Vinita Rahurikar

Romance Action

2.7  

Vinita Rahurikar

Romance Action

फौजी की पत्नी

फौजी की पत्नी

12 mins
3.9K


दुःख के दिन जेठ की दोपहरी जैसे होते हैं। लम्बे, उबाऊ और त्रासदायक, जो खत्म होने में ही नहीं आते हैं और सुख के दिन थकान के बाद की रात की तरह होते हैं जो कब गहरी नींद में गुज़र जाती है पता ही नहीं चलता। परम की छुट्टियाँ खत्म होने में आ गयीं थीं और उसका वापस ड्यूटी पर जाने का समय आ गया था। गैस पर चाय का पानी उबल रहा था और वैसा ही उबाल तनु के मन में भावनाओं का उठ रहा था। दिल में एक धड़का सा बैठ गया था। सीमा पर नित नये बवाल खड़े हो रहे थे। फौजियों की छुट्टियां रद्द हो गयी थीं। परम भी तो पूरे सात-आठ महीने बाद इस बार घर आ पाया था। वो भी बस चन्द ही दिनों के लिए। पिछले आठ महीनों से वह लगातार सर्च ऑपरेशन पर ही आतंकवादियों की धर पकड़ में जंगल-जंगल और खतरनाक इलाकों में घूमता रहा है। महीनों से वह एक दिन भी चैन से नहीं बैठ पाया है। आगे अचानक पता नहीं क्या इमरजेंसी आ जाये इसलिए उसे कुछ दिनों की छुट्टी दी गयी थी। फिर पता नहीं कब......

परम का मन भी अंदर से जाने कैसा होता रहता था। तनु को छोड़कर ड्यूटी पर वापस जाना उसकी जान पर बन आ रहा था लेकिन ड्यूटी तो ड्यूटी है। हर हाल में निभानी पड़ेगी। और फिर वो ठहरा पैरा कमांडो। उसके कन्धों पर तो अतिरिक्त जिम्मेदारी है। वह तनु को खुश रखने का प्रयत्न कर रहा था ताकि उसके साथ मिले ये चन्द दिन प्यार और सुकून से कट जाएं लेकिन वह देखता कि तनु की आँखें बार-बार भर आती। वह मुहँ दूसरी ओर करके चुपचाप आँसू पोंछ लेती। परम के सीने में मरोड़ सी उठती। पन्द्रह दिन की छुट्टी में से दस दिन बीत चुके थे। ड्यूटी पर उसके लिए रात-दिन बराबर थे और यहाँ आकर भी उसकी आँखों में नींद नहीं थी। वह रात भर जागकर तनु के सर पर हाथ फेरता उसे देखता रहता। पता नहीं यहाँ से वापस जाने के बाद कितने महीनों तक उसे दुबारा देख नहीं पायेगा। देख भी पायेगा या नहीं, ये भी नहीं पता। और उसके दिल में बुरी तरह से एक हौल उठता, आँखें भर आतीं। कब किस जंगल में सर्च ऑपरेशन के समय वह मिलिटेंट्स की गोली का निशाना बनकर अख़बारों और न्यूज़ चैनलों की सुर्ख़ियों में ही बाकी रह जाये.....

आँखों से बहते आँसू वह चुपचाप पोंछ लेता। कमांडो है तो क्या हुआ, एक पति भी तो है जो अपनी पत्नी से जान से ज्यादा प्यार करता है। थोड़े दिनों की छुट्टी में भी उसे घर की चिंता सताती। सब ठीक है कि नहीं। घर में जरूरत का सामान है या नहीं। उसके चले जाने के बाद तनु को परेशान न होना पड़े। हर सम्भव वह तनु को हंसाने की कोशिश करता रहता। माहौल सामान्य बनाये रखने का प्रयत्न करता। तनु का भी चेहरा सामान्य रहता। वह अपने पति के साथ दिन भर हँसी-ख़ुशी रहती। लेकिन दिल अंदर से बुरी तरह धड़कता रहता। घड़ी के कांटे को आगे बढ़ते देख तनु का मन करता काँटों को बाँधकर समय को हमेशा के लिए रोक ले। हर क्षण उसके मन की विव्हलता बढ़ती जाती। मिलन के क्षण हर पल के साथ कम होते जा रहे हैं। 

