अहंकार
अहंकार
विद्यालय की पढ़ाई समाप्त होने के बाद जब मेरा दाखिला कॉलेज में हुआ तो मेरे लिए एक नया वातावरण था । जहां मित्रता करना चुनौतीपूर्ण था।यहां उस प्रकार के लड़के नहीं थे जो आसानी से आपके दोस्त बन जाते । यहां तो लगभग सभी मतलब के यार थे अगर आपसे जरूरत होती तो बात करते और नहीं तो ऐसे कौन किसी को पूछता है ।सभी अपने ही धुन में मगन रहते थे। वह अपने आप को औरों के अपेक्षा काबिल वह बुद्धिमान समझते थे ।बाकी को तो जैसे वह कुछ बुझते ही नहीं। शुरुआत में काफी दिक्कतें हुइं लेकिन फिर धीरे-धीरे जब उन लोगों से बातें हुई विचारों का आदान-प्रदान हुआ तब मालूम हुआ कि वह इतने बुरे भी नहीं कि उनसे मित्रता नहीं की जा सकती । क्योंकि मुझे इतना पता था कि सभी में अच्छी व बुरी दोनों आदते होती है हमें अपने विवेक से सही और गलत का निर्णय लेना होता है कि कौन सही है और कौन गलत।
इस प्रकार कुछ लोगों से हमारी मित्रता हो गई, इसी बीच एक रौनक नाम का लड़का जो कॉलेज में सभी का चहेता था उसे हमारी किसी विषय पर बहस हो गई फिर क्या था वह अपने आप को सही साबित करने के चक्कर में अपने शिष्टाचार भी भूल गया । जिसके कारण उसे शिक्षक द्वारा दंडित भी होना पड़ा। वजह यह कि उसको 'मैं' का अहंकार हो गया था इसलिए वह अपने वास्तविक अस्तित्व को भूल गया था ।कहा भी गया है जहां 'मैं' शब्द का अपने वाक्यों में बार बार प्रयोग किया जाता हो तब वहां अहंकार का बोध होता है यही कारण है कि प्राचीन काल में रावण भी अपने 'मैं' के कारण मारा गया ।आज भी यही अंह भाव लोगों के पतन का कारण बन रहा है यदि हम इस अहंकार का त्याग कर दें और समझें कि इंसान सबसे पहले इंसान है, उसका जन्म इंसान का जन्म है, उसका धर्म इंसानियत है । सर्वप्रथम वह इंसान है फिर अपने देश का नागरिक ,किसी धर्म या समाज का सदस्य तथा किसी घर का प्राणी , किसी पिता का पुत्र व किसी बहन का भाई तब वह इस 'मैं' अर्थात अहंकार से मुक्ति पा सकता है ।इन बातों को लोग जानते तो है लेकिन अपने जीवन में बहुत कम लोग अमल कर पाते हैं ।एक दिन वार्षिक परीक्षा के परिणाम के बाद जब उसका परीक्षाफल सही नहीं रहा तो उसे ठेस लगी और उसके 'मैं' का अहंकार टूटा तब उसके समझ में आ गया कि वह कितना अभिमानी हो गया था । उसे अपनी भूल का एहसास हुआ और उसने मुझसेे माफी मांगी हमने कहां तुम्हें इस बात का पश्चाताप है यही बड़ी बात है इस तरह हम दोनों एक अच्छे मित्र बन गये।