Aditya Neerav

Inspirational

4.9  

Aditya Neerav

Inspirational

चुनौतीपूर्ण जिंदगी

चुनौतीपूर्ण जिंदगी

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नौकरी का पहला दिन प्रकाश ने अपने ऑफिस कक्ष में प्रवेश किया। उसे स्वयं की आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि जो वह देख रहा है कहीं वह स्वप्न तो नहीं लेकिन उसे याद आया की कुछ वर्षों पूर्व यह स्वप्न ही था उसके लिए। जो आज साकार हुआ है। कुर्सी पर बैठकर जब वह फाइलों के पन्ने को पलट रहा था तो उसकी जिंदगी के अतीत के पन्ने अपने आप एक-एक करके उसके सामने दृश्यमान हो रहे थे। प्रकाश एक मध्यमवर्गीय परिवार से संबंध रखता है जहां अक्सर ग़रीबों की गरीबी रास्ते का रोड़ा बन जाती हैं जहां ऊँचे स्वप्न देखना भी महंगा साबित होता है। इन सब चीजों के बावजूद प्रकाश ने अपने जीवन में संघर्ष जारी रखा। उसके पिताजी के अल्प समय में मृत्यु के बाद उसकी माँ और बड़े भाई ने काफी मेहनत से आर्थिक स्थिति को संभाला, पांच भाइयों में दूसरे स्थान पर था प्रकाश। बड़े भैया सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे थे और साथ ही एक निजी विद्यालय में शिक्षक के रूप में कार्यरत थे। प्रकाश ने भी दसवीं पास करने के तुरंत बाद ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया। घर की आर्थिक स्थिति देखते हुए अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए उसने यह फैसला लेना उचित समझा। विद्या ही ऐसा धन है जो बांटने से बढ़ता है। धीरे-धीरे समय बितता गया।ऐसे भी वक्त कहां किसी के लिए ठहरता है वह तो सदैव गतिमान है। कुछ वर्षो पश्चात भैया की सरकारी नौकरी लग गई। घर में एक नई उत्साह का संचार हुआ।अब प्रकाश ने भी स्नातक की पढ़ाई पूरी कर ली थी। उसे भी अपने बड़े भाई की तरह सरकारी नौकरी प्राप्त कर अपने परिवार के लिए व स्वयं के नजरो में अलग पहचान बनानी थी। उसने ट्यूशन पढ़ाना नहीं छोड़ा क्योंकि उसने अपने बड़े भाई को भी यही करते देखा था। स्वयं भी भैया के पद चिन्हों पर चलकर वह अपने मंज़िल को प्राप्त करना चाहता था। उसके ट्यूशन पढ़ाने से कदापि यह मतलब नहीं था कि बड़े भाई ने प्रकाश को आर्थिक रूप से सहायता प्रदान ना की हो या माँ का सहयोग न प्राप्त हुआ हो। जब बात स्वाभिमान कि होती है तो मनुष्य स्वयं से कुछ करना चाहता है वह भी केवल इतना ही चाहता था। यही वजह थी कि प्रकाश को जब मंज़िल पाने के लिए स्वयं पर ध्यान देना चाहिए था तब वह अपने छात्रों पर ध्यान देता था। ऐसे भी गुरु के पद का मान हर कोई नहीं रख पाता और जब यह पद प्राप्त होता भी है तो इस पद की गरिमा बनाए रखना गुरु का प्रथम कर्तव्य हो जाता है। प्रकाश इस बात को भली-भांति समझता था। वह ग़रीब छात्र से पैसे भी नहीं लेता था और ऐसे भी माता-पिता के संस्कारों के कारण उसने विद्यादान को ही उचित दान समझता। कहते हैं ना माँ -बाप के संस्कार बच्चों में झलक ही जाते हैं। एक बार तो ऐसा हुआ की जितनी ट्यूशन की फीस मिलती थी उससे कहीं ज्यादा मेहनत वह पैदल चलकर करता था। इसके गवाह उसके पैरों के चप्पल थे जो घिसकर पतले हो गये थे या फिर माँ जो उसके आने का इंतजार देर रात तक जग कर करती थी ।        


