिए। पैरों के निशान तो थे नहीं क्योंकि कमरे में चारों ओर शराब फैली हुई थी। हां, दीवारों और अन्य जगहों से भी निशानात लिये गये। रिवॉल्वर में अभी भी 5 गोलियां और बची थीं। उन सबको हरेंद्र ने अपने कब्जे में ले लिया।
कमरे की तलाशी ली गई तो अलग अलग जगहों से नोटों की गड्डियां मिलीं। उनको गिनने के लिए मशीन मंगवाई गई तब जाकर वे नोट गिने जा सके थे। पूरे 5 करोड़ 55 लाख रुपए निकले।
"इतने रुपए कहां से आए मातादीन के पास" ?
हरेंद्र के मन में विचार आया। जाहिर है कि वे नोट तनख्वाह के तो नहीं थे। आजकल तो तनख्वाह सीधे बैंक खाते में जमा होती है। इसका मतलब मातादीन रिश्वत लेता था ! इससे मातादीन का चरित्र उजागर हो गया। अब मातादीन की लाश का पोस्टमार्टम करवाना बाकी था। पोस्टमार्टम के लिए एक मेडिकल बोर्ड का गठन करवाया गया और उस बोर्ड ने मातादीन की लाश का पोस्टमार्टम किया। प्रथम दृष्टया मौत का कारण नजदीक से गोली मारना लग रहा था।
मातादीन के घरवालों को सूचना दे दी गई। वे आकर उसकी लाश को ले गये। हरेन्द्र ने अपना काम शुरू कर दिया।
सबसे पहले तो उसने थाने में तैनात स्टाफ के बयान लिये। सभी ने अपने बयानों में एक बात कही कि मातादीन अच्छा आदमी नहीं था। वह लालची , क्रूर , चरित्रहीन और दुष्ट प्रवृत्ति का था। कंचन और कामिनी उसकी कमजोरी थे।
हरेंद्र ने वे दोनों वीडियो फिर से देखे जो वायरल हो गये थे। एक वीडियो में मातादीन एक व्यक्ति को डंडे से बुरी तरह मार रहा था जैसे कोई धोबी डंडे से कपड़े धोता है। दूसरे वीडियो में मातादीन एक औरत के कपड़े जबरन उतार रहा था। वह औरत बचने की चेष्टा कर रही थी लेकिन मातादीन पर जैसे भूत सवार हो गया हो। हरेंद्र ने पहले कार वाले व्यक्ति को बुलवाया और उससे बड़े प्रेम से प्रश्न किया
"क्या बात हुई" ?
"मैं जा रहा था। सामने से एक मोटरसाइकिल वाले ने मेरी कार में मोटरसाइकिल ठोक दी। हम दोनों में झगड़ा हुआ। पुलिस वहां मौके पर आई और हमें यहां लाकर बंद कर दिया। थानेदार जी ने बिना बात हमारी ऐसी पिटाई की कि अब हम सौगंध खाकर कहते हैं कि हम अब कभी भी कार नहीं चलायेंगे"। कहते कहते वह जोर जोर से रोने लगा।
हरेंद्र ने उससे माफी मांगते हुए कहा "आपके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया गया इसके लिए मैं आपसे क्षमा चाहता हूं। मातादीन ने आपके साथ बहुत ग़लत बर्ताव किया था इसीलिए एस पी साहब ने उसे सस्पेंड कर दिया था। पर एक बात बताओ , क्या वह वीडियो आपने बनाया था" ?
"मैं वीडियो कैसे बनाता सर ? मातादीन तो मेरी बुरी तरह धुनाई कर रहा था"
"फिर किसने बनाया" ?
"मुझे नहीं पता सर"।
"अच्छा , ठीक है"।
फिर वह राधेश्याम सब इंस्पेक्टर से बोला "उस मोटरसाइकिल वाले को भी बुलवाओ"
"यस सर"। राधेश्याम ने एक सिपाही भेजकर जावेद को बुलवा लिया। हरेंद्र उससे पूछने लगा
"क्या घटना घटी थी तुम्हारे साथ" ?
"हुजूर ! हम मोटरसाइकिल से जा रहे थे। सामने से एक गाड़ी आई। ये गाड़ी वाले हम छोटे इंसानों को इंसान मानते ही नहीं हैं। कार वाले ने हमारी मोटरसाइकिल पर अपनी कार चढ़ा दी। अल्लाह के रहम से हम बच गए वरना ये तो हमारी जान का दुश्मन ही बन गया था"
"बस, यही बात थी या कुछ और भी थी" ?
"बात तो इतनी सी ही थी हुजूर ! हम गिर पड़े थे तो हमें गुस्सा आ गया। हमने इन्हें दो चार छंद अलंकार सुना दिए। फिर इन्होंने ने हमें सुना दिए। किसी ने पुलिस को फोन कर दिया। पुलिस आई और हम दोनों को पकड़ कर यहां ले आई"।
दोनों की बातें सुनकर हरेन्द्र ने राधेश्याम से कहा "दोनों को छोड़ दो। इतनी सी बात पर इतनी पिटाई" ? फिर उसने दोनों से कहा "छोटी छोटी बातों पर उलझना नहीं चाहिए। झगड़ा करने से क्या मिला ? गालियां और लात घूंसे ? और हां , गाड़ी संभलकर चलाया करो समझे" ?
"जी हुजूर ! मैं तो समझ गया। ये समझे या नहीं , पता नहीं"। जावेद जाते जाते बोला। कार वाले ने भी हरेन्द्र को "थैंक यू" बोला और चला गया।
अब बारी राधा की थी। हरेंद्र ने राधेश्याम से पूछा "इसे क्यों बंद कर रखा है" ?
"सर, अभी दो तीन दिन पहले बिठूर के कचरा डंपिंग यार्ड में एक व्यक्ति की लाश मिली थी। उस लाश को कुत्तों ने नोंच खाया था इसलिए उसे पहचानना मुश्किल था। उसी कचरे के ढेर से एक मोबाइल और जूते भी मिले थे। मोबाइल और जूतों के आधार पर उस लाश को इस औरत के पति किशन की मान लिया गया। किशन एक बैंक में गार्ड का काम करता था। उस रात घर से निकलने के बाद यह ड्यूटी पर नहीं पहुंचा था। उधर यह राधा भी उस रात कानपुर शहर में आ गई। मोबाइल से इसकी लोकेशन कानपुर शहर की मिल रही थी। जब कॉल डिटेल्स मंगवाई गई तब पता चला कि यह एक लड़का जिसका नाम कैलाश है से बहुत देर तक बातें करती थी। तो ये माना गया कि वह इसका प्रेमी होगा और दोनों ने मिलकर किशन की हत्या कर दी होगी। बस, इसी शक के आधार पर इसे गिरफ्तार कर लिया लेकिन इसने अपना अपराध क़ुबूल नहीं किया"
"जो अपराध इसने किया ही नहीं वह कुबूल क्यों करेगी" ? इस पर राधेश्याम हरेन्द्र को ताकता ही रह गया। उसके मुंह से अचानक निकल गया
"ये आप इतने विश्वास से कैसे कह सकते हैं , सर" ?
"वैरी सिम्पल ! इसका वह वीडियो देखा तुमने ? मातादीन ने इसकी इतनी पिटाई की कि इसे पूरा सुजा दिया लेकिन इसने उसकी गलत मांग के सामने समर्पण नहीं किया। यदि यह औरत चरित्रहीन होती तो इतनी पिटाई नहीं झेल पाती। बहुत पहले ही सरेंडर कर देती। लेकिन इसने ऐसा नहीं किया क्योंकि यह एक उच्च चरित्र की स्त्री है। ऐसी स्त्रियां अपने पति की पूजा करतीं हैं, उनकी हत्या नहीं करतीं , समझे तुम" ?
"आप कहते हैं तो मान लेता हूं। पर एक बात और है कि यह ड्रग्स का अवैध धंधा भी करती है"।
राधेश्याम की बात पर हरेन्द्र खूब जोर से हंसा। "अरे राधेश्याम जी , आप भी कैसी बातें करते हैं ? ये औरत ड्रग्स का धंधा नहीं कर सकती है , ये मेरी गारंटी है"।
"सर , इसके घर से माल भी बरामद हुआ है"।
इस बार हरेन्द्र हंसा नहीं बल्कि धीरे से बोला "माल इसके घर में पहले रखवाया गया था और फिर बरामद करवाया गया था"
"क्या ? ये आप कैसे कह सकते हैं सर" ?
"जब यह औरत थाने में अपने पति के घर नहीं आने की रिपोर्ट लिखवाने आई थी तभी इसकी सुंदरता को देखकर मातादीन की वासना जाग गई। मातादीन ने ही किशन की हत्या इसके और इसके तथाकथित प्रेमी द्वारा करने की थ्यौरी गढ़ी थी। उसी ने इसके घर में ड्रग्स रखवाये थे और इसको डराने धमकाने के लिए इसके घर से ड्रग्स बरामद किए थे। मेरी निगाह में यह निर्दोष है"।
राधेश्याम आश्चर्य से हरेन्द्र को देखने लगा।
"अब ऐसा करो ! इस राधा को भी छोड़ दो। इसने कोई अपराध नहीं किया है। यह तो बेचारी खुद पीड़िता है, ये क्या अपराध करेगी" ?
राधेश्याम ने राधा को छोड़ दिया। राधा हरेन्द्र के चरणों में लेट गई "हुजूर ! आपका शुक्रिया मैं कैसे अदा करूं ? आप युग युग जीवें। आपका घर संसार हमेशा भरा रहे। आप सदैव खुश रहें, फलें फूलें और मौज करें"। राधा अपने घर चली गई।