जब भी परम के फ़ोन की घण्टी बजती उसके चेहरे पर तनाव घिर आता और तनु का दिल आशंका से धड़क उठता। कहीं किसी इमरजेंसी के कारण वापस तो नहीं बुला रहे। पति से मिलन के समय में ख़ुशी के साथ ही एक फौजी की पत्नी के मन में आशंका की तलवार भी सर पर सवार रहती है।

तनु ने घर पर अख़बार मंगवाना भी बन्द कर दिया था। टीवी पर न्यूज़ भी वह नहीं देखती। क्या फायदा बुरी खबरें देखकर मन और दुखी होता रहता। जब भी समय मिलता परम फोन पर अपनी आवाज सुनाकर उसे आश्वस्त कर देता। एक बार बात हो जाने पर वह दुबारा बात होने के इंतज़ार में अपना समय काटती। कभी परम बस इतना भर बोल पाता कि- 'तनु मैं ठीक हूँ, तू मेरी चिंता मत करना। काम थोड़ा ज्यादा है कल बात करता हूँ।'

और एक फौजी की पत्नी समझ जाती कि कौनसा काम। अर्थात आज भी कहीं घुसपैठ की आशंका, आज भी दिन भर और रात भर जंगलों और पुराने घरों में छिपे मिलिटेंट्स के साथ मुठभेड़, गोलीबारी, बमबारी और ..... 

तनु की साँस सूली पर टँग जाती। कान एक व्यग्र प्रतीक्षा में लग जाते कि कब फोन आये और परम बस इतना बोल दे कि 'तनु मैं ठीक हूँ।' गले से निवाला तो क्या पानी का घूंट भी नीचे नहीं उतर पाता। 

एक बार दो दिन तक परम का फोन नहीं आया था। तीसरे दिन रात के ढाई बजे परम को मौका मिला उसे फोन करने का। उसके ठीक होने की खबर के साथ ही पता चला दो दिन से जंगलों में घुसपैठियों का पीछा करते हुए उसने खाना भी नहीं खाया। रात के ढाई बजे दुश्मनों को मारने के बाद जंगल में लकड़ियाँ इकठ्ठा करके उन्हें जलाकर एक बर्तन में वे लोग साथ लाये नूडल्स उबालकर खा रहे हैं। परम और उसके चार साथी कमांडों। तनु का जी भर आया। गले में कुछ अटक गया। तीसरे दिन शाम को जब पूरा जंगल अच्छे से छानकर सभी दुश्मनों को खत्म करके परम ने यूनिट में जाकर खाना खाया तब तनु के गले से रोटी नीचे उतरी।

"अरे ये आप क्या कर रहे हैं ?" परम को रसोईघर में कुछ काम करते देखकर तनु ने पूछा। वह अभी ही नहाकर निकली थी।

"पनीर की सब्जी बना रहा हूँ।"परम ने जवाब दिया।

"आप बैठिये न मैं बनाती हूँ।" तनु ने प्यार से कहा। 

"तू रोटी बना आज सब्जी मैं अपने हाथ से बनाकर खिलाता हूँ।" परम प्याज, टमाटर काटते हुए बोला।

तनु ने देखा कितना खुश लग रहा था परम रसोई का काम करते हुए। हमेशा ग्रेनेड और बन्दूक थामकर रखने को मजबूर हाथ आज अपनी पत्नी के लिए खाना बना रहे हैं। काश ये खुशियों के, सुकून के, खिलखिलाहटों के पल यहीं थम जाएँ और हमेशा बने रहें।

क्यों कुछ लोग चैन से रहना नहीं चाहते और अपनी महत्वाकांक्षाओं की आग में बसे हुए घरों को स्वाहा करते रहते हैं।

