प्लेन में मनाया रक्षाबंधन
प्लेन में मनाया रक्षाबंधन


मैं 9 साल की थी और भैया 12 साल का। पिताजी तब नाइजीरिया के एक शहर में गणित के प्राध्यापक थे। वहां पर कॉलेज की छुट्टियां लगने पर हम सब यानी पिताजी, मां, भैया और मैं भारत आ रहे थे दादा दादी से मिलने। हम वापस आते हुए लंदन, रोम आदि देशों में घूमते हुए आ रहे थे। रोम से जब फ्लाइट में बैठे तब मैं बहुत थकी हुई थी। प्लेन में बैठते ही सो गई। बहुत लंबी फ्लाइट थी। कुछ देर बाद अचानक माँ ने उठाया 'उठ नीतू आज रक्षाबंधन है भैया को राखी बांध दे।" आँख खोलकर देखा की एक छोटी सी थाली में कुमकुम और रेशम के धागों से बनी छोटी सी राखी रखी थी। जो माँ ने पहले ही बना कर रखी थी। मैं खुश हो गई। फटाफट भैया के माथे पर तिलक लगाया और हाथ पर राखी बांधी। मिठाई तो थी नहीं अतः चॉकलेट से ही मुंह मीठा करवाया। पिताजी ने भैया को एक गुड़िया मुझे उपहार में देने को दी जो उन्होंने रोम में चुपचाप मेरे लिए खरीद ली थी। गुड़िया पाकर मैं खुशी से फूली नहीं समाई।
बगल की सीट पर बैठी एक विदेशी महिला बड़े कौतूहल से सारी गतिविधियां देख रही थी। उन्होंने माँ से पूछा कि यह सब क्या है। माँ ने उन्हें रक्षाबंधन के त्यौहार और महत्व के बारे में और यह क्यों मनाया जाता है और कब मनाया जाता है सारी बातें विस्तार से बताई। तब उन्होंने भी इच्छा प्रकट की कि वह भी अपनी बेटी के हाथों बेटे को राखी बंधवाना चाहती है। तब माँ ने उन्हें कुमकुम और रेशम के धागे दिए और विधि बताते हुए उनके बेटे के हाथ पर राखी बंधवाई। इस त्यौहार के बारे में जानकर वे अत्यंत प्रसन्न हुई और बोली कि अब मैं हर साल यह त्यौहार मनाया करूंगी।
आज भी जब भैया की कलाई पर राखी बांधती हूं तब प्लेन में बनाई हुई उस राखी की यादें ताजा हो जाती हैं आज भी वह गुड़िया मैंने संभाल कर रखी है।