पाप और पुण्य

पाप और पुण्य

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बिट्टू रोज दादी का हाथ थामे शाम को मंदिर परिसर की ओर निकल जाता। यह दादी की रोज की दिनचर्या थी। दादी के रोज के क्रिया कलाप देखता कि किस तरह घर से निकलते समय पूजा सामग्री साथ रखती और दान देने के लिए कुछ छुटटे पैसे भी। दादी मां रोज मंदिर में पूजा अर्चना के बाद, जरूरतमंद को पैसे भी देती। तालाब में दीपदान भी करती और मंदिर की परिक्रमा और तालाब की भी परिक्रमा करती। बिटटू को रोज घूमने का अलग ही आनंद आता। शाम को दादी से ये सब करने का कारण भी पूछता। दादी बाल जिज्ञासा के लिए कहती बेटा- ये सब करके पुण्य कमाया जाता है लेकिन वह उसे पाप और पुण्य की महीन रेखा से जरूर रूबरू कराती।

बिट्टू बड़ा हुआ तो हर बात में पाप और पुण्य के बारे में सोचता। आज दादी ने उसे मंदिर में प्रसाद चढ़ाने के लिए इक्कीस रूपये दिये और कहा कि इसका प्रसाद चढ़ा देना। लेकिन बिटटू ने देखा कि मंदिर परिसर में दो तीन बच्चें भूखे बैठे थे अतः उसने उनके लिए ब्रेड के पैकेट लाकर दिये तो वे भूखे बच्चे उसे झटपट खाने लगे और थोड़ी देर में उन्होंने वह खा लिया। बिट्टू घर की ओर लौट रहा था, मन में यह सवाल लिये कि दादी पूछेगी तो क्या जवाब देगा ? प्रसाद के बारे में क्या कहेगा ? लेकिन आज उसके मन में संतुष्टि का भाव था कि उसने कोई पाप नहीं किया था। मानव सेवा करके उसने सही अर्थो में पुण्य ही तो कमाया था।


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