फैलोशिप की यात्रा

फैलोशिप की यात्रा

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फैलोशिप की प्रथम वर्ष की यात्रा के दोरान शिक्षा से संबन्धित बहुत कुछ सुनने व पढ़ने को मिला । डेवी ,जॉन हॉल्ट ,कमला मुकुन्द ,गिजू भाई .....और भी कई सारे नाम हैं ,शिक्षा से जुड़ी हुई पत्रिकाएँ ,लेख और साथियों से इन पर विमर्श । शिक्षा पर एक स्तर की समझ बननी शुरू हुई है उसको इन सबके साथ ठोस आधार मिला नियमित स्कूल प्रैक्टिस से। जब बच्चो के साथ सीखने –सिखाने की प्रक्रिया में खुद उतरकर देखा , कक्षा –कक्ष से जुड़े सवालों से होकर गुजरना हुआ , एकल -शिक्षक को 5 कक्षाओं को एक साथ लेकर चलना ,बच्चो के परिवेश ,सरकारी तंत्र में शिक्षा का सामजस्य .....

कुछ चीजों को दूर से जाना ही नहीं जा सकता है ऐसे ही स्कूल को समझने के लिए बिना कक्षा में प्रवेश किए सब बनावटी ही है।

मेरा स्कूल प्रैक्टिस के लिए चुना हुआ स्कूल प्राथमिक विद्यालय,कंजरिया जो डुंगुरपुर से 22 किमी दूर है , दो कक्षा- कक्ष ,जिसमे से एक आँगनवाड़ी के किए और एक भंडारण – संग –ऑफिस कक्ष ,चारों तरफ से खेतो से घिरा ,खेलने के मैदान से वंचित ,एक खेत में से छोटी सी पगडंडी स्कूल तक पहुँचती है ,मुख्य सड़क से लगभग 3 किमी अंदर की तरफ । एक शिक्षिका और 42 बच्चे।

शुरुआत में बच्चो की रहस्यमयी चुप्पी को तोड़ने में वक्त लगा , वो मेरे साथ बाल –गीत गाते ,खेलते पर फिर जो एक तारम्यता होनी चाहिए थी ,उसे खोजने में एक सप्ताह लग गया । बच्चो के साथ बिताए गए दिनो कप्रार्थना सभा में भू–

बच्चे यदि समय से आ जाते थे तो मैडम बच्चो को पक्तिबद्ध करके असतो माँ सदगमय.......,हे शारदे माँ ....,समूह गीत से दिन की शुरुआत करती थी । स्कूल में कुछ दिन बिताने पर शिक्षिका व बच्चो के साथ मेरी सहजता बढ़ रही थी । प्रार्थना के बाद कुछ व्यायाम –योगा से मेने शुरुआत की ,इसके बाद कुछ गोले वाले खेल जसे –समूह बनाना ,नमस्ते जी , सुर्द्र्शन चक्र ,1-2-3,जमीन –पाताल –आकाश आदि खेलो का एक सत्र नियमित हो गया । फिर इसमे जुड़ा कुछ हिन्दी व अँग्रेजी की राइम्स का सिलसिला –टेडी बीयर ,टेडी बीयर .....,सूरज के देश में ......ऐसे ही कई रोचक कवितायें । बच्चे इनमें खूब आनंद लेते और इसी सत्र को ही चलते रह देना चाहते। मैडम एक साथ भी एक नियमित संवाद चल रहा था शिक्षा के विभिन्न पहलुओं पर । लगभग एक महीने में प्रार्थना सत्र ने गोलाकार घेरे के रूप ले लिया । बच्चे ,मैडम और मैं इस सत्र को भरपूर जीते ,गीत गाते,खेल खेलते ,व्यायाम करते ,रोज़मर्रा के विषय पर चर्चा करतबाल संसद –

