Swati Rani

Tragedy

4.6  

Swati Rani

Tragedy

फैक्ट्री का धुंआ

फैक्ट्री का धुंआ

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"खों.. खों... खों... "

"खों... खों.... खों"

"ओह कैसा धुंआ है दम घुट रहा है, ओह। बोतल में पानी भी नहीं है", रमेश बड़बड़ाते हुये पानी भरने निकला। 

बाहर और धुंआ था। 

अरे कहीं आग लगी है क्या, उसने सोचते हुये बाहर देखा। 

उसकी आंखे फटी रह गयी ये क्या उसके दो घर छोड़ कर एक अवैध रूप से चल रहे जुते कि फैक्ट्री में से धुंआ उठ रहा था और सब बेखबर सो रहे थे। 

उसने फटाक से 100 नम्बर पर मिला कर पुलिस को बुलाया और फायर ब्रिगेड को फोन किया। 

दौड़ के फैक्ट्री के पास गया तो अंदर से चिखने-चिल्लाने कि आवाज आ रही थी। 

फैक्ट्री का दरवाजा अंदर से बंद था, 4 माले कि बिल्डिंग थी, उसमे एक तले पर जुते का काम होता था, उपर वाले पर 25-30 मजदुर रहते थे खाना, बना के खाते थे ।

आग लगने का कारन अभी किसी को पता ना चला। 

पर देख कर ये लग रहा था कि आग जुते वाले माले से लगी थी उपर तक फैल गयी थी।

ऊपर शीशे से देख के सारे मजदूर चिल्ला रहे थे, "बचाओ, बचाओ"। 

कुछेक अफजल हालत मे उपर से कुद रहे थे, काफी खौफनाक मंजर था, दिल दहलाने वाला।

रमेश ने फिर फोन मिलाया, फायर ब्रिगेड ने कहा हम रास्ते में है। 

तब तक बहुत से लोग जुट चुके थे। 

कोई मोबाइल से विडियो बना रहा था, तो कोई चुपचाप खडा़ तमाशा देख रहा था। 

तभी रमेश के दिमाग मे एक उपाय आया, थोडी दूरी पर बन रहे घर में लम्बी सी सीढ़ी वो फटाक से ले आया और घर से कुछ मजबुत साडि़या ले आया, साडि़यो कि लम्बी सी रस्सी बनायी, फिर सिढी पर जितना जा सकता था गया, एक मजदुर ने हाथ लटका कर साड़ी पकडी और एक छोड मजबुती से अंदर खिड़की से बांध दिया।

धीरे धीरे 25 मजदूर तो नीचे आ गये, पर तब तक आग भी काफी फैल गया था,4-5 बुरी तरह जल गये। 

तभी पुलिस आयी कैसै भी दरवाजा तोडा, फायर ब्रिगेड ने आग बुझायी,अंदर जाने पर पता लगा शार्ट सर्किट से आग लगी थी।

अंदर का दृश्य काफी मार्मिक था, मजदूरों के जले क्षत-विक्षत शव को निकाला गया,एंबुलेंस बुला के भेजा गया।

तभी उसमें से एक फोन निकला, जिसमें रिकॉर्डिंग थी, एक मजदूर रो रहा था, बोल रहा था", सुना होली । शायद हम ना बचेम,इहा फैक्ट्री मे आग लाग गईल बा, माई और मुन्नी के अब तहरे भरोसे छोड तनी (सुनो भोलु मैं नही बचुंगा, जिस फैक्ट्री मे हम थे आग लग गयी है, माँ और मुन्नी को अब तुम्हारे भरोसे छोड रहा हूँ।

सुन के पुलिस वाले कि भी आंखें छलछला गयी। 

इस तरह रमेश के सुझ-बुझ से कई जाने बची, फैक्ट्री के आग को बुझाया गया, फिर सरकार ने रमेश को सम्मानित किया। 


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