Aditya Neerav

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धोखा

धोखा

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'धोखा' यह शब्द सुनने मात्र से ही मनुष्य सचेत हो जाता है कि कहीं उसे किसी भी कार्य में ,रिश्तों में, लोगों से बिन बुलाए मेहमान की तरह मिल ना जाये। ऐसे तो मनुष्य जीवन में कदम-कदम पर धोखा है लेकिन जीना तो है ना हर हाल में। मनुष्य जब जन्म लेता है तो उसे लगता है कहीं वह धोखे से तो इस संसार में नहीं आ गया है ना लेकिन जैसे जैसे उसकी समझदारी बढ़ती जाती है तो उसे मालूम होता है कि यह तो उसके ही अपने कर्म का फल है जिसके फलस्वरूप उसे मानव जीवन मिला है।बात जब स्वयं के जीवन में धोखे की आती है ना तो दूसरे लोग इसे 'चोखा' समझ लेते हैं जो की दाल-चावल के साथ कोई भी आसानी से खाकर और डकार भी ना लें । मेरे साथ भी संयोग वश कुछ ऐसा ही हुआ प्यार में धोखा नहीं अपितु विश्वास का धोखा अवश्य हुआ क्योंकि मैं जल्द ही किसी पर विश्वास कर लेता था। जैसा कि मेरा स्वभाव है यही कारण था कि मेरे जिगरी दोस्त ने इसी विश्वास का नाजायज फायदा उठा कर मुझे एक दिन धोखा दे दिया। जिसके परिणाम स्वरूप मैं अब किसी पर आंख मूंदकर भरोसा शायद ही कर पाता

लेकिन हमे कदापि ऐसा नहीं करना चाहिए। किसी भी धोखे से हमें कुछ ना कुछ सबक जरूर मिलता है । जिससे हम अपने भविष्य में आने वाली समस्याओं से लड़ते है एक नई ऊर्जा के साथ । कुछ लोग धोखा खा कर ठीक उसके विपरीत हो जाते हैं जैसे प्यार में धोखा खाकर "मजनू से सीधा देवदास" और कुछ तो प्यार की परीक्षा में असफल होकर भी आई .ए.एस जैसी कठिन परीक्षा भी पास कर जाते हैं । धोखे से भी यह धोखा कभी नहीं होना चाहिए कि रास्ते में लगने वाली ठोकर आपकी बाधा है हो सकता है आपको सचेत किया जा रहा हो ताकि आप अपने मंजिल तक पहुंचने के लिए हौसला रख सके। और हां इस 'धोखा' को कभी 'चोखा' समझने की भूल कतई ना करे।


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