पावन पर्व
पावन पर्व
आज मैं आपको अपने बचपन की कुछ सुनहरी यादें सुनाना चाहती हूँ। जब मैं स्कूल में पढ़ती थी, हमारे स्कूल में महीने भर पहले से 26 जनवरी की तैयारी शुरू होने लगती थी
उस ज़माने में हम ये नहीं समझते थे कि 15 अगस्त, 26 जनवरी क्यों मनाए जाते हैं कभी हमें पी.टी कराई जाती थी, कभी बच्चों को देशभक्ति गीत पर डांस कराते थे,आज मुझे बचपन का वो सीन याद है जब हम बच्चे थे, जब हम सब एक लाइन चल कर प्रभात फेरी "भारतमाता " की जय के नारे, कभी राष्ट्रपित"महात्मा गांधी की जय के भी नारे लगते थे...।
खूब सर्दी होती थी तो भी चमचमाती यूनिफार्म, जुते भी चमचमाते थे।
बड़े जोश -ख़रोश से अपने देश की आज़ादी का जशन मनाते थे।
आज मैं 50 साल से उपर की हो गई हूँ ,उस वक़्त में अपनी अम्माँ से पूछती थी ,अम्माँ ये पन्द्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी क्यों मनाई जाती है, अम्माँ मुझे बड़े प्यार से कहती थी जैसे:-हम ईद,बकरीद ,दीपावली दशहरा मनाते है ऐसे ही हम...।
अपने देश की आज़ादी का जश्न को पावन पर्व कहते हैं ,
हमें अंग्रेजों ने देश को कैसे गुलाम बनाया और इस गुलामी से आज़ादी दिलाने के लिए हमारे क्रांतिकारी ने अपने जान की क़ुरबानी दी। वो रात को कहानी आज़ादी में गांधी जी के लिए उस वक़्त जो पंक्तियाँ लिखी थी वो भी सुनाती थी....।
साबरमती के लाल ,
बिना खड्ग ,बिना तलवार ,
तूने हमें आज़ादी दिला दी ..।
बस यहीं था हमारा पावन पर्व ..।