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Aditya Neerav

Tragedy

4.5  

Aditya Neerav

Tragedy

पछतावा

पछतावा

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प्रकृति से प्रेम होने के साथ-साथ मैं पशु प्रेमी भी बचपन से ही रहा हूं । बचपन से ही मेरा इनके प्रति अच्छा-खासा लगाव रहा है । यही कारण था कि मैंने बचपन में ही मुर्गी ,खरगोश और अब तोता जिसका मैंने प्यारा सा नाम भी रखा जो कि हीरामन है ,पालता रहा मैं और मेरी दीदी दोनों ने काफी मेहनत से इसको पाला क्योंकि पहली बार जब यह हमारे घर में आया था तो बिल्कुल नन्हा सा था। इसे काफी देखभाल की जरूरत थी क्योंकि जिस प्रकार मां अपने बच्चों का पालन पोषण करती है ठीक उसी प्रकार इस नन्हे-मुन्ने हीरामन की देखभाल हम लोग को करना पड़ा। इस तरह वह हमारे घर का एक नया सदस्य बन गया । हम लोगों ने उसे कभी पक्षी की तरह नहीं समझा अपितु एक परिवारिक सदस्य के भांति ही उसकी देखभाल करते रहें । कुछ ही दिनों में वह काफी घुल-मिल गया धीरे-धीरे जब उसके हरे-हरे कोमल पंखों से उसका पूरा शरीर एक लहलहाते खेतों के समान दिखने लगा उसकी चोंच सूरज के रक्तिम किरणों की तरह चमकदार व बंकिम हो गई उसे गर्दन पर लाल तथा काली रंग की रिंग जो के उसके सौंदर्य में चार चांद की लगा रही थी ।


प्रायः तोता अपनी मीठी बोली के कारण पहचाना व जाना जाता है। मनुष्य की तरह बोलने वाला यह एकमात्र पक्षी तो नहीं लेकिन पालतू जरूर है । प्राचीन काल से ही यह मनुष्यों के बीच रहा है। लोग इसे प्यार से पालते व सिखाते हैं शायद यही वजह रहा होगा लोग इसे पिंजरे में कैद करने लगे । जो कि सही नहीं है मुझे आज

भी याद है पहली बार उसने दीदी शब्द का उच्चारण किया तो हमारे खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा फिर क्या हम लोगों ने उसे बहुत कुछ बोलना-सिखाना शुरू कर दिया ।इस तरह वह 1 दिन संस्कृत में श्लोक भी बोलना शुरू कर दिया । बहुत ही अच्छा श्लोक है संस्कृत में "मातृ देवो भवः पितृ देवो भवः" जिसका अर्थ अब बहुत कम ही लोग समझ पाते हैं या अमल कर पाते हैं अपने जीवन में।इस तरह समय बीतता गया और हीरामन सबका चहेता बन गया । जैसे-जैसे हमारी समझदारी बढ़ती गई हमें यह सोचने पर मजबूर होना पड़ा की हम लोगों ने गलत किया है पक्षी को कभी पिंजरे में कैद नहीं करना चाहिए क्योंकि ईश्वर ने उसके पंख बनाए हैं । वह हमारी तरह ही आजाद रहना चाहता है हमें यदि कोई कैद करें तो हमें काफी बुरा लगता है ठीक उसी प्रकार उसे भी यही महसूस होता है ।हम चाहे कितना भी उसे प्यार दे सुख सुविधा दें लेकिन पिंजरे में कैद पक्षी कभी खुश नहीं रख सकता । वह तो खुले गगन में सैर करना चाहता है अपनों के बीच रहना चाहता है जब कभी मैं उसको रात में पिंजरे के एक कोने में वह बैठा देखता तो उसकी आंखों में मुझे उसका दर्द साफ झलक जाता था लेकिन अब हम कर भी क्या सकते थे काफी देर हो चुकी थी । चाह कर भी हम लोग उसे आजाद नहीं कर सकते थे क्योंकि हम लोगों के परिवेश में रहकर वह बड़ा हुआ था अब वह अपने परिवेश में नहीं जी सकता था। इस पछतावे के साथ मैंने एक निर्णय लिया भविष्य में मैं फिर कभी किसी पक्षी को पिंजरे में कैद नहीं करूंगा चाहे वह सुंदर दिखता हो या फिर उसकी जितनी भी मधुर वाणी हो ।


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