फैसला

फैसला

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गुंजा आज हॉस्पिटल आई है, पति के साथ सोनोग्राफी करवाने, दो बेटियाँ हैं उसकी और घरवाले चाहते हैं कि अबकी बार बेटे का जन्म हो। बहुत टेंशन में है वह, कहीं इस बार भी लड़की हुई तो सबके ताने उसका जीना दुश्वार कर देंगे।

सोनोग्राफी हुई और डॉक्टर ने तुरन्त रिपोर्ट भी दे दी बेटी है, अब खूब खुश रहिए और अच्छा हेल्थी भोजन लीजिए ताकि बेबी बढ़िया स्वस्थ रहे। उसने पति आकाश का चेहरा देखा, वहाँ खुशी की कोई चमक नहीं दिखी। कैसे कैसे कोई अपने बच्चे के लिए ही नाखुश हो सकता है। घर लौटते आकाश ने कहा "तुम अबॉर्शन करवा लो ये बच्चा हमे नहीं चाहिए।"

"पर क्यो "

मुझे बेटा चाहिए "

"तो क्या बेटे की आस में बेटी की हत्या कर दें "

"मुझे बेटा चाहिए "

"लेकिन अब यदि बेटी है मेरी कोख में तो।"

"आलरेडी दो बेटियाँ हैं हमारी "

"फिर और बच्चे की सोची क्यो तुमने "

मैंने सोचा इस बार लड़का होगा "

"तो जब तक लड़का ना हो और कोख में लड़कियाँ आएं क्या सबको मार दोगे तुम "

इसी बहस में घर पहुँच गए दोनों, दोनों का उतरा चेहरा देख घर वाले माजरा समझ गए सब। किसी ने कुछ नहीं पूछा।

दो दिन बाद आकाश हॉस्पिटल अबॉर्शन कराने जाने को कहने लगा गुंजा से। गूंजा ने साफ मना कर दिया कि अब वह बच्चे को जन्म देगी और अपने सभी बच्चों की अच्छी परवरिश भी करेगी। सास ससुर ने कुछ नहीं कहा, उनकी ओर से गुंजा को डर था पर उन्हें लगा जो भी भगवान देगा सब अच्छा ही होगा।

नियत समय पर बेटी का जन्म हुआ, गुंजा उसका सुन्दर मुख देख बहुत खुश थी।

आकाश की भी नाराज़गी दूर हो गई थी, तीनों बेटियाँ सबकी आँखों का तारा थीं, सोने पर सुहागा तब हुआ जब गुंजा ने उन्हें खूब पढ़ाया लिखाया, बड़ी बेटी रोशनी इंजीनियर बनी, मझली बेटी रागिनी डॉक्टर और सबसे छोटी बेटी रितिका ने आई ए एस की परीक्षा पास कर ली और कलेक्टर बन गई, आज वह अपने शहर वापिस आ रही है, सभी उसके स्वागत के लिए खड़े हैं, बड़ी सी गाड़ी आकर रुकती है और उसमे से रितिका जितनी खूबसूरत उतनी ही नम्र , उतरती है और सबके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेती है, आकाश की आँखों से आँसू बहने लगते हैं तो वह कहती है "आप सब लोगो के आशीर्वाद का फल है जो मैं आज यहाँ तक पहुँच पाई।"

आकाश गुंजा की ओर देखने लगते हैं "तुम्हारा एक सही फैसला हम सभी के लिए आज गर्व का विषय हो गया , आज उसके कारण ही हम ये दिन देख पा रहे हैं।"

दादा ,दादी रिश्तेदार सभी बहुत खुश हैं ,और उनकी बधाइयों के बीच गुंजा अपनी बेटियों को गर्व से अपनी बाँहो में भर लेती है, बेटियाँ बोझ नहीं, गर्व हैं हमारा।



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