परम की छुट्टी के पन्द्रह दिन भी बीत ही गए। आज रात वह वापस जाने वाला था। तनु नहाने गयी तो बहते पानी के नीचे देर तक आँसू भी बहाती रही। सीने में अजीब सा कुछ दर्द हो रहा था। परम के सामने रोकर वह उसे कमजोर नहीं करना चाहती थी इसलिए शॉवर के नीचे ही अपने मन का गुबार निकाल रही थी।

रात जब जाने के लिए ड्राईवर ने कार निकाल ली परम को बस स्टैंड तक छोड़ने के लिए तो अंदर तनु से फिर अपने आपको संभाला नहीं गया। वह परम के कन्धे से लगकर सिसक पड़ी।

"मत जाओ मुझे छोड़कर।"

"ऐ पगली ! तू तो हमेशा मुझे हिम्मत बंधाती रहती है। तू ही ऐसे कमजोर पड़ जायेगी तो मेरा क्या होगा।" परम उसके सर पर हाथ फेरता हुआ बोला।

"मैं कैसे रहूंगी अब आपके बिना ? आजकल तो एक पल के लिए भी चैन नहीं मिलता। हर पल एक डर लगा रहता है।" तनु बिलखते हुए बोली।

" मेरे लिए रहना क्या आसान होगा तुम्हारे बिना ? बस कुछ ही महीनों की तो बात है। सरहद पर और सीमा के आसपास के इलाकों में शांति हो जाये फिर मैं तुम्हे भी अपने साथ ले चलूँगा या अपनी पोस्टिंग यहाँ करवाने की कोशिश करूँगा। अपने कमांडो पर भरोसा रखो। तुम्हारा प्यार और साथ है न मेरे पास, विश्वास रखो मुझे कुछ नहीं होगा।" परम उसे गले लगाते हुए बोला।

तनु की आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे।

" ऐ तनु लिपस्टिक लगाकर आ न।" अचानक परम बोला।

"क्यों?" तनु आश्चर्य से बोली।

" जा न बाबा लगाकर आ।" परम आग्रह से बोला।

तनु जाकर लिपस्टिक लगाकर आयी।

" इस पर अपने होंठों के निशान दे न" परम ने अपना मोबाइल तनु के चेहरे के सामने कर दिया।

तनु ने अपने होंठ मोबाइल के कवर पर रख दिए। उसके लाल होंठ सफेद कवर पर छप गए। अब आगे कुछ महीनो के लिए यही स्मृति परम का आधार बनी रहेगी। दोनों ने भगवान को प्रणाम किया। परम ने तनु की मांग में सिंदूर भरा। एक नज़र भर उसे देखा। मन में पीड़ा की एक लकीर कौंधी। और एक भयावह विचार आया जिसे उसने बलपूर्वक उसी समय झटक दिया। तनु का हाथ थामकर वह बाहर आया। पैर मन भर भारी हो रहे थे। जैसे-तैसे ताला लगाया और एक नज़र घर को देखा। क्या पता फिर देखना नसीब हो या न हो। किस बार का जाना आखरी बार का हो जाये, एक कमांडो के लिए इस बात का कोई भरोसा नहीं होता।

बस में चढ़ने से पहले परम ने तनु को समझाया- 

" अपना ध्यान रखना। और देख रोना बिलकुल नहीं। वरना वहाँ मेरे लिए ड्यूटी निभाना बहुत मुश्किल हो जायेगा। हर पल मन तुझमे ही अटका रहता है।" 

"आप मेरी चिंता बिलकुल मत करिये। आप बस अपना ध्यान रखना जी और जल्दी वापस आना।" तनु रोते हुए बोली।

बस निकलने का समय हो गया था। परम ने बैग उठाया, नज़र भर तनु को देखा, उसे गले लगाया और पलटकर तेज़ी से बस में चढ़ गया। अगर वो एक क्षण भी और तनु के पास खड़ा रहता तो जा नहीं पाता। 

"अपना ध्यान रखना तनु" परम ने दरवाजे पर खड़े होकर कहा और हाथ हिलाकर उससे विदा ली।

तनु भी उसे विदा करने लगी। बस धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगी। आँसुओं के बीच धुंधली होती हुई परम की बस आखिर में ओझल हो गयी। 

