Mridula Mishra

Inspirational

5.0  

Mridula Mishra

Inspirational

पारो

पारो

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यह कोइ देवदास की पारो नहीं थी बल्कि हमारी सोसायटी में कचरा उठाती थी पारो। हवा, बारिश, तूफान किसी की परवाह नहीं करती नियमित आ जाती थी और साथ मेंं आती थी उसकी तीनों बेटियाँ। पारो घर-घर जाकर कचरा लेती और साथ ही बचा-खुचा खाना भी। मैं देखती कि वह कुछ खाना कुत्ते, बिल्लियों तथा गाय को भी देती और फिर अपनी बेटियों के साथ मांगा हुआ खाना खाती। मैं हमेशा उसे कुछ बनाती तो दे देती। एक दिन मैंने कहा- पारो बेटियों को घर पर छोड़ दिया करो उसने कहा मेमसाहब बेटियाँ। मेरे साथ रहेंगी तो कुछ काम सीखेंगी और घर पर वेश्यावृत्ति क्योंकि जिसका बाप नहीं होता सब उसके मालिक बन जाते हैं। मैं भुगत चुकी हूँ मेमसाहब हमारी कौम में यह आम बात है।

मैंने कहा फिर स्कूल मेंं डाल दो ? इतने पैसे कहाँ हैं फिर गरीब की सुनता कौन है। उसने बड़ी आरजू मिन्नत की कि किसी तरह मैं उनका नामांकन स्कूल में करवा दूँ।

मैंने कोशिश करके तीनों को सरकारी स्कूल में डलवा दिया। पारो अब बहुत खुश रहती।

तीन साल के बाद हम लोग दूसरी जगह चले गये।काफी साल गुजर गये हमारे बच्चे नौकरियों में आगये पति रिटायर्ड हो गये।एक बार समाचारपत्र में पढा़ कि किसी गरीब महिला की तीन लड़कियों ने पढा़ई में ऊँच पद हासिल किया तो नासा ने उन्हें अपने साथ काम करने का निमंत्रण दिया है। मैं उस माँ पर रश्क करने लगी एक तरफ पैसा पानी की तरह बहा कर भी बच्चे पढ़ाई नहीं करते और दूसरी तरफ गरीबी में भी बच्चे राह बना लेते हैं। 

एक दिन मैं बैठकर कुछ पढ़ रही थी तभी वेल बजी दरवाजा खोली तो सामने एक संम्भ्रांत महिला अपने तीन लड़कियों के साथ खडी़ थी मैंने सोचा शायद वोट मांगने आयी हैं। जी कहिये ? तब तक तो चारों मेरे पैरों पर झुक चूकी थीं मैं घबराकर पीछे हटी तो पारो ने कहा पहचाना नहीं मेम साहब ? मैं पारो कचरा बाली और ये तीनों बेटियाँ मेरी नासा जाने को तैयार, सब आपके कारण, मैं सचमुच निःशब्द थी।



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