अमर प्रेम
अमर प्रेम


नर्स ने दोनों को इंजेक्शन दिया और दो मिनट तक उनकी गिरती हालत को देखती रही। दोनों वेंटीलेटर पर थे और अब बचने की कोई आशा नहीं थी। नर्स की आँखों मे आँसू आ गए।
महीने भर बाद उनका विवाह होना था। लेकिन तभी वैश्विक आपदा के रूप में यह महामारी कहर बनकर टूट पड़ी। ऐसे में अपनी निजी खुशियों को परे रख वे रात दिन मरीजों को बचाने के लिए इस बीमारी से जूझते रहे। दो महीने तक वे दोनों लगातार मरीजों की सेवा में जुटे रहे। न दिन देखा न रात। जितने लोगों को बचा सकते थे बचाया। ठीक होकर जाने वाले मरीज उन्हें भगवान का रूप कहते।
अस्पताल ही उनका घर बन गया और मरीज उनके आत्मीय स्वजन, स्टाफ ही उनका परिवार।
साथ काम करते हुए भी बस आते-जाते एकदूसरे को देखकर आँखों ही आँखों मे सांत्वना दे देते "चिंता मत करो हम सदा साथ मे रहेंगे। हमारा प्यार अमर है। कुछ ही दिन की परेशानी है फिर तो हमेशा के लिए...."
और पता नहीं कब, किस मरीज का इंफेक्शन उन्हें लग गया और दोनों ही एक साथ इस वार्ड में अगल-बगल मौत से संघर्ष कर रहे हैं आठ दिन से।
अचानक मॉनिटर पर बीप की आवाज बन्द हो गई। टेढ़ी-मेढ़ी होती लकीर सीधी हो गई।
नर्स की आँखों से आँसू बहने लगे। सामने खिड़की पर सूरज ढल रहा था। नर्स को लगा दोनों देवदूत जैसे ढलती साँझ के सुनहरी रथ पर सवार अपने घर जा रहे हैं। मानवता के इतिहास में उनका नाम भी स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा।
"आपका दोनों का प्यार सचमुच अमर है डॉक्टर आपस में भी और मानवता के प्रति भी।" बहते आंसुओं के बीच वह मुस्कुराकर बोली।