संघर्ष ही जीवन है इस बात को वह जानता था और अमल करने की लगातार कोशिश करता रहा। कुछ वर्ष बीत जाने पर जब वह काफी परीक्षाएं दे चुका और जिसके परिणाम कुछ अंकों की वजह से तो कभी कुछ सीटों की वजह से उसके अनुकूल नहीं रहे। तब उसकी हिम्मत जवाब देने लगी। एक वक्त ऐसा भी आया कि ऊँचे पदों के लिए आवेदन करने वाला प्रकाश निम्न पदों के लिए भी आवेदन करने लगा। इस दौरान वह कविता भी लिखता था या यूं कहें कविता लिखने का शौक रखता था। उसकी लिखी हुई कविता उसके दर्द बंया करती जिसे चंद पंक्तियों के माध्यम से समझा जा सकता है " मैंने चाहा ऊंचा उठना लोगों की नजर में हुआ नसीब गिरना मैंने चाहा ऊंचा उठना " जिंदगी में हर कदम पर जब निराशा हाथ लगी तब वह परेशान हो गया उसे अब लगने लगा कि वह शायद ही कुछ कर पाएगा क्योंकि समय काफी बीत चुका था। घर वाले कुछ कहे या ना कहे हमारा समाज आपको आईना ज़रूर दिखलाता है। सगे-संबंधियों का क्या कहना.. 

 जिस प्रकार चुनाव में नेता को कुछ मुद्दा मिल जाये वोट मांगने के लिए ठीक उसी प्रकार सगे-संबंधी भी ऐसी बातों से भला कहां चूकते हैं। वह भी मौके की तलाश में रहते है की कब वह अपने बातों से आपके मनोबल को छलनी करे। प्रकाश वैसा लड़का नहीं था वह अपने कर्तव्य को जानता था जिस उम्र में लड़के भटक जाते हैं। वह औरों के लिए मिसाल बन चुका था। जहां बच्चे ढंग से पढ़ नहीं पाते हैं वही प्रकाश ट्यूशन पढ़ाकर सरकारी नौकरी के लिए तैयारी कर रहा था। निराशा में आशा की किरण का उदय हुआ जब उसके बड़े भैया ने उसका उचित मार्गदर्शन किया। "महानता केवल विचारों में नहीं उस पर अमल करने वाले इंसानों में होती है" इस तथ्य को प्रकाश ने सत्य कर दिखाया कुछ महीने बीते थे प्रकाश का आत्मविश्वास जागृत हो चुका था। कुछ वर्षों के बाद उसके मेहनत ने रंग लाना शुरू कर दिया। और लगातार कोशिश करते रहने के कारण एक दिन उसे उच्च पद के लिए चुना गया। वह दिन उसके लिए किसी त्योहार से कम नहीं था। जब ईश्वर की कृपा और माँ के आशीर्वाद से तथा भाई व बहन के सहयोग से उसे वह मुकाम प्राप्त हुआ क्योंकि किसी भी व्यक्ति की सफलता के पीछे उसके गुरुजन, परिवार, मित्र आदि का सहयोग अवश्य होता है। इस प्रकार कब और किसके बातों से हमे प्रेरणा मिल जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। हम रोज महान विचारकों के विचार पढ़ते हैं, जिंदगी भी हमें प्रतिदिन कुछ ना कुछ सिखलाती रहती है। क्या हम उन बातों पर सच में अमल कर पाते हैं ? अगर कर पाते हैं तो ईमानदारी से सोचियेगा कि जो अमल करते हैं वह आज कहीं ना कहीं सफल है। अपने जीवन में प्रकाश के लिए भी उसके भैया कि बातों ने प्रेरणा का कार्य किया। जिससे उसके जिंदगी की दिशा ही बदल गई। और उसने चुनौतियों से लड़ना सीख लिया आज वह दूसरों के लिए प्रेरणादायक बन गया उसकी कहानी लोगों में उत्साह का संचार का कार्य करने लगी । सफलता की सीढ़ी सभी को चाहिए लेकिन सफल होने के लिए कोई कदम बढ़ाना नहीं चाहता ।हम अपने लक्ष्य को तभी प्राप्त कर सकते हैं जब हम ईमानदारी से कोशिश करेगें। स्वयं इस पद को पाकर प्रकाश आज सुखद अनुभूति महसूस कर रहा था।


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