तनु आकर कार में बैठ गयी। सर बुरी तरह सुन्न हो रहा था। फौजी की पत्नी के जीवन का यह क्षण सबसे कठिन होता है। ऐसा लगता है जैसे किसी ने हृदय शरीर से बाहर निकालकर निचोड़ दिया है। कब घर आया, कब उसने ताला खोला पता नहीं। ड्राईवर गाड़ी रखकर अपने घर चला गया। नीचे के सारे दरवाजे बन्द करके वह ऊपर आ गयी।

कमरे में पैर रखते ही तनु के दिल में एक हौल बहुत गहरे तक उतर गया। खाली घर, खाली कमरा, खाली पलंग। कटे पेड़ सी वह पलंग पर गिर पड़ी। आँखों से आँसुओं की धाराएँ बह रही थी। सर घूम रहा था। दिल में अजीब सा दर्द हो रहा था।

परम के बिना खाली घर।

परम के बिना खाली कमरा।

परम के बिना सूना बिस्तर

परम के बिना खाली-खाली मन और जीवन।

इधर परम की बस सड़क पर आगे बढ़ती जा रही थी और उसके दिल में तनु से दूर होने का अहसास भी बड़ी तेज़ी से गहराता जा रहा था। हर पल उसका मन कर रहा था कि उतर कर वापस चला जाये। बैचेनी में उसका हाथ दिल पर चला गया। देखा टी शर्ट की जेब पर तनु की लिपस्टिक का निशान था। आते हुए जब तनु को गले लगाया था तब शायद लग गया होगा। बहुत रोकने पर भी उसकी आँखों से आँसू बह निकले। उसने जल्दी से खिड़की से बाहर देखने के बहाने अपने आँसू पोंछे।

मन में एक बार फिर खयाल आया कि बस रुकवाकर उतर जाये। जाकर अपने घर में, अपने पलंग पर सो जाये।

तनु के साथ।

लेकिन पिछले ग्यारह-बारह सालोँ की नौकरी में उसके रिकॉर्ड में एक भी लाल निशान नहीं था। अब भी वह नहीं चाहता था कि ऐसा कुछ हो। उसके अंदर एक पति और एक फौजी के बीच जबरदस्त जंग चल रही थी।

एक तरफ पत्नी का प्यार था।

एक तरफ देश के प्रति कर्तव्य भावना। इस समय दोनों ही भावनाएं पल-पल में एक दूसरे पर हावी हो रहीं थीं। दोनों का ही आवेग उससे सम्भाला नहीं जा रहा था। उसने अपनी जेब से मोबाईल बाहर निकाला। उसके कवर पर तनु के होंठ छपे थे। परम ने उसपर अपने होंठ रख दिए। बस शहर के बाहर निकल चुकी थी। उसने सोचा तनु अब घर पहुँच गयी होगी। परम ने उसे फोन लगाया।

तनु पलंग से पीठ टिकाकर बैठी थी। उसका पलंग पर लेटने का भी मन नहीं कर रहा था। तभी परम का फोन आया। तनु ने फोन उठाया। परम की आवाज सुनते ही तनु को जोर से रुलाई आ गयी। 

"ऐ मेरी जान।" परम विचलित होकर बोला "तुम ऐसी कमजोर पड़ जाओगी तो मुझे कौन हिम्मत बंधायेगा। ये दिन भी निकल जायेंगे। तुम तो इतनी हिम्मती हो। हमेशा ही तुमने मेरा साथ दिया है, मुझे सहारा दिया है। तुम्हारे मनोबल के कारण ही मैं देश के प्रति अपने कर्तव्य को पूरी निष्ठा से निभा पाता हूँ।" 

तनु हमेशा ही मजबूत और खुश रहकर परम को अपनी चिंता से मुक्त रखती थी। अंदर वह चाहे कितनी भी तनाव में रहती हो लेकिन वह कभी इस बात का साया या भनक भी परम को लगने नहीं देती थी ताकि वह उसकी तरफ से पूरी तरह से निश्चिन्त रहकर सिर्फ और सिर्फ देश के प्रति अपने कर्तव्य को निष्ठापूर्वक निभा सके। वह जानती थी, उसका पति एक कमांडो है। उसकी जिम्मेदारियां अत्यंत कठिन और महत्वपूर्ण हैं। वह अपने आपको कमजोर करके परम को भावनात्मक स्तर पर निर्बल नहीं करना चाहती थी। इसलिए हर अच्छी-बुरी परिस्थिति में वह अपने को स्थिर रखती थी। वह सच्चे और कर्मठ फौजी की पत्नी थी।

लेकिन अब हालात ऐसे हो गए थे कि हर पल तनु के मन को एक डर सताता रहता था। आजकल उसका मन बड़ा कच्चा सा हो गया था। हर समय मन में एक आशंका सर उठाये रहती थी। फिर भी जैसे-तैसे अपने को संयत करके बोली- 

" आप मेरी चिंता मत करिये जी मैं ठीक हूँ।"

"चल लाईट बन्द करके सो जा। मैं पूरी रात तुझसे बातें करता रहूंगा। यही समझना कि तुम्हारे साथ ही हूँ।" परम प्यार से बोला।

तनु ने लाईट बन्द कर दी और आँखें बन्द करके लेट गयी। परम सारी रात तनु से बात करता रहा। दोनों के ही पास सिर्फ एक दूसरे की आवाजों का ही तो सहारा था अब। दिल को थोड़ी तसल्ली रही। अब अगली बार मिलने तक बस एक दूसरे की आवाज सुनकर ही खुद को बहलाये रखना होगा।

परम को ड्यूटी पर गए आठ दिन हो गए। उसके साथ छुट्टी पर बिताये पन्द्रह दिन तनु को सपने जैसे लग रहे थे। जीवन में फिर वही सन्नाटा, खालीपन, और इंतज़ार कि कब दुबारा मिलन हो। ये सब तो शायद फौजी की पत्नी को विवाह के गठबंधन में ही बांध देता है विधाता। फौजी तो एक ही सरहद पर ड्यूटी देता है लेकिन फौजी की पत्नी रात-दिन डर, आशंकाओं, विकलताओं, अकेलेपन, असुरक्षा, खालीपन की न जाने कितनी ही सरहदों पर रोज़ अनगिनत जंग लड़ती है और तब भी अपने अंदर चल रही सारी जंग को छुपाकर अपने पति को ढाढ़स बंधाती रहती है ताकि वह देश के प्रति अपने कर्तव्य को भलीभांति निभा सके।

तनु भी परम से फोन पर बात हो जाती है तो चैन की साँस लेती है और फोन रखते ही फिर से बात होने तक भावनाओं के न जाने कितने सागरों में डूबती-उतराती रहती।

आज सुबह ही परम ने बताया था जरूरी काम से बाहर जा रहा हूँ। दिन में फोन नहीं कर पाउँगा। शाम को वापस आते ही बात करूँगा। दिन तो जैसे-तैसे कट गया लेकिन चार बजे के बाद से साढ़े छः बजे तक तनु की साँस सीने में अटकी रही। गले में कुछ फ़ंसा हुआ था। अंतर में एक अकुलाहट रही। पचासों बार फोन उठाकर देखा, लगाया, हर बार स्विच ऑफ़। सात बजे तक वह क्षण भर भी चैन से बैठ नहीं पायी। छाती में साँस घुट सी रही थी। यह हर दूसरे रोज़ की कहानी थी। तभी मोबाईल की रिंग बजी। परम का फोन था। उसकी आवाज सुनते ही तनु की आँखे छलछला आयी और उसे लगा न जाने कितने दिनों बाद उसने चैन की साँस ली है। यह चैन अभी तो है, कितने घण्टों तक बरकरार रह पायेगा, अगले ही पल क्या होगा, वह फौजी की पत्नी नहीं जानती।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Romance