बच्चो के साथ सबसे अच्छी गतिविधि है उनसे बात करना ,उनकी बात सुनना । हमारा कक्षा –कक्ष कैसा हो, किस विषय को किस क्रम में पढे ,कुछ नियम भी बनाएँ या नहीं , शिक्षिका की क्या भूमिका हो , आपस में सहयोग कैसा हो .....ऐसे ही अनेकों मुद्दो पर हम सब बात करते रहते , हमे किसी नतीजे पर पहुँचने की जल्दी न थी । कई बार चर्चा बच्चो के घर घूम आती , बाजार हो आती , गाँव की सैर कर आती या सपनों की दुनिया में खो जाती । मध्याहन भोजन , कक्षा –कक्ष की सफाई , पानी की व्यवस्था ,खेल खिलाने व कौन से खेलने हैं इनको तय करना , समय के हिसाब से सभी गतिविधियां हो आदि पर बच्चो ने खुद ही सारी व्यवस्थाए बनाई और उनको तोड़ा-मरोड़ा भी ,मैडम और मुझे विशेष सलाहकार भी बना लिया गया । पर इस बाल –संसद में 5वीं , 4थी व 3सरी क्रमश: बोल बाला रहता था ।

कक्षा –कक्ष में किए गए बदलाव–

कक्षा में ही गेहूं का ड्रम व चावल की बोरी रखी हुई थी , जिससे कक्ष के द्रश्य में कुछ अटपटापन लगता था , बाद हम सबने पास वाले आँगन वाड़ी कक्ष से अपना कक्ष बादल लिया , दीवारों पर रोज गाये जाने वाली कवितायें लटका दी , एक काला पेपर ऐसे ही चिपका दिया उस पर कुछ विशेष सूचना कभी –कभी चिपका दी जाती थी , बच्चो ने सुंदर चित्रकारी की ,उसमें रंग भरे फिर अपने पूरे स्कूल को उन आकर्षक चित्रों से सजाया । एक मेज पर कुछ किताबों को रख दिया गया जो मैडम एक कार्यशाला से लायी थी, कुछ किताबे बच्चो ने अपने चित्रो व सुलेखों से तैयार की थी उन्हे भी वहाँ सजा दिया गया। एक –दो सजावट के समान बनाने का भी प्रयास किया गया जैसा भी बना उसे कक्षा में लगाया गया पर मनचाहा परिणाम न आने पर और ऐसी सामग्री नहीं बनाई गई ।

गणित में भाषा व भाषा में गणित की आँख मिचौली खूब खेली गई , कंकर –पत्थरो ,पत्तों व स्ट्रॉ से गिनती बनाई गई , जोड़ –बाकी किया गया , पहाड़े बनाए गए । गणित के खेलो को भी बच्चो ने खूब पसंद किया और गणित की रेल में खूब सवारी की। रंगो के नाम ,दिनों के नाम , महीनो के नाम , ज्यामितीय आकीर्तिया से भी घनिष्ठ रिश्ता जोड़ लिया गया । अंकों से शब्दो में ,शब्दो से अंकों में चुटकी में कर देने वाला खेल हो मैडम/अभिभावकों में बदलाव –

बच्चो के खुद से सीखने से मैडम को भी अपने काम निपटाने का भरपूर समय मिला । बच्चो को खुद से किताब पढ़ने देना , चित्र बनाने देना ,समूह में काम देना , कभी भी खेलना शुरू करने देना ,खुद भी बच्चो की शोरगुल करती उछलती मचलती दुनिया में अपना कोना ढूंढ पाना । सीखने –सिखाने की किताब का बस नाम बन जाना जो पहले पन्ने पर बड़ा –बड़ा ,फिर हर पन्ने पर छोटा बहुत छोटा पर अंदर कहानी में होना जरूरी नहींबच्चों के खेलों से अभिभावकों ने भी खूब सकूँ की सांस ली , बच्चे पहले से नियमित आ रहे थे , गा रहे थे , पेपर फाड़ रहे थे ,दूर पड़े बस्ते के साथ उनके खेल बढ़ गए थे । बच्चों ने पढ़ना तो शुरू नहीं किया था पर बचपना करना शुरू कर दिया थबच्चों को लैप –टॉप पर मूवी देखना खूब भाया , दिल्ली सफारी, अर्जुन द वारियोर ,आइ एम कलाम ,कुछ e –लर्निंग का बच्चो ने अच्छे से स्वाद लिया ।

चाँदनी ने भी मेरी इस छोटी सी रोचक यात्रा में भरपूर सहयोग दिया व खुद भी सहयात्री बनी रही ।

इस यात्रा की कोई मंजिल नहीं थी , बीच –बीच में पल्लव जी के साथ हुए संवाद इसे दिशा देते गए ।

सीखने –सिखाने का सफरनामा अब सीमालवाड़ा पहुँच गया है , पर पहले साल के बच्चो के साथ काम के अनुभव इस सफर की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी रहेगी। ।

#POSITIVEINDIAा